चमोली : देवभूमि उत्तराखंड के चमोली जिले में, उर्गम गांव की शांत वादियों में, एक ऐसी शख्सियत रहती है, जो न केवल कला का प्रतीक है, बल्कि पहाड़ों की सांस्कृतिक विरासत का जीवंत संरक्षक भी रामगोपाल जैसे लोग ही हैं। वे कोई साधारण शिल्पकार नहीं, बल्कि एक ऐसी मिसाल हैं, जो अपनी छेनी और हथौड़े से देवदार की लकड़ियों में प्राण फूंककर पहाड़ों की कहानियों को जीवंत करते हैं।
रामगोपाल की उंगलियों में जादू है। उनकी बनाई भगवान गणेश की मूर्तिया और अन्य दैवीय आकृतियां केवल लकड़ी के टुकड़े नहीं, बल्कि हमारी प्राचीन संस्कृति और अटूट आस्था की जीवंत गाथाए हैं। हर नक्काशी में वे सदियों पुराने विश्वास, परंपराओं और पहाड़ी जीवन की गहराई को उकेरते हैं। उनकी कला एक ऐसी किताब है, जिसके हर पन्ने पर हमारी सभ्यता का गौरवशाली इतिहास लिखा है।
रामगोपाल जी का जीवन प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने न केवल कला को जीया, बल्कि उसे अगली पीढ़ियों तक पहुँचाने का संकल्प भी लिया। उनके हाथों से निकली हर रचना यह सिखाती है कि सच्चा कलाकार वही है, जो अपने काम में संस्कृति की आत्मा को जिंदा रखे। वे पहाड़ों की उस धरोहर के रक्षक हैं, जो समय के साथ धुंधली पड़ सकती थी, लेकिन उनके हुनर ने उसे चमकदार बनाए रखा।
चमोली पुलिस रामगोपाल जी के इस समर्पण, उनकी कला और उनके अटूट जज़्बे को सलाम करती है। वे न केवल एक शिल्पकार हैं, बल्कि पहाड़ों की सांस्कृतिक धड़कन हैं, जो हमें अपनी जड़ों से जोड़े रखते हैं। उनकी कहानी हर उस इंसान के लिए प्रेरणा है, जो अपने काम में संस्कृति और विरासत को जीवित रखना चाहता है।


