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जानें ओशो के बारें में महत्वपूर्ण जानकारी एवं रोचक तथ्य ………

लेखक : नरेन्द्र सिंह चौधरी, भारतीय वन सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं. इनके द्वारा वन एवं वन्यजीव के क्षेत्र में सराहनीय कार्य किये हैं.

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posted on : जनवरी 21, 2025 1:14 पूर्वाह्न
देहरादून : ओशो का जन्म 11 दिसंबर, 1931 को मध्य प्रदेश के रायसेन ज़िले, बरेली तहसील के कुचवाड़ा गांव में हुआ था। उनका असली नाम चंद्रमोहन जैन था। ओशो के पिता का नाम बाबूलाल जैन और मां का नाम सरस्वती जैन था। ओशो ने जबलपुर विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की थी। ओशो ने प्रोफ़ेसर की नौकरी छोड़कर आध्यात्मिक गुरु का काम करना शुरू किया था।
  • ओशो को ‘सेक्स गुरु’ के नाम से भी जाना जाता है।
  • ओशो के कई विचार विवादास्पद होते थे और कई बार भारतीय संसद में उन पर प्रतिबंध लगाने की चर्चा हुई थी।
  • उन्हें जबलपुर में 21 वर्ष की आयु में 21 मार्च 1953 को मौलश्री वृक्ष के नीचे संबोधि की प्राप्ति हुई।
  • ओशो रजनीश के तीन गुरु थे। मग्गा बाबा, पागल बाबा और मस्तो बाबा। इन तीनों ने ही रजनीश को आध्‍यात्म की ओर मोड़ा, जिसके चलते उन्हें उनके पिछले जन्म की याद भी आई।
  • ओशो की एक प्रेमिका थी जिससे ओशो प्रेम करते थे। वह उसकी तस्वीर अपने बटुवे में रखते थे परंतु वह लड़की बेवक्त ही मर गई। उसके छूटने के बाद रजनीश ने बांसुरी बजाना भी छोड़ दिया था और फिर उन्हें उनके पिछले जन्म की प्रेमिका मिली जो जर्मन से पुणे आई थी जिसको नाम दिया गया मां प्रेम निर्वाणा।
  • ऐसा कहा गया कि रजनीश अपने पिछले जन्म में एक कठिन उपवास पर थे जिसमें तीन दिन ही शेष रह गए थे परंतु उनके उनकी हत्या कर दी थी। अपने इस जन्म के पूर्व 700 वर्ष पूर्व ओशो मृत्यु से पूर्व इक्कीस दिन के उपवास की साधना कर रहा थे। पूरे इक्कीस दिन के उपवास के बाद शरीर छोड़ना था। इसके पीछे कुछ कारण थे, लेकिन इक्कीस दिन पूरे नहीं कर सके, तीन दिन बच गए। वे तीन दिन इस जीवन में पूरे करने पड़े।
  • उनकी नानी ने एक प्रसिद्ध ज्योतिषी से ओशो की कुंडली दिखाई थी। कुंडली पढ़ने के बाद वह बोला, यदि यह बच्चा सात वर्ष जिंदा रह जाता है, उसके बाद ही मैं इसकी कुंडली बनाऊंगा- क्योंकि इसके लिए सात वर्ष से अधिक जीवित रहना असंभव ही लगता है, इसलिए कुंडली बनाना बेकार ही है। परंतु यह जीवित रह गया तो महान व्यक्ति होगा।…ओशो को सात वर्ष की उम्र में मृत्यु का अहसास हुआ परंतु वे बच गए ।थे
  • ऐसा अनुमान है ओशो ने लगभग 1 लाख 50 हजार किताबें पढ़ी थी। ओशो ने पहले दुनियाभर के ज्ञानियों के लिखे को खंगाला, उस पर सोचा-समझा और फिर जाना की सच क्या है। जो अच्छा लगा उसे अपना लिया और जो बकवास लगा उसे छोड़ दिया। इसी तरह उन्होंने हर धर्म के पाखंड को उजाकर किया और हर किताब का खुलासा कर दिया। उनकी फेवरिट किताबों की लिस्ट को देखना चाहिए। इन किताबों में से 3500 किताबें ऐसी हैं, जिन्हें पढ़ने के बाद ओशो ने उन पर साइन किए और एक रंगीन पेंटिंग बनाई। इसमें से भी 160 ऐसी किताबें थी जिसने उसे सबसे अधिक प्रभावित किया।
  • ओशो ने कहानी, कविता और पत्रों के अलावा कभी कुछ भी नहीं लिखा। बाजार में जो भी किताबें उबलब्ध हैं वे सभी उनके कहे गए प्रवचनों को लिपिबद्ध करके जारी की गई है।
