देहरादून। भगवानपुर निवासी तीन वर्षीय बच्ची गर्विका को खांसी-जुकाम और बुखार होने पर स्थानीय डॉक्टर ने जो सिरप लिख दिया, उसकी ओवरडोज ने उसे मौत के मुंह में पहुंचा दिया। डॉक्टर ने डेक्सामिथार्पन युक्त सिरप लिखा, जो चार साल से कम उम्र के बच्चों को देना पूरी तरह वर्जित है। परिजनों ने एक बार में ही 40-50 एमएल सिरप पिला दिया।
नतीजा यह हुआ कि बच्ची का पूरा नर्वस सिस्टम बुरी तरह प्रभावित हुआ और वह कोमा में चली गई। तीन दिन श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल और उसके बाद नौ दिन दून अस्पताल के पीकू (PICU) में जिंदगी और मौत से जूझने के बाद आखिरकार बच्ची ने नई जिंदगी पाई। दून अस्पताल में उसे चार दिन तक वेंटिलेटर पर रखना पड़ा।
दून अस्पताल के एमएस डॉ. आरएस बिष्ट ने बताया कि 29 नवंबर को बच्ची को गलत दवा देने के बाद उसकी हालत तेजी से बिगड़ी। पहले रुड़की के निजी अस्पताल और फिर श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल ले जाया गया। तीन दिन वहां भर्ती रहने के बाद दो दिसंबर को बच्ची को दून अस्पताल लाया गया। यहां बाल रोग विभाग की डॉ. तन्वी सिंह, डॉ. आयशा इमरान, डॉ. आस्था भंडारी और डॉ. कुलदीप की टीम ने दिन-रात एक कर बच्ची की जान बचाई। दस दिसंबर को हालत पूरी तरह स्थिर होने पर उसे डिस्चार्ज कर दिया गया।
डॉ. बिष्ट ने चेतावनी दी है कि डेक्सामिथार्पन (Dexamethasone) युक्त कोई भी दवा चार वर्ष से कम उम्र के बच्चों और गर्भवती महिलाओं को नहीं दी जानी चाहिए। यह दवा नर्वस सिस्टम को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है और ओवरडोज जानलेवा भी साबित हो सकती है।
डॉक्टरों की सख्त हिदायत
- बच्चों की छोटी-मोटी बीमारी में भी सिर्फ बाल रोग विशेषज्ञ (पीडियाट्रिशियन) को दिखाएं।
- झोलाछाप डॉक्टरों, इंटरनेट की सलाह या मेडिकल स्टोर की दवा पर भरोसा न करें।
- बिना डॉक्टरी परामर्श के कभी भी बच्चों को कोई सिरप या दवा न दें, खासकर स्टेरॉयड युक्त दवाएं।
डॉ. बिष्ट ने कहा, “यह मामला उन सभी अभिभावकों के लिए सबक है जो बच्चों को खुद दवा देते हैं या गैर-जिम्मेदार लोगों के भरोसे इलाज कराते हैं। एक गलती पूरे परिवार को हमेशा के लिए रुला सकती है।”


