नालंदा : छठ महापर्व को लेकर पूरे देश और प्रदेश में जोरदार तैयारी चल रही है। इस महापर्व को लोग बड़े हीं निष्ठा और विधि विधान के साथ मनाते हैं। चार दिवसीय छठ महापर्व में व्रती निर्जला उपवास रहकर पहले अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को अर्घ्य देती हैं वहीं वहीं दूसरे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के साथ चार दिवसीय छठ महापर्व का समापन होता है। लेकिन सवाल है कि आखिर छठ महापर्व का शुभारंभ कहां से और कब हुआ आइए इसे जानने का प्रयास करते हैं।
कहा जाता है कि नालंदा जिला का सूर्य पीठ बड़गांव वैदिक काल से सूर्योपासना का प्रमुख केंद्र रहा है। यहां की महत्ता किसी से छुपी नहीं है। बड़गांव सूर्य मंदिर दुनिया के 12 अर्कों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि यहां छठ करने से हर मुराद पूरी होती हैं। यही कारण है कि देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु यहां चैत एवं कार्तिक माह में छठव्रत करने पहुंचते हैं। इसमें सच्चाई कितनी है यह तो नहीं पता लेकिन मान्यता है कि भगवान सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा बड़गांव से ही शुरू हुई थी जो आज पूरे भारत में लोक आस्था का पर्व बन गया है। मगध में छठ की महिमा इतनी उत्कर्ष पर थी कि युद्ध के लिए राजगीर आये भगवान कृष्ण भी बड़गांव पहुंच भगवान सूर्य की आराधना की थी। राजा साम्ब ने गड्ढे वाले स्थान की खुदाई करके तालाब का निर्माण कराया। इसमें स्नान करके आज भी कुष्ट जैसे असाध्य रोग से लोग मुक्ति पाते हैं। आज भी यहां कुष्ठ से पीड़ित लोग आते हैं और तालाब में स्नान कर सूर्य मंदिर में पूजा अर्चना करने पर उन्हें रोग से निजात मिलती है।
तालाब खुदाई में मिली मूर्तियां
तालाब की खुदाई के दौरान भगवान सूर्य, कल्प विष्णु, सरस्वती, लक्ष्मी, आदित्य माता जिन्हें छठी मैया भी कहते है सहित नवग्रह देवता की प्रतिमाएं निकलीं। बाद में राजा ने अपने दादा श्रीकृष्ण की सलाह पर तालाब के पास मंदिर बनवाकर स्थापित किया था। पहले तालाब के पास ही सूर्य मंदिर था। 1934 के भूकंप में मंदिर ध्वस्त हो गया। बाद में ग्रामीणों ने तालाब से कुछ दूर पर मंदिर का निर्माण कर सभी प्रतिमाओं को स्थापित किया। ऐसी मान्यता है कि इस पवित्र सूर्य तालाब में स्नान कर सूर्य मंदिर में पूजा अर्चना करने मात्र से कुष्ट जैसे असाध्य रोग से मुक्ति मिलती है। छठ महापर्व में पहुंचते हैं लाखों लोग ऐसे तो यहां सालों भर हर रविवार को हजारों श्रद्धालु इस तालाब में स्नान कर असाध्य रोगों से मुक्ति पाते हैं। लेकिन जो कार्तिक एवं चैत माह में लाखों श्रद्धालु यहां आकर विधि विधान से छठव्रत करते हैंं। अगहन और माघ माह में भी रविवार को यहां भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।