  • उन्होंने अपना सारा ज्ञान रिकॉर्ड करवाया गया है। ओशो की जितनी भी किताबें हैं, वे सब रिकॉर्डेड ऑडियो के आधार पर लिखी गई हैं।
  • ओशो कोई पारंपरिक संतों की तरह कोई रामायण या महाभारत आदि का पाठ नहीं कर रहे थे, न ही व्रत-पूजा या धार्मिक कर्मकांड करवाते थे। ना ही वे किसी भी प्रकार का चूरण बेच रहे थे। वह स्वर्ग-नरक एवं अन्य अंधविश्वासों से परे उन विषयों पर बोल रहे थे जिन पर इससे पहले किसी ने नहीं बोला था। उनका कहना था कि जीवन ही है प्रभु और ना खोजना कहीं।
  • ओशो ने दुनियाभर के साहित्यकार, फिल्मकार, संगीतकार, धर्मगुरु, अभिनेता, राजनेता और दार्शनिकों को प्रभावित किया है परंतु इनमें से इक्कादुक्का ही जो इस बात को इमानदारी से स्वीकार करते हैं। इन लोगों की लब्बी लिस्ट है। ओशो के विचारों के कारण दुनिया के सभी क्षेत्रों में वैचारिक क्रांति देखने को मिलती है।
  • साल 1981 से 1985 के बीच ओशो अमेरिका में रहे। यहां उनके शिष्यों ने ओरेगॉन राज्य में 64000 एकड़ जमीन खरीदकर उन्हें वहां रहने के लिए आमंत्रित किया।
  • इस रेगिस्तानी जगह में ओशो कम्यून खूब फलने-फूलने लगा। यहां करीब 5000 लोग रह रहे थे। यहां महंगी घड़ियां, रोल्स रॉयस कारें, डिजाइनर कपड़ों की वजह से वे हमेशा चर्चा में रहे।
  • ओरेगॉन में ओशो के शिष्यों ने उनके आश्रम को रजनीशपुरम नाम से एक शहर के तौर पर रजिस्टर्ड कराना चाहा लेकिन स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया और अंतत: रोनाल्ड रिगन सरकार ने ओशो के आश्रम को उजाड़ने का प्लान बनाया।
  • अक्टूबर 1985 में अमेरिकी सरकार ने ओशो पर अप्रवास नियमों के उल्लंघन के तहत 35 आरोप लगाए और उन्हें हिरासत में भी ले लिया। उन्हें 4 लाख अमेरिकी डॉलर की पेनाल्टी भुगतनी पड़ी साथ ही साथ उन्हें देश छोड़ने और 5 साल तक वापस ना आने की भी सजा हुई।
  • अमेरिकी सरकार ने ओशो को खत्म करने का पूरा प्लान तैयार किया था। कहा जाता है कि इसी दौरान उन्हें जेल में अधिकारियों ने थेलियम नामक धीमे असर वाला जहर दे दिया था। बाद में उन्हें देश निकाला दे दिया। ओशो कई योरपीय देशों में शरण लेने के लिए भटकते रहे परंतु अमेरिका के दबाव के चलते उन्हें कहीं भी शरण नहीं मिली यहां तक की भारत ने भी इस शर्त पर आने को कहा कि आपके सभी विदेशी शिष्य यहां नहीं आ सकते। तब कुछ समय के लिए ओशो को नेपाल ने शरण दी।
  • अमेरिकी सरकार के दबाव के कारण 21 देशों ने या तो उन्हें देश से निष्कासित किया या फिर देश में प्रवेश की अनुमति नहीं दी। इन देशों में ग्रीस, इटली, स्विटजरलैंड, स्वीडन, ग्रेट ब्रिटेन, पश्चिम जर्मनी, कनाडा और स्पेन प्रमुख थे।
  • ओशो 1987 में पुणे के अपने आश्रम में लौट आए। वह 10 अप्रैल 1989 तक 10,000 शिष्यों को प्रवचन देते रहे।
  • कहा जाता है कि अमेरिका के द्वारा दिए गए जहर का असर यूं तो 6 माह में ही दिखाई देने लगा था परंतु ओशो ने अपने शरीर को लगभग 5 वर्ष तक जिंदा रखा। इस दौरान वे बहुत ही कमजोर हो गए थे। उनके सभी अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। अंतत: 19 जनवरी, 1990 में ओशो रजनीश ने हार्ट अटैक की वजह से अपनी अंतिम सांस ली।
  • यह भी कहा जाता है कि अमेरिकी जेल में रहते हुए उन्हें थैलिसियम का इंजेक्शन दिया गया था और उन्हें रेडियोधर्मी तरंगों से लैस चटाई पर सुलाया गया जिसकी वजह से धीरे-धीरे ही सही वे मृत्यु के नजदीक जाते रहे।
