● रक्तदान के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए विश्व रक्तदाता दिवस मनाया जाता है।
● रक्तदान स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।
● समाज में रक्तदान को लेकर बहुत से ऐसे मिथक हैं जो रक्तदान पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
● रक्तदान को बढ़ावा देने के लिए समाज में हर किसी की भागीदारी आवश्यक है।
नैनीताल (हिमांशु जोशी): आपके यह आलेख पढ़ने से पहले मैं एक स्वीकरोक्ति करना चाहता हूँ। इस आलेख को लिखने के लिए अध्ययन करने से पहले रक्तदान को लेकर अपनी कुछ भ्रांतियों की वजह से मैंने सिर्फ एक बार अपने मित्र को आपात स्थिति में रक्तदान किया है और उसके बाद मुझे अपने स्वास्थ्य को लेकर अपने परिवार की तरफ से बहुत खरी खोटी सुनने को मिली थी पर मुझे उम्मीद है कि इस आलेख को पढ़ने के बाद मेरा परिवार, मैं और आप सब रक्तदान के लिए प्रेरित होंगें।
रक्त समूह के जनक ऑस्ट्रियाई रोगविज्ञानी कार्ल लैंडस्टेनर जिनका जन्म 14 जून 1869 में हुआ था की याद में वर्ष 2005 से विश्व स्वास्थ्य संगठन हर वर्ष उनके जन्मदिवस पर विश्व रक्तदाता दिवस मनाता है। इस वर्ष विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसका विषय ‘ सुरक्षित रक्त, बचाए जीवन ‘ रखा है और इस बार विश्व रक्तदाता दिवस का नारा है ‘ रक्त दो और विश्व को एक स्वस्थ स्थान बनाओ ‘। यह दिन उन रक्तदाताओं को धन्यवाद देने के लिए मनाया जाता है जो निस्वार्थ भाव से रक्त देकर दूसरों की जान बचाते हैं। इस दिन का प्रयोग कर रक्तदान को लेकर यह जागरूकता फैलायी जाती है कि हर जरूरतमंद को सुरक्षित रक्त प्राप्त हो। ऐसे लोगों को प्रोत्साहित किया जाता है जिन्होंने आज तक रक्तदान नही किया है।
विश्व रक्तदाता दिवस के दिन सभी देशों को यह याद दिलाया जाता है कि विश्व में हमेशा रक्त की पर्याप्त आपूर्ति बनी रहे और समय पर इसकी पहुंच सब तक हो। सुरक्षित रक्त तक अब भी बहुत कम लोगों की पहुंच है और निम्न और मध्यम आय वाले लोग इसके लिए संघर्ष करते हैं। विश्व रक्तदाता दिवस का एक उद्देश्य क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सरकारी और जिम्मेदार संगठनों द्वारा सुरक्षित रक्त उपलब्धता पर निवेश करने और राष्ट्रीय रक्त कार्यक्रमों को मजबूत करने का भी है।
भारत का पहला ब्लड बैंक मार्च 1942 को रेड क्रॉस के संचालन में कोलकाता में खोला गया था। अब भारत में रक्तदान बहुत से संगठनों और अस्पतालों द्वारा रक्तदान शिविरों के माध्यम से होता है। रक्तदाता अस्पतालों में स्थित ब्लड बैंक और सीधे प्राप्तकर्ता को भी रक्त देते हैं।
भारत में 18-65 वर्ष की उम्र के बीच के लोग रक्तदान कर सकते हैं। रक्तदाता का वज़न 45 किलोग्राम से ऊपर होना चाहिए। रक्तदाता शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होना चाहिए। रक्तदाता ने शराब का सेवन ना किया हो। रक्तदाता रक्तदान से फैलनी वाली सभी बीमारियों से मुक्त हो। एक बार रक्तदान करने के बाद पुरुष 90 दिन व महिलाएं 120 दिन बाद फिर से रक्तदान कर सकती हैं।
राष्ट्रीय रक्त आधान परिषद के अनुसार रक्तदान के बाद उपयुक्त मात्रा में तरल पदार्थ पीना चाहिए और कोई भारी काम करने से बचना चाहिए। रक्तदाता को रक्तदान के तुरंत बाद धूम्रपान और ड्राइविंग से बचना चाहिए। रक्तदान के बाद लगे बैंडेज को 6 घण्टे बाद ही निकालना चाहिए और किसी भी प्रकार की समस्या आने पर ब्लड बैंक से सम्पर्क करना चाहिए।
