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क्या हम अपने प्रियजनों के मौन को समझते हैं ?…….

लेखक : नरेन्द्र सिंह चौधरी, भारतीय वन सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं. इनके द्वारा वन एवं वन्यजीव के क्षेत्र में सराहनीय कार्य किये हैं.

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posted on : जनवरी 28, 2024 11:15 अपराह्न
देहरादून : यद्यपि मौन भी भावनाओं को व्यक्त करने का एक तरीका है। दुविधा होने पर या किसी संकट में, या मानसिक अथवा शारिरिक पीड़ा होने पर लोग अक्सर चुप हो जाते हैं क्योंकि उन्हें कोई ऐसा बोलने वाला नहीं मिलता जिससे वे अपना दिल खोलकर अपने मन की भावना व्यक्त कर सकें और जीवन की अनसुलझी समस्याओं का समाधान ढूँढ सकें। कभी-कभी, किसी के शब्द, कार्य या जीवन परिस्थितियाँ लोगों को इतना आहत कर देती हैं कि उन्हें उनसे निपटना मुश्किल हो जाता है। यदि उन्हें ऐसा कोई नहीं मिलता जो उन्हें लगता है कि उन्हें समझ सकता है, तो वे यकायक मौन हो जातें हैं।
यदि हम पाते हैं कि हमारा कोई प्रियजन शांत हो गया है, तो हमें उनसे अवश्य ही बातचीत करनी चाहिए। उन्हें महसूस कराएं कि वे अकेले नहीं हैं और वे आप पर भरोसा कर सकते हैं। कभी-कभी, लोगों को किसी ऐसे व्यक्ति की ज़रूरत होती है जिससे वे खुलकर बात कर सकें। असल में हम इस डिजिटल दुनिया में इतने अधिक मशगूल हो गयें हैं कि हमने आपस में बात करना लगभग बन्द सा कर दिया है। यह हम सबके लिये घातक है। हमें रोज कम से कम 10 ऐसे लोगों से चलभाष पर बात करनी चाहिए, जिनसे हमने गत एक वर्ष से कोई बात नहीं की है। इसके लिए अपने चलभाष में A से शुरू करके Z तक सभी लोगों से संवाद स्थापित करके उनकी कुशल-क्षेम पूछनी चाहिए। यह मनोविज्ञान है कि यदि बात करने का अंतराल बढ़ गया है तो वह बढ़ता ही जाता है। हम हर चीज़ कल पर टालने के आदी होते जा रहें हैं।
इसी तरह हमें अपने आस पड़ौस में लोगों से जाकर मिलना चाहिए। अपने साथियों, रिटायर्ड लोगों से, मित्रगणों से गाहे-बगाहे मिलते रहने से जीवन की गुणवत्ता में बढ़ोतरी होती है। जब हम अपने आवास से कहीं लम्बी दूरी की यात्रा पर निकलते है तो हमें यह बोध करना चाहिए कि कौन कौन प्रियजन मार्ग में पड़ेंगे, उनसे मिलने का अवसर नहीं गँवाना चाहिए। इस मेलमिलाप से दोनों परिवारों की प्रसन्नता में वृद्धि होती है। अभी कल ही मेरे सबसे घनिष्ठ मित्र का एक ऑपरेशन के पश्चात आकस्मिक निधन हो गया, तो मुझे बहुत पछतावा हुआ कि हमें उनसे और अधिक मिलना चाहिए था। चलभाष पर हम लगभग रोज बातें करते थे, लेकिन वे कहते कहते भी हमारे घर नहीं आ सके, जिसका मलाल मुझे जीवनभर रहेगा। इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि मिलने के अवसर ढूँढे और मिलने का कोई मौका न गवाएँ। और अपने निकटजनों और प्रियजनों से कृपया संवाद सदैव बनायें रखें।

आइये हम सब

  • 😊 खुश रहें!
  • ❤️ विनम्र बनें!
  • 🥰 सकारात्मक रहें!
  • 😇 अनुकूल बनें!

वो दिल ही क्या जो मिलने की दुआ न करे,

मैं तुझे कभी तुम्हें भूलूँ ये खुदा न करे…

लेखक : नरेन्द्र सिंह चौधरी, भारतीय वन सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं. इनके द्वारा वन एवं वन्यजीव के क्षेत्र में सराहनीय कार्य किये हैं.

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