देहरादून : कई दिन से अलग-अलग मौकों पर सीबीआई जांच की ओर इशारा कर रहे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सोमवार को अचानक परेड ग्राउंड में धरना दे रहे युवाओं के बीच पहुंच गए। उन्होंने स्नातक स्तरीय परीक्षा की सीबीआई जांच कराने की घोषणा कर दी। कहा कि युवाओं पर दर्ज मुकदमे वापस लिए जाएंगे। कहा कि एसआईटी जांच की रिपोर्ट भी जल्द ही आ जाएगी, जिसके आधार पर परीक्षा रद्द भी की जा सकती है। सीएम धामी से सीबीआई जांच की संस्तुति के बाद युवाओं ने धरना स्थगित कर दिया। संघ के अध्यक्ष राम कंडवाल ने इसकी घोषणा की। उन्होंने कहा कि धरना कुछ दिनों के लिए स्थगित किया गया है।
सोमवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने स्नातक स्तरीय परीक्षा की सीबीआई जांच की संस्तुति कर दी, जिसके बाद आंदोलन तो स्थगित हो गया, लेकिन इस जीत का श्रेय लेने की होड़ में सियासत का एक ऐसा रंग देखने को मिला, जिसे देखकर हर कोई कह रहा है – ये जश्न ऐसा, जैसे ‘बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना.!’ आंदोलनरत युवाओं की तपस्या का फल किसी और के घर आतिशबाजी और मिठाइयों के रूप में बंटता देख सोशल मीडिया पर भी लोगों ने अपनी भड़ास निकाली है।
वहीं इसके बाद शुरू हुई श्रेय लेने की होड़। एक के एक कई नेताओं ने सोशल मीडिया के जरिये ये बात कही कि उन्होंने मुख्यमंत्री से मिलकर CBI जांच कराने की बात कही थी। यहीं नहीं पूर्व CM व हरिद्वार सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत के घर तो बड़ी संख्या में कार्यकर्ता पहुँचे। जमकर आतिशबाजी हुई, मिठाइयां बांटी गई। जिसके बाद कि सवाल उठते हैं। CBI जांच की मांग किसने की.? बेरोज़गार संगठन के बैनर तले युवाओं ने। आंदोलन किसने किया.? उन्हीं बेरोजगार युवाओं ने आठ दिन तक धूप, बारिश और त्योहारी सीजन की गर्मी में सड़कों पर कौन डटा रहा.? फिर से वही बेरोजगार युवा। लेकिन जश्न किसके घर पर मनाया गया..? पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के।
आज परेड ग्राउंड में युवाओं की आवाज़ सुनने खुद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पहुँचे और वहीं सीबीआई ( CBI ) जांच की संस्तुति कर दी। यह निर्णय सरकार का था, और मांग आंदोलनरत छात्रों की।
मगर सोशल में वीडियो आये कि पूर्व CM त्रिवेंद्र सिंह रावत के घर कार्यकर्ता जुटे, आतिशबाजी हुई, मिठाइयाँ बंटी पूर्व CM को भी खिलाई गई। जिसके बाद सोशल मीडिया पर लोग फट पड़े—“बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना।” और न जाने लोग सवाल उठाते हुए क्या-क्या लिखने लगे।
असल सवाल यही है—क्या केवल बयान देने से CBI जांच हो जाती है ? अगर ऐसा होता तो NH-74 मुआवज़ा घोटाले और छात्रवृत्ति घोटाले पर अब तक सीबीआई की छानबीन क्यों नहीं हुई.? क्या वहाँ युवाओं ने नारा नहीं लगाया था.?
सच यही है कि जीत बेरोजगार युवाओं की है। उनका संघर्ष ही असली वजह है कि सरकार को सीबीआई जांच की संस्तुति करनी पड़ी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पहल की, लेकिन श्रेय किसी और के दरवाज़े पर पटाखे बजाकर ,और मिठाई खिलाकर क्यों बाँटा जा रहा है.?
