दिल्ली : विगत कुछ महीनों में ही दिल्ली और आस पास के इलाकों में भूकंप के हलके ही सही लेकिन चार पांच झटके आ चुके हैं. मई माह में तूफान अम्फन तथा जून के पहले हफ्ते में तूफान निसर्ग आया. अम्फन तूफान से ओडिशा और कलकत्ता में भीषण क्षति हुई. और अब ये उत्तराखंड में भीषण तबाही. कई सवाल मन में आते हैं कि इस बार तो बच गयी मुंबई पर यह तूफान क्या जल्द ही वापस आकर मुंबई को फिर तबाह करेगा ?? इस बार तो बच गयी दिल्ली लेकिन क्या जल्द ही किसी बड़े भूकंप के आने की आहट तो नहीं ? इस बार उत्तराखंड, अगली बार क्या बिहार? उत्तरप्रदेश या कश्मीर? उत्तराखंड में आयी भीषण त्रासदी का संकेत भी ग्रहों ने समय से पूर्व ही दे दिया था. आखिर क्यों वैज्ञानिक इसे नहीं भांप पातें ? जिस खतरे को ज्योतिष बगैर किसी संसाधन के वर्षों पूर्व जान लेता है उसे दुनिया भर के वैज्ञानिक हर संभव समर्थन के बावजूद भी क्यों नहीं समझ पाते ?? कहाँ चूक होती है विज्ञान से? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ समय पूर्व जलवायु परिवर्तन पर बातचीत के लिए एकत्रित हुए दुनिया भर के नेताओं से कहा कि अब बातचीत का समय नहीं हैं बल्कि काम करने का समय है.
- आइए समझें कि जलवायु क्या है?
- 1- सबसे पहले तो यह समझें कि जलवायु मौसम नहीं है. इसको एक उदहारण से समझिए. कंप्यूटर साइंस का भाग होते हुए भी आईटी, कंप्यूटर साइंस नहीं है. हमें इसी अंतर को समझना है. जलवायु दो शब्दों से मिलकर बना है. जल और वायु. हम सब जानते हैं कि स्थिर पृथ्वी और आकाश के बीच जल, अग्नि और वायु विचरते हैं. गतिशील रहते हैं. जब हम कहते हैं जलवायु तो इसमें अग्नि भी सन्निहित है. इसे कहते हैं कमल दल पत्र न्याय. एक सौ कमल पत्र को एक के ऊपर एक रखकर एक नुकीली वस्तु से उसपर प्रहार किया जाए तो सिर्फ ऊपर और निचे वाले पत्र में नुकीली वस्तु का प्रहार दिखाई पड़ता है लेकिन वास्तव में वह सभी पत्रों को अपने प्रहार से भेद चुका होता है. ठीक इसी प्रकार यहाँ हमें अग्नि की मौजूदगी दिखाई नहीं देती. इस प्रकार से जब हमारा अध्ययन ही नहीं, हमारी ऑब्जरवेशन भी अधूरी होगी तो हम पूर्ण समाधान तक कैसे पहुंचेंगे? सबसे पहले जरूरी है जलवायु को देखने का नजरिया बदलना.
जल + तेज + वायु इनको समझना. जल में सन्निहित नैसर्गिक गुण-रस को समझना, तेज में सन्निहित नैसर्गिक गुण-अग्नि या ऊर्जा को समझना और वायु में सन्निहित नैसर्गिक गुण-स्पर्श को समझना. इनके नैसर्गिक गुण में आया हल्का सा भी बदलाव पृथ्वी पर प्रलय लाने वाला होगा. इन तीनों को प्रदूषण से मुक्त करना होगा. हमें अपने अध्ययन का दायरा बढ़ाना होगा. जल और वायु के साथ अग्नि को भी शामिल करना होगा . नदियों में आए बाढ़ को, उफान को तो नियंत्रित किया जा सकता है लेकिन समुद्र में आए सुनामी को क्या हम नियंत्रित कर पाएंगे? यही अंतर है मौसम और जलवायु में . नदी है मौसम तो समुद्र है जलवायु.
2 – इसका एक दूसरा पक्ष भी है. छान्दोग्य उपनिषद के अनुसार- भूमण्डल पर जो हम मनुष्य रहते हैं, हमारे ऊपर यह निर्भर है कि हम शेष तेरह भुवनों को दिव्यता प्रदान करें या मलिनता. इसका क्या अर्थ हुआ? इसका अर्थ यह कि यह give and take का दो तरफा मामला है. हमें इन दोनों पक्षों को मिलकर अध्यन करना होगा. शोध करनी होगी. खोज करना होगा. तभी हम किसी कारगर निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं.
3- उद्गमस्थल का गुण धर्म समझना
जल की अगर बात करें तो नदियों की बात स्वतः ही होगी. नदियों में गंगा नदी का उद्गमस्थान चंद्र मंडल, जमुना नदी का उद्गम स्थान अग्नि मंडल और सरस्वती नदी का उद्गम स्थान सूर्य मंडल माना गया है. गंगा, जमुना, सरस्वती में अगर विकृति आती है तो चन्द्रमण्डल, सूर्यमण्डल और अग्निमण्डल में भी विकृति आएगी यह तय हुआ. इन्हे समझने की प्रक्रिया जटिल है लेकिन असम्वभ नहीं है.