अमेरिकन जनरल ऑफ एपिडेमियोलॉजी द्वारा किए गए एक अध्ययन में फिनलैंड के ऐसे 2682 पुरुषों के नमूने लिए गए जिन्होंने साल में कम से कम एक बार रक्तदान किया था। उनमें रक्तदान ना करने वाले लोगों से दिल का दौरा पड़ने का जोखिम 88% कम था। रक्तदान करते रहने से शरीर में आयरन की मात्रा सन्तुलित रहती है। रक्तदान करने से रक्तदाता के रक्त का विश्लेषण निःशुल्क हो जाता है और उसे अपने शरीर में हेपेटाइटिस, एचआईवी जैसी गम्भीर बीमारियों के होने या ना होने के बारे में जानकारी उपलब्ध हो जाती है।
रक्तदान करने से रक्तदाताओं को इसके शारीरिक और मानसिक लाभ भी मिलते हैं। रक्तदान कर गर्व का अनुभव होता है और रक्तदाता के आत्मविश्वास में भी वृद्धि होती है। इसके बाद भी भारत में स्वैच्छिक रक्तदान करने वालों की संख्या बहुत कम है और देश के ब्लड बैंकों में रक्त की कमी बनी हुई है।
इंडियन जनरल ऑफ मेडिकल एथिक्स की एक रिपोर्ट के अनुसार स्वैच्छिक रक्तदान को प्रोत्साहित करने के लिए समाज में रक्तदान को लेकर जो मिथक हैं उन्हें तत्काल खत्म किए जाने की जरूरत है। किसी की निरक्षरता, रोज़गार की स्थिति और आर्थिक सामाजिक स्थिति भी रक्तदान के मिथकों को लेकर उत्तरदायी है। बीमारी, चक्कर आना, वज़न कम, उच्च रक्तचाप, मोटापा, दौरे, यौन रोगों का डर भी रक्तदान के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण बनाता है।
भारत में वर्ष 1996 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार स्वैच्छिक रक्तदान को बढ़ावा देने, सुरक्षित रक्त आधान सुनिश्चित करने, रक्त केन्द्रों को बुनियादी ढांचा प्रदान करने, मानव संसाधन विकसित करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय रक्त आधान परिषद का गठन किया गया था और पेशेवर रक्तदान पर रोक लगा दी गयी थी। भारत सरकार ने अप्रैल 2002 में राष्ट्रीय रक्त नीति को अपनाया। जिसका उद्देश्य पर्याप्त और सुरक्षित रक्त की आपूर्ति के लिए आसान पहुंच को सुनिश्चित करना और एक राष्ट्रव्यापी प्रणाली विकसित करना है।
राष्ट्रीय रक्त आधान सेवा अधिनियम 2007 के अंतर्गत भारत में पैसे के बदले रक्त बेचना अपराध है। बीबीसी की वर्ष 2015 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में रक्तदान का एक बहुत बड़ा अवैध बाज़ार अब भी चल रहा है। रक्तदान ना करने का एक सबसे बड़ा कारण यह भी है कि लोगों के मन में रक्तदान संगठनों की विश्वनीयता पर भी सवाल होते हैं । अधिकतर लोग सिर्फ अपने परिचितों को ही रक्तदान करते हैं।
एशियन जनरल ऑफ ट्रांसफ्यूजन सांइस के रक्तदान सम्बन्धित शोध पर रक्तदान अधिक करने के लिए जो अनुशंसाएं की गई है उसमें से प्रमुख है कि जनता के मन में रक्तदान से सम्बंधित जो ज्ञान है उसमें सुधार की आवश्यकता है। विद्यालयों के पाठ्यक्रमों में स्वैच्छिक रक्तदान को प्रभावित करने वाले खतरों को बारे में पढ़ाया जा सकता है। एक बार रक्त देने के बाद रक्त बीमा योजना शुरू की जा सकती है। मेरे विचार से रक्तदान का अवैध बाज़ार कोई बड़ी समस्या नही है क्योंकि कालाबाज़ारी उसी चीज़ की होती है जो कम मात्रा में उपलब्ध होती हैं और यदि लोगों के बीच रक्तदान को लेकर जागरुकता फैलायी जाएगी तो यह समस्या खुद ही सुलझ जाएगी।
रक्तदान एक महान कार्य है यह सभी को समझाना होगा। इसके लिए नेताओं, गैर सरकारी संगठनों और आम जनता की भागीदारी आवश्यक होगी। गूगल प्लेस्टोर पर रक्तदान से सम्बंधित अधिक आसान एप बनाने होंगे। सोशल मीडिया पर इसके अधिक प्रचार प्रसार की आवश्यकता है। इस बार कोरोना की वजह से हम विश्व रक्तदाता दिवस के बारे में सरकार से ऑनलाइन ही रक्तदान को लेकर अभियान चलाने की उम्मीद रख सकते हैं।
लेखक : हिमांशु जोशी, टनकपुर, उत्तराखंड।
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