कोटद्वार (शैलेन्द्र सिंह) : वैसे तो जानवरों और पक्षियों से इंसान का प्यार कोई नयी बात नहीं है। युगों से इंसान पशु-पक्षियों से प्यार करता रहा है। दुनिया में कई सारे लोग हैं, जो पक्षियों और जानवरों से बेहद प्यार करते हैं। कई लोगों ने कुत्ता, बिल्ली ,गाय जैसे जानवरों को ऐसे अपना लिया है कि वे उन्हें अपने घर-परिवार का बेहद अहम हिस्सा मानते हैं। कई लोग ऐसे भी हैं जो जानवरों को अपने बच्चे मानते हैं और वे उनका पालन-पोषण वैसे ही करते हैं, जैसे कि इंसानी बच्चों का किया जाता है। पशु-पक्षियों से इंसान के बेइंतेहा प्यार के कई सारे दिलचस्प किस्से भी हैं, लेकिन सुषमा जखमोला का पशु-पक्षियों से प्यार बहुत अनूठा है, बेहद निराला है। वो कई पशु-पक्षियों की देखभाल उनकी “माँ” की तरह करती हैं। उनके पास एक, दो, तीन या फिर दर्जन-भर कुत्ते नहीं, बल्कि तीन सौ से ज्यादा गोवंश हैं। 75 कुत्ते हैं। चिड़िया, मोर, तोता-मैना, कव्वे उनके घर को अपना घर समझते हैं। दिन-रात, सुबह-शाम, उठते-बैठते सुषमा सिर्फ और सिर्फ इन्हीं जानवरों और पक्षियों के बारे में सोचती हैं और उन्हीं के लिए काम करती हैं। वे ये कहने से ज़रा-सा भी नहीं झिझकती कि ये सारे जानवर और पक्षी उनके बच्चे हैं और वे इन सब की “माँ” हैं ।
पशु-पक्षियों के प्रति सुषमा की ममता, उनका प्यार-दुलार, त्याग और वात्सल्य कई लोगों के लिए कल्पना से परे है, लेकिन जीवन में सुषमा को दुःख और पीड़ा काफी मिली। इंसानों से प्यार नहीं, नफ़रत मिली और यही बड़ी वजह भी रही कि उन्होंने पशु-पक्षियों से प्यार किया, उन्हीं के लिए अपना जीवन भी समर्पित किया। बड़ी बात ये भी है कि पैदाइश से ही इंसानों के प्यार से वंचित रहीं सुषमा ने होश संभालते ही पशु-पक्षियों में प्यार ढूँढना शुरू कर दिया था। सुषमा जहाँ कहीं किसी जानवर या पक्षी को ज़ख़्मी और बुरी हालात में देखतीं तो वे उसकी मदद करतीं और सुरक्षित जगह पहुँचाकर ही अपने घर लौटतीं।
सुषमा को एहसास हुआ कि आवारा जानवरों की मदद करके उन्हे बहुत शांति मिलती है और तब उन्होंने “आकृति सेवा संस्थान” की स्थापना की, जो कि पशु कल्याण की तरफ एक पहल है और भटके हुए जानवरों को बचाती है।सुषमा अपना समय घायल जानवरों को दवाई देने और ठीक हुए जानवरों को देखने से पहले पशु-चिकित्सक की मदद से बीमार जानवरों को सेलाइन ड्रीप लगाते हैं। प्रताड़ित करने वाले लोगों के खिलाफ पुलिस शिकायत दर्ज करने से लेकर कचरे के ढेर में भूखे पिल्ले ढूंढने तक, इन लोगों ने सब किया है। हालाँकि, ऐसा नहीं है कि सब लोगों ने सुषमा की दयालु भावना भरी पहल को सराहा। उन्हे अपने गुस्साए पड़ोसियों का भी विरोध झेलना पड़ा।
वर्तमान में लाॅकडाउन के दौरान भी सुषमा व उनके साथियों ने लगभग 14 गायें व 8 कुत्तों का इलाज करवाया है । सुषमा ने बताया कि बुंखाल मेले में बलिप्रथा को रोकने में उनकी मुख्यभूमिका रही है ।
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