  • सुप्रसिद्ध लेखिका ‘सू एपलटन’ ने अपनी पुस्तक ‘दिया अमृत, पाया जहर’ में अमेरिका की रोनाल्ड रीगन सरकार द्वारा ओशो को थैलिसियम नामक जहर दिए जाने की घटना का शोधपूर्ण व रोमांचक विवरण प्रस्तुत किया है।
  • आत्महत्या करना अस्तित्व का अनादर है- ओशो
  • प्रवचन के साथ उन्होंने ध्यान शिविर भी आयोजित करना शुरू किया। शुरुआती दौर में उन्हें आचार्य रजनीश के तौर पर जाना जाता था।
  • भारत लौटने के बाद वे पुणे के कोरेगांव पार्क इलाके में स्थित अपने आश्रम में लौट आए। यहीं पर उनकी मृत्यु 19 जनवरी, 1990 को हो गई।
  • उनकी मृत्यु के बाद पुणे आश्रम का नियंत्रण ओशो के क़रीबी शिष्यों ने अपने हाथ में ले लिया। आश्रम की संपत्ति करोड़ों रुपये की मानी जाती है।
  • ओशो के शिष्य रहे योगेश ठक्कर ने बीबीसी मराठी से कहा, “ओशो का साहित्य सबके लिए उपलब्ध होना चाहिए. इसलिए मैंने उनकी वसीयत को बॉम्बे हाई कोर्ट में चैलेंज किया है।”
  • ओशो का डेथ सर्टिफिकेट जारी करने वाले डॉक्टर गोकुल गोकाणी लंबे समय तक उनकी मौत के कारणों पर खामोश रहे. लेकिन बाद में उन्होंने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा कि मृत्यु प्रमाण पत्र पर उनसे ग़लत जानकारी देकर दस्तख़त लिए गए थे।
  • ओशो की मृत्यु पर ‘हू किल्ड ओशो’ टाइटल से क़िताब लिखने वाले अभय वैद्य का कहते हैं, “19 जनवरी, 1990 को ओशो आश्रम से डॉक्टर गोकुल गोकाणी को फोन आया। उनको कहा गया कि आपका लेटर हेड और इमरजेंसी किट लेकर आएं.”
  • डॉक्टर गोकुल गोकाणी ने अपने हलफनामे में लिखा है, “वहां मैं करीब दो बजे पहुंचा। उनके शिष्यों ने बताया कि ओशो देह त्याग कर रहे हैं। आप उन्हें बचा लीजिए। लेकिन मुझे उनके पास जाने नहीं दिया गया. कई घंटों तक आश्रम में टहलते रहने के बाद मुझे उनकी मौत की जानकारी दी गई और कहा गया कि डेथ सर्टिफिकेट जारी कर दें।”
  • ओशो के आश्रम में किसी संन्यासी की मृत्यु को उत्सव की तरह मनाने का रिवाज़ था। लेकिन जब खुद ओशो की मौत हुई तो इसकी घोषणा के एक घंटे के भीतर ही उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया और उनके निर्वाण का उत्सव भी संक्षिप्त रखा गया था।
  • ओशो की मां भी उनके आश्रम में ही रहती थीं। ओशो की सचिव रहीं नीलम ने बाद में एक इंटरव्यू में उनकी मौत से जुड़े रहस्यों पर कहा था कि ओशो के निधन की सूचना उनकी मां को भी देर से दी गई थी।
  • योगेश ठक्कर का दावा है कि उनके आश्रम की संपत्ति हज़ारों करोड़ रुपये है और किताबों और अन्य चीज़ों से क़रीब 100 करोड़ रुपये रॉयल्टी मिलती है।
  • ओशो की विरासत पर ओशो इंटरनेशनल का नियंत्रण है।
  • ओशो इंटरनेशनल ने यूरोप में ओशो नाम का ट्रेड मार्क ले रखा है।
  • पुणे स्थित उनकी समाधि पर लिखी इस बात से ओशो की महानता का अनुमान लगाया जा सकता है: “न कभी जन्मे, न कभी मरे। वे धरती पर 11 दिसंबर, 1931 से 19 जनवरी 1990 के बीच आए थे।”
  • ओशो नमन! उनके निर्वाण दिवस पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि!!

लेखक : नरेन्द्र सिंह चौधरी, भारतीय वन सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं. इनके द्वारा वन एवं वन्यजीव के क्षेत्र में सराहनीय कार्य किये हैं.

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