देहरादून (मनोज श्रीवास्तव): लीडर या नेता की दूरदर्शिता और प्रबंधन की विशिष्टता उन्हें सुसाइड की प्रवृति से रोकती है। इसीलिये किसी लीडर या नेता को सुसाइड करने का समाचार नही मिल पाता है। इसे इस रूप में भी कह सकते है कि नेता का सोशल कांटेक्ट बहुत अच्छा होता है जो उनके लिये शाक एब्जॉर्बर का कार्य करता है। सिंगर, फ़िल्म एक्टर, कालेज स्टूडेंट और उधोगपति, नौकरशाह, इत्यादि को बहुतायत में सुसाइड करते देखा जाता है।
सुसाइड की प्रवृति अधिकांश 15 वर्ष से लेकर 49 वर्ष की आयु वालो में अधिक होती है। क्योंकि इसी अवस्था से व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी उठाने का प्रारंभ करना होता है और 49 वर्ष तक आते-आते व्यक्ति अपने जीवन का मूल्यांकन करने लगता है। अर्थात अपनी जिम्मेदारी न उठा पाने का भय और जीवन मे प्राप्ति का गलत मूल्याकंन उनके सुसाइड का कारण बनता है।
अभी 15 वर्ष का बच्चा अपने सफलता के लिये प्रयास ही नही किया अथवा अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ता नही प्रदर्शित किया अथवा अपना असफलता को जीवन का अनुभव नही समझ पाया, जीवन दर्शन की भोगवादी व्याख्या, इत्यादि जैसे जीवन के प्रति नकारात्मक अवधारणा सुसाइड के कारण बनते है।
दूसरे तरफ 49 वर्ष के आयु वाला व्यक्ति यह सोच कर निराश हो जाता है कि अभी तक हमने जीवन मे कुछ भी प्राप्त नही किया है। वास्तव में जीवन का मूल्यांकन किसी एक बिंदु पर नही किया जा सकता है। जीवन का मूल्यांकन मृत्यु के एक पल पूर्व ही किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त जीवन का मूल्यांकन केवल भौतिक उपलब्धियों के आधार पर भी नही किया जा सकता है। क्योंकि मनुष्य भैतिक शरीर और अभौतिक मन-आत्मा का समुच्चय है। जीवन का आधार भौतिक, मानसिक, भावना और अध्यात्म है। लेकिन इनमें अध्यत्मिक पक्ष अत्यंत महत्वपूर्ण है। आध्यत्म अन्य सभी पक्षो का आधार है। आध्यत्मिकता का सम्बन्ध आत्मा या मन से है अर्थात मनोबल, हिम्मत और उमंग उत्साह से है।
आध्यत्म सभी मानवीय मूल्यों का आधार है। शांति, सुख, आनन्द और सहनशीलता, धैर्यता, परखने की शक्ति, निर्णय करने की शक्ति, सामना कंरने की शक्ति, विस्तार को सार कंरने उसके बाद समाने की शक्ति इत्यादि का सीधा सम्बंध अध्यत्मिकता से है।
कुल मिला कर यदि सुसाइड की प्रवृत्ति से बचना है लीडर की तरह दूरदर्शी बनना होगा,सोशल कांटेक्ट रखना होगा। इसमे सच्चे दोस्त बहूत कारगर होते है। यहाँ दोस्त का अर्थ पारिवारिक सदस्य भी हो सकता है। लेकिन सुसाइड से बचने का सबसे अच्छा उपाय अध्यत्मिमक जीवन को महत्व देना हैं।
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, सहायक निदेशक सूचना एवं लोकसम्पर्क विभाग उत्तराखंड, प्रभारी मीडिया सेंटर विधानसभा, नोडल अधिकारी कुम्भ मेला 2021
Discussion about this post