हरिद्वार : रक्षा बंधन जैसे सांस्कृतिक पर्व को पर्यावरण संरक्षण के संदेश से जोड़ने की दिशा में जिला आयुर्वेदिक एवं यूनानी अधिकारी डॉ. स्वास्तिक सुरेश के नेतृत्व में जनपद हरिद्वार में एक अभिनव कार्यक्रम “सीड राखी” प्रारंभ किया जा रहा है। यह कार्यक्रम आयुष विभाग द्वारा संचालित किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य आयुष सेवाओं को जमीनी स्तर तक पहुंचाने के साथ-साथ समुदाय को जागरूक और सहभागी बनाना है।

इस विशेष अभियान के तहत जिले के 12 चिन्हित आयुष्मान आरोग्य मंदिरों के आसपास स्थित राजकीय एवं अशासकीय विद्यालयों में अध्ययनरत बालिकाओं को बीज युक्त राखियाँ (Seed Rakhi) वितरित की जाएँगी। ये राखियाँ विशेष प्रकार की बायोडिग्रेडेबल सामग्री से निर्मित होती हैं, जिनमें विभिन्न प्रकार के स्थानीय उपयोगी पौधों के बीज जैसे – तुलसी, गेंदा, अमरूद, सहजन, नीम या सब्जियों के बीज समाहित किए जाते हैं। यह जैव-अवसादी राखियाँ (Eco-friendly Rakhis) पारंपरिक राखियों के विकल्प के रूप में विकसित की गई हैं, जो त्यौहार के बाद भी उपयोगी साबित होती हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
- बीज राखियाँ को मिट्टी में बोने पर कुछ ही दिनों में अंकुर फूटते हैं और पौधा उगना शुरू हो जाता है।
- इनके माध्यम से पर्यावरणीय अपशिष्ट (Non-Biodegradable Waste) को कम किया जा सकता है।
- सामान्य राखियाँ अक्सर प्लास्टिक आधारित होती हैं और त्योहार के बाद कूड़े में जाकर पर्यावरण को प्रदूषित करती हैं, जबकि सीड राखियाँ पर्यावरण संरक्षण का एक सक्रिय उपाय बन जाती हैं।
- यह विधि बच्चों में पर्यावरणीय चेतना, बागवानी के प्रति रुचि, और हरित जीवन शैली को प्रोत्साहित करती है।
कार्यक्रम की विशेषताएँ
- यह आयोजन रक्षा बंधन पर्व (29 अगस्त 2025) से पूर्व संचालित किया जाएगा।
- प्रत्येक बालिका को राखी के साथ एक गमला या पौधा रोपण हेतु सामग्री दी जाएगी, जिससे वह राखी को बोकर उसका पालन-पोषण कर सके।
- बालिकाओं को पर्यावरण संरक्षण, पौधों की उपयोगिता, औषधीय पौधों के गुण, एवं आयुष जीवनशैली के महत्व के बारे में बताया जाएगा।
- कार्यक्रम में स्थानीय जनप्रतिनिधियों, शिक्षकों, आयुष चिकित्सकों, और ग्रामवासियों की सहभागिता भी सुनिश्चित की जाएगी।
सामाजिक और सांस्कृतिक एकता की मिसाल
डॉ. स्वास्तिक सुरेश ने बताया कि “यह कार्यक्रम केवल राखी बांधने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज में ‘प्रकृति के रक्षण और भाईचारे के संवर्धन’ का प्रतीक बनेगा। जब एक बच्ची अपने भाई की कलाई पर राखी बांधते हुए यह भी कहेगी कि यह प्रकृति को बचाने की राखी है, तो वह आने वाले समय की एक सजग नागरिक बनेगी।”
संभावित प्रभाव
- इस प्रयास से जिले के विभिन्न हिस्सों में बीजों का रोपण संभावित है।
- इससे पर्यावरणीय जागरूकता, हरियाली, और स्थानीय जैव विविधता को बढ़ावा मिलेगा।
- लंबे समय में यह अभियान जलवायु परिवर्तन से लड़ने, कार्बन फुटप्रिंट घटाने, और स्थानीय पौधों की नस्लों के संरक्षण में सहायक हो सकता है।
हरिद्वार जैसे सांस्कृतिक और पर्यावरणीय दृष्टि से महत्वपूर्ण जनपद से यह पहल न केवल उत्तराखंड बल्कि पूरे देश के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण बन सकती है। रक्षा बंधन अब केवल एक पारिवारिक त्योहार नहीं, बल्कि “प्रकृति के साथ रक्षा-संवाद” का पर्व बनने की दिशा में अग्रसर है।