युवाओं का खून-पसीना किसी के घर की मिठाई और शोरगुल से छोटा नहीं किया जा सकता। यह उनकी जीत है, उनकी लड़ाई है और उनका हक़ है। बाकी लोग चाहे जितना ढोल पीट लें, इतिहास यही लिखेगा कि सड़कों पर बैठे बेरोज़गार छात्रों ने अपने हक़ की लड़ाई जीती। श्रेय चुराने की राजनीति हमेशा बेनकाब होती है और इस बार भी हो रही है।
मुख्यमंत्री ने युवाओं के बीच पहुंचकर की सीबीआई जांच की घोषणा
दरअसल, पिछले कई दिनों से अलग-अलग मौकों पर सीबीआई जांच की ओर इशारा कर रहे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सोमवार को देहरादून के परेड ग्राउंड में धरना दे रहे युवाओं के बीच पहुंचे। उन्होंने न केवल स्नातक स्तरीय परीक्षा की केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) से जांच की घोषणा की, बल्कि युवाओं पर दर्ज मुकदमे वापस लेने और एसआईटी जांच रिपोर्ट आने पर परीक्षा रद्द करने की संभावना भी जताई। मुख्यमंत्री के इस ठोस आश्वासन के बाद बेरोजगार संघ के अध्यक्ष राम कंडवाल ने कुछ दिनों के लिए आंदोलन स्थगित करने की घोषणा की।
श्रेय लेने की होड़ में राजनीतिक आतिशबाजी
लेकिन, इस घोषणा के ठीक बाद, उत्तराखंड की सियासत में ‘श्रेय’ चुराने की एक अजीबोगरीब होड़ शुरू हो गई। एक के बाद एक कई नेताओं ने सोशल मीडिया के जरिये यह बात कही कि उन्होंने ही मुख्यमंत्री से मिलकर सीबीआई जांच कराने की बात कही थी। हद तो तब हो गई, जब हरिद्वार के सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के आवास पर बड़ी संख्या में कार्यकर्ता उमड़ पड़े। वहां जमकर आतिशबाजी हुई, मिठाइयां बांटी गईं और पूर्व मुख्यमंत्री को भी खिलाई गईं।
यह दृश्य देखकर हर किसी के मन में सवाल उठने लाज़मी थे – सीबीआई जांच की मांग किसने की? बेरोजगार संगठन के बैनर तले आंदोलनरत युवाओं ने। आंदोलन किसने किया? उन्हीं लाखों बेरोजगार युवाओं ने। आठ दिनों तक धूप, बारिश और त्योहारी सीजन की गर्मी में सड़कों पर कौन डटा रहा? वही बेरोजगार युवा। संघर्ष किसका था? उन लाखों युवाओं का, जिनके भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लगा था। लेकिन इस संघर्ष की जीत का जश्न किसके घर पर मनाया गया? पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के, जिन्होंने इस आंदोलन में प्रत्यक्ष रूप से कोई भूमिका नहीं निभाई।
क्या बयान देने भर से होती है सीबीआई जांच?
सोशल मीडिया पर लोगों ने इस ‘श्रेय छीनने’ की राजनीति पर जमकर लताड़ लगाते हुए सवाल उठाया कि क्या महज बयान देने या मुख्यमंत्री से मिलने भर से सीबीआई जांच की संस्तुति हो जाती है? अगर ऐसा होता, तो NH-74 मुआवजा घोटाले और छात्रवृत्ति घोटाले जैसे बड़े मामलों में अब तक सीबीआई जांच क्यों नहीं हुई, जहां न केवल युवाओं ने, बल्कि आम जनता ने भी भरपूर विरोध और जांच की मांग की थी? इससे स्पष्ट होता है कि सरकारों पर दबाव बनाने के लिए ठोस और लगातार आंदोलन की आवश्यकता होती है, न कि कुछ नेताओं के बयानबाजी की।
यह युवाओं की जीत है, उनका संघर्ष है
वास्तविकता यह है कि यह जीत पूरी तरह से उत्तराखंड के संघर्षरत बेरोजगार युवाओं की है। उनके अडिग संघर्ष, धूप-बारिश में डटे रहने और लगातार सरकार पर दबाव बनाने का ही परिणाम है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को स्वयं परेड ग्राउंड आकर सीबीआई जांच की संस्तुति करनी पड़ी। युवाओं के खून-पसीने और उनके दृढ़ संकल्प को किसी भी तरह की दिखावटी आतिशबाजी या मिठाई बांटकर कम नहीं किया जा सकता। यह उनकी तपस्या का फल है, उनकी लड़ाई का परिणाम है और उनका ही अधिकार है।


