कोटद्वार । उत्तराखंड फेडरेशन ऑफ मिनिस्ट्रीयल सर्विसेज एसोसिएशन गढ़वाल मण्डल ने कर्मचारियों के मंहगाई भत्ते स्थगित करने का विरोध किया है। एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने कहा कि सरकार मंहगाई भत्ते को रोकने के स्थान पर इसके ऐरियर का भुगतान न करती, जनवरी के ऐरियर की घोषणा जून में करती एवं जुलाई के एरियर की घोषणा दिसम्बर में करती और इसके बीच के महीनों में मिलने वाला बकाया का भुगतान न करती तो शायद सरकार के पास काफी फंड इकट्ठा होता। उन्होंने कहा कि सरकार दायित्वधारी मंत्रियों के वेतन, भत्तों में कटौती करें, जिन विधायको, सांसदों, मंत्रियों को दो दो ,तीन तीन पेंशन मिल रही है उसको मर्ज करके एक ही पेंशन देने का प्रावधान करें, राजनीतिक दलों को जो अरबों रूपये का चंदा मिला हुआ है उसका 50 प्रतिशत सीधे प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री राहत फंड में डालने का प्रावधान करें जिन विधायकों सांसदों मंत्रियों की सम्पत्ति एक करोड़ से ज्यादा है उनके वेतन में 50 फीसदी की कटौती सरकार कर सकती है।
जनरल ओबीसी एसोसिएशन के मुख्य संयोजक सीताराम पोखरियाल ने कहा कि गढवाल मण्डल कर्मचारियों के मंहगाई भत्ते को इसलिए स्थगित किया गया कि सरकारों को इस महामारी से लड़ने के लिए फंड चाहिए जो सही भी है। सरकारी कर्मचारी, शिक्षक इस विपदा के समय हर प्रकार से सरकार के साथ है वो अपने वेतन से एक से लेकर तीन दिनों तक की कटौती करवा चुका है, तमाम जगह लाखों चंदा इकट्ठा कर चुके हैं । फूड पैकेट, मास्क, सैनेटाइजर्स वितरित किये जा रहे हैं, यानि हर तरीके से इस महामारी से लड़ने के लिए सरकार के साथ खड़ा हुआ है। सरकार ने मंहगाई भत्ते को रोकने से पहले देश से लेकर प्रदेशों के कर्मचारी संगठनों से वार्ता तक नहीं की एवं एकतरफा फैसले को लागू कर दिया इससे लाखों कर्मचारी एवं पेंशनधारी प्रभावित होगें। वे कर्मचारी प्रभावित होगें जो आने वाले महीनों में रिटायर होने जा रहे हैं। एक सरकारी कर्मचारी की आय का साधन मात्र उसका वेतन होता है जिससे वो बच्चों की फीस, घर का किराया, बैंक किश्त एवं घर चलाता है । क्या मंहगाई भत्ता रोकने से सरकार फीस कम करेगी ,ईएमआई कम होगी, मंहगाई कम होगी।
पोखरियाल ने कहा कि एनपीए का बहुत बड़ा हिस्सा जो कोरपोरेट का माफ किया जा रहा है उससे भी सख्ती से वसूला जा सकता है। सरकार के पास अंशदायी पेंशन स्कीम का साढे़ चार लाख करोड़ रूपया पड़ा हुआ है उसको पुरानी पेंशन स्कीम में बदलकर इस फंड का भी प्रयोग कर सकती है क्योंकि एनपीएस 2004 से लागू हुआ है एवं अभी 2004 में भर्ती हुए कर्मचारी रिटायर भी नहीं होने वाले है इससे सरकार पर तात्कालिक कोई आर्थिक भार नहीं पड़ने वाला है इसलिए एनपीएस को ओपीएस में बदलकर इस बहुत बड़ी राशि का प्रयोग किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सरकार के हर फैसले के साथ सरकारी कर्मचारी, शिक्षक है। इस महामारी में वो ही कोरोना वारियर्स है चाहे वे डॉक्टर, पुलिस कर्मी, नर्स या सफाई कर्मी या बाजार में खाद्यान्न की पूर्ति करते खाद्य विभाग के कार्मिक। ऐसे हालात में इन पर आर्थिक वार करना इनके मनोबल को गिराने जैसा है। ये परम्परा सरकारी कार्मिकों के आर्थिक हितों पर दूरगामी प्रभाव डाल सकती है।



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