वायु प्रदूषण – स्थूल प्रदूषण को तो सभी देख पाते हैं लेकिन सूक्ष्म प्रदूषण को कितने लोग देख पाते हैं? हमारी दूषित सांस के द्वारा भी वायु दूषित होती है.
जल प्रदूषण- मल, मूत्र के माध्यम से जल को दूषित किया जाता है.
इन दोनों के साथ अग्नि प्रदूषण को समझना होगा. इंफ्रारेड रेडिएशन को समझना होगा. कार्बन के मूलभूत संरचना और स्वाभाव को समझना होगा. वायुमंडल में कार्बन की मात्रा घटती, बढ़ती रहती है जिसकी वजह से धरती पर हिमनदों का जमना और पिघलना होता रहता है. इसके असामान्य रूप से घटने और बढ़ने की वजह से पृथ्वी पर महाप्रलय की स्थिति बन जाती है.
4 – ज्योतिष – चंद्र, सूर्य, बुध, शनि, शुक्र, राहु और मंगल के साथ अग्नि तत्व राशि, जल तत्व राशि और वायु तत्व राशि के साथ देश, काल और पात्र को मिलाकर विश्लेषण करना होगा.कूर्म चक्र के माध्यम से दिशा और स्थान का भान करना होगा. ग्रहों के चाल में आये परिवर्तन का प्रभाव मौसम पर पड़ता है यह तो तय है . इसे तो हम सब महसूस कर पाते हैं पर जलवायु पर इसके प्रभाव के लिए हमें निरंतर शोध द्वारा, पृथ्वी और आकाश के साथ जल, अग्नि और वायु के दरम्यान बनने वाली घनिष्ठता को बारीकी से समझना होगा. ग्रहों द्वारा बनने वाले योगों को स्थान के साथ लयबद्ध करना होगा क्योंकि एक ही योग चेरापूंजी में तो खूब बारिश की स्थिति बनाता है और वही योग राजस्थान में चेरापूंजी की अपेक्षा काफी कम बारिश करवाता है. यहाँ स्थान की महत्ता सिद्ध होती है.
5 – इतिहास : पिछले दो सौ वर्षों का इतिहास देखें तो पाएंगे कि 2019 में सबसे ज्यादा चक्रवातीय तूफान का निर्माण अरब सागर में देखा गया है. इसकी वजह क्या है? यह विचार करना चाहिए कि सृष्टि को किस प्रकार के विकास का स्वरुप मान्य है क्योंकि हमें यह बहुत बड़ी गलतफहमी है कि हम सृष्टि को बनाते हैं जबकि वस्तुस्थिति ठीक इसके उलट है. विकास को वेद आदि शास्त्रों के अनुसार परिभाषित किये जाने का प्रयास शुरू किया जाना चाहिए. नहीं तो हम दिशाहीन बैठक-पर-बैठक और सम्मलेन-पर -सम्मलेन करते रह जाएंगे और एक दिन काल के ग्रास बन जाएंगे.
6 -भागवत के प्रथम स्कंध में ही कहा गया है – जीवो जीवस्य जीवनम. इसमें सन्निहित सन्देश को समझकर, जलवायु परिवर्तन को समझने की दिशा में जो भी प्रयास किये जायेंगे वह कारगर होंगे.
7 – पर्यावरणविद कहाँ चूक रहे हैं – जल और वायु के बीच अग्नि की उपस्थिति भी है इसको जब तक नहीं स्वीकारेंगे तब तक हवाई किला ही बनाते रह जायेंगे. इसे ऐसे समझें जब हम कहते हैं एक (1) तो इसमें बगैर कहे शून्य सन्निहित है. इसी सिद्धांत को जब हमने स्वीकारा तब कंप्यूटर का अविष्कार करने में सफल हुए. एक कहने का अर्थ ही है शून्य से पहला. इसी प्रकार से यहाँ भी देखने की जरूरत है.
सूर्य पर होने वाले विचलन को इस अध्ययन में शामिल करना पड़ेगा. कुछ समय पूर्व अपने शोध द्वारा मैंने यह जाना की जब जब सूर्य और केतु एक दूसरे के साथ खास कोनिये सम्बन्ध में जाते हैं तब तब पृथ्वी पर युद्ध की स्तिथि बनती है, अशांति बढ़ती है और प्राकृतिक आपदाओं का प्रकोप तीव्र होता है.समय रहते नए सिरे से अगर जलवायु परिवर्तन पर विचार करना शुरू नहीं किया गया तो परिणाम घातक होंगे.
ग्रहों की बदलती हुई चाल और उनके आधार पर बनने वाले योगों के आधार पर मार्च, मई, जून, अक्टूबर, नवंबर, दिसंबर’2021, जनवरी 2022, अक्टूबर 2023, अप्रैल 2025 प्रकृति में बदलाव का संकेत दे रहे हैं. आने वाले वर्षों में 2026, 2031 और 2044 ऐसे वर्ष होंगे जब जलवायु परिवर्तन की वजह से बर्फ से ढंके रहने वाला आर्कटिक सागर में बर्फ की कमी होगी. प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि की वजह से तबाही बढ़ेगी. समय रहते सम्बंधित विभाग, ज्योतिष की मदद लें, समय रहते दिशा और दशा का निर्धारण कर लें तो बहुत बचावकारी हो जायेगा. आइये सब मिलकर काम करें.
लेखिका : कृष्णा नारायण, शिक्षाविद दिल्ली