देहरादून : श्रेष्ठ टीचर के पीछे देख कर चलने वाले, करने वाले, आगे बढने वालों की लाईन लगी होती है। श्रेष्ठ टीचर दूसरों को सही लाईन में चलाने की जिम्मेदारी लेता है। हम कहा सकते है कि टीचर सही लाईन पर चलाने के निमित्त होता है। यदि टीचर रूक जाता है तब सारी लाईन रूक जाती है।
ऐसी जिम्मेदारी समझकर चलने वाला ही श्रेष्ठ टीचर होता है। जितनी बडी जिम्मेदारी उतना बडा टीचर बनता है। टीचर लाईफ बनाते है, वैसे ही जिम्मेदारी लाईफ बनाने की शिक्षा देती है। ऐसा समझने से टीचर अपने उपर विशेष अटेन्शन रखता है।
जिम्मेदारी बड़ापन लाती है। यदि जिम्मेदारी नही है तो बचपन कहलाता है। जिम्मेदारी होने से आलस्य, लापरवाही समाप्त हो जाता है। श्रेष्ठ टीचर को अपना हर संकल्प, हर कदम के पीछे सोचना चाहिए कि मेरे पीछे कितनी बडी जिम्मेदारी है। जिम्मेदारी हो लेकिन बोझ का अनुभव न हो। बडी जिम्मेदारी बोझ के बजाय खुशी का अनुभव देती है।
श्रेष्ठ टीचर बनने के लिए पहला सर्टिफिकेट है स्वयं से संतुष्ट रखना और दूसरों को संतुष्ट करना। सदा अपने ऊपर अटेन्शन रखने से खुशी का रस मिलता है। ऐसा करने पर हम केवल नियम निभाने वाले नही रहेंगे बल्कि प्राप्ति करने वाले भी बनेगे।
अव्यक्त बाप दादा महावाक्य मुरली 16 अक्टूबर 1975
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, सहायक निदेशक सूचना एवं लोकसम्पर्क विभाग उत्तराखंड
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