posted on : दिसम्बर 10, 2021 8:32 अपराह्न
रुड़की। बौद्ध धर्मगुरु दलाईलामा को दस दिसंबर सन्-1989 को शांति नोबल पुरस्कार से नवाजे जाने पर तिब्बती समुदाय की ओर से आयोजित कार्यक्रम में पहुंचे मेयर गौरव गोयल ने कहा कि तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा का जन्म छः जुलाई 1935 को पूर्वोत्तर तिब्बत के तक्तेसेर क्षेत्र में रहने वाले एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। उनका बचपन का नाम ल्हामो थोंडुप था, जिसका अर्थ है, मनोकामना पूरी करने वाली देवी। बाद में उनका नाम तेंजिन ग्यात्सो रखा गया। उन्हें मात्र दो साल की उम्र में 13वें दलाई लामा थुबटेन ज्ञायात्सो का अवतार बताया गया था। उन्होंने कहा कि छः साल की उम्र में ही मठ के अंदर उनको शिक्षा दी जाने लगी।
पूजा में बीटीएमसी के सचिव एन दोरजी व विभिन्न बौद्ध मंदिरों के धर्मगुरु शामिल हुए। दलाई लामा’ एक मंगोलियाई पदवी है,जिसका मतलब होता है- ज्ञान का महासागर और दलाई लामा के वंशज करुणा, अवलोकितेश्वर के बुद्ध के गुणों के प्रकट रूप माने जाते हैं। बोधिसत्व ऐसे ज्ञानी लोग होते हैं,जिन्होंने अपने निर्वाण को टाल दिया हो और मानवता की रक्षा के लिए पुनर्जन्म लेने का निर्णय लिया हो।
गंग नहर कोतवाली इंस्पेक्टर ऐश्वर्या पाल ने भी तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा को एक महान और शांति का प्रतीक बताते हुए उनके जीवन चरित्र पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर तिब्बती समुदाय की ओर से मेयर गौरव गोयल तथा इंस्पेक्टर ऐश्वर्या पाल को शाल आदि भेंट कर सम्मानित किया गया, वहीं तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा के नोबेल पुरस्कार मिलने के 32 वर्ष पूर्ण होने पर केक काटकर खुशियां मनाई गई।