गोपेश्वर (चमोली)। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के तहत जिला पंचायत सदस्यों के चुनाव में कांग्रेस तथा भाजपा समर्थित प्रत्याशियों की पराजय पर मंथन का दौर शुरू हो गया है। इस तरह की पराजय से दोनों दल सहमे हुए है।
दरअसल भाजपा ने जिला पंचायत सदस्यों के चुनाव में 20 प्रत्याशी मैदान में उतारे थे। कांग्रेस ने 17 प्रत्याशियों पर दांव चला था। चुनाव परिणाम के तहत भाजपा को घोषित 20 प्रत्याशियों में से 4 पर ही जीत हासिल हुई जबकि कांग्रेस को 6 सीटों पर ही जीत मिली। इसके बाद अब पराजय को लेकर दोनों दलों में मंथन चल रहा है और कोई भी दल इस तरह की पराजय को पचा नहीं पा रहा है। चमोली जिला पंचायत के 26 सदस्यीय सदन में 16 निर्दलीय प्रत्याशियों की जीत से दोनों दलों के कान खड़े हो गए है। हालांकि भाजपा ने मटई वार्ड के निर्दलीय जिला पंचायत सदस्य दौलत सिंह बिष्ट को अपने पाले में लाकर अध्यक्ष पद पर आसीन कर दिया है। इसके चलते भाजपा के रणनीतिकार अध्यक्ष की कुर्सी हासिल होने पर सदस्यों की पराजय को भूल गए है। कांग्रेस में तो जीते हुए घोषित प्रत्याशियों ने ही पाला बदल कर भाजपा उम्मीदवार का साथ दिया तो रणनीतिकार इस तरह के पाला बदल को पचा नहीं पा रहे है।
विधानसभा वार परिणामों का विश्लेषण करने पर यही निष्कर्ष निकल रहा है कि दोनों दलों ने प्रत्याशियों को घोषित करने में जनाधार वाले नेताओं को दरकिनार किया। बदरीनाथ विधान सभा क्षेत्र में जिला पंचायत सदस्य के 8 वार्ड है। इनमें भाजपा को किसी एक वार्ड पर भी सफलता नहीं मिली। कांग्रेस ने 2 सीटों पर जीत दर्ज की। यहां भी 6 निर्दलीय प्रत्याशी जीत दर्ज कर गए। यह अलग बात है कि बाद को कांग्रेस ने बदरीनाथ क्षेत्र के उर्गम वार्ड की निर्दलीय जिला पंचायत सदस्य रमा राणा को अध्यक्ष पद का प्रत्याशी बनाया। कर्णप्रयाग विधान सभा क्षेत्र के 8 वार्डों में से कांग्रेस को 2 वार्डों पर जीत मिली। भाजपा को भी 2 ही सीटों पर जीत हासिल हुई। इस तरह यहां भी 4 निर्दलीय प्रत्याशी जीत दर्ज कर गए। थराली विधान सभा क्षेत्र के 10 वार्डों में से भाजपा 2 ही वार्डों पर जीत मिली। कांग्रेस को भी 2 ही सीटों पर जीत हासिल हुई। यहां भी 6 सीटों पर निर्दलियों का दबदबा रहा। कांग्रेस की स्थिति यह भी रही की उसके जीते हुए सदस्य अध्यक्ष पद पर पार्टी को दगा दे गए।
इस तरह की स्थिति से कांग्रेस के रणनीतिकार हैरान परेशान हो गए है। भाजपा में भी प्रत्याशियों के चयन को लेकर सवाल खडे होने लगे है। सत्तारूढ भाजपा में इस तरह की सदस्यों की पराजय को लेकर भीतर ही भीतर मंथन का दौर प्रारंभ हो गया है। इस तरह की पराजय को भाजपा के तमाम लोग भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं मान रहे है। इसी तरह के हालात कांग्रेस के भी हैं। कांग्रेस की स्थिति भी भविष्य के लिहाज से अच्छी नहीं मानी जा रही है। अब जबकि इस तरह की पराजय को लेकर मंथन का दौर प्रारंभ हो गया तो भीतर ही भीतर टिकट वितरण करने वालों पर सवाल खड़े होने लगे है। कांग्रेस के जिलाध्यक्ष मुकेश नेगी ने तो पार्टी के खराब प्रदर्शन की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा तक दे डाला है। भाजपा में भीतर ही भीतर इस सवाल पर उंगलियां उठ तो रही है किंतु कोई भी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है।


