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इस मंदिर में यंत्र के रूप में विराजमान है मां दुर्गा

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posted on : जनवरी 20, 2023 2:26 अपराह्न

वाराणसी : वाराणसी में काशी विश्वनाथ के अलावा मां दुर्गा का भी एक दिव्य और पुरातन मंदिर भी है। लाल पत्थरों से बने इस मंदिर में माता के कई स्वरूपों का दर्शन करने का सौभाग्य मिलता है। इसकी भव्यता ऐसी है कि कहा जाता है कि मंदिर परिसर में जाने वाले भक्त मां की प्रतिमा को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। मंदिर में एक अलग तरह की सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह महसूस होता है।


बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण वर्ष 1760 में बंगाल की रानी भवानी ने कराया था। उस समय निर्माण में 50 हजार रुपए की लागत आई थी। इस मंदिर में माता दुर्गा यंत्र के रूप में विराजमान हैं। साथ ही मंदिर में बाबा भैरोनाथ, देवी सरस्वती, लक्ष्मी और काली की मूर्तियां भी स्थापित हैं। माता के दर्शन के बाद यहां पुजारी के मंदिर के दर्शन करना अनिवार्य है। तभी मां की पूजा पूरी होती है।मान्यता है कि असुर शुंभ और निशुंभ का वध करने के बाद मां दुर्गा ने यहां विश्राम किया था। कहा जाता है कि माता यहां पर आदि शक्ति स्वरूप में विराजमान करती हैं। यह मंदिर आदिकाल से है। आदिकाल में काशी में केवल तीन ही मंदिर थे, पहला काशी विश्वनाथ, दूसरा मां अन्नपूर्णा और तीसरा दुर्गा मंदिर। कुछ लोग यहां तंत्र पूजा भी करते हैं। यहां पर स्थित हवन कुंड में हर रोज हवन किया जाता है।


इस भव्य मंदिर में एक तरह दुर्गा कुंड भी है। इस कुंड से जुड़ी एक अद्भुत कहानी बताई जाती है। बताया जाता है कि काशी नरेश राजा सुबाहू ने अपने पुत्री के विवाह के लिए स्वयंवर की घोषणा की थी। स्वयंवर से पहले सुबाहू की पुत्री को सपने में राजकुमार सुदर्शन के संग विवाह होते दिखा। राजकुमारी ने यह बात अपने पिता राजा सुबाहू को बताया। काशी नरेश ने जब यह बात स्वयंवर में आए राजा-महाराजाओं को बताया तो सभी राजा राजकुमार सुदर्शन के खिलाफ हो गए और युद्ध की चुनौती दी। राजकुमार ने युद्ध से पहले मां भगवती की आराधना की और विजय होने का आशीर्वाद मांगा। कहा जाता है युद्ध के दौरान मां भगवती ने राजकुमार के सभी विरोधियों का वध कर डाला। युद्ध में इतना रक्तपात हुआ कि वहां रक्त का कुंड बन गया, जो दुर्गाकुंड के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसके बाद राजकुमार सुदर्शन का विवाह राजकुमारी के साथ हुआ। पौराणिक मान्यता के अनुसार, जहां माता स्वयं प्रकट होती हैं, वहां मूर्ति स्थापित नहीं की जाती। ऐसे मंदिरों में केवल चिन्ह की पूजा की जाती है। दुर्गा मंदिर भी उन्ही श्रेणियों में आता है। यहां माता के मुखौटे और चरण पादुका की पूजा की जाती है। यह दुर्गा मंदिर बीसा यंत्र पर आधारित है। बीसा यंत्र का मतलब बीस कोण की यांत्रिक संरचना जिसके ऊपर मंदिर की आधारशीला रखी गई है।

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