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IIT ने सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में भारत-जापान द्विपक्षीय अनुसंधान परियोजना के तहत ICSSR और JSPS के साथ किया कोलॉबरेट

आईआईटी (IIT) रुड़की ने सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में भारत-जापान द्विपक्षीय अनुसंधान परियोजना के तहत ICSSR (भारत) और JSPS (जापान) के साथ कोलॉबरेट किया

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posted on : जून 28, 2022 11:48 अपराह्न
रुड़की : शहरी-ग्रामीण सातत्य पर कोविड (COVID) 19 महामारी प्रेरित रिवर्स माइग्रेशन के आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभाव का विश्लेषण करने के लिए, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की (IIT रुड़की), इंस्टीट्यूट ऑफ ग्लोबल एनवायरनमेंट स्ट्रेटेजिज़ (वैश्विक पर्यावरण रणनीति संस्थान), जापान तथा कीओ विश्वविद्यालय, जापान भारत-जापान द्विपक्षीय परियोजना को लागू करने के लिए सहयोग किया जिसका शीर्षक “पारिस्थितिकी तंत्र केंद्रित ग्रामीण पुनरोद्धार: शहरी-ग्रामीण विरोधाभास को पोस्ट कोविड ​​​​रेजिंलियेंट रिकवरी की सहायता से पाटना”।
यह परियोजना संयुक्त रूप से भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR), भारत और जापान सोसाइटी फॉर द प्रमोशन ऑफ साइंस (JSPS) द्वारा वित्त पोषित थी। यह द्विपक्षीय सहयोगात्मक अनुसंधान भारत में हरिद्वार और जापान में कानागावा प्रान्त सहित क्रमश दो चयनित अध्ययन स्थलों पर ध्यान केंद्रित करेगा। हरिद्वार एक पवित्र हिंदू तीर्थस्थल है, जो बाद में 2000 में उत्तराखंड राज्य के गठन और 2002 में SIIDCUL (स्टेट इंफ्रास्ट्रक्चर एंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन उत्तराखंड लिमिटेड) के निर्माण के बाद एक प्रमुख औद्योगिक केंद्र बन गया।
पहली परियोजना कार्यशाला 27 जून, 2022 को आईआईटी रुड़की में मानविकी और सामाजिक विज्ञान विभाग के समिति कक्ष में आयोजित की गई थी। कार्यशाला का उद्देश्य सामाजिक और पर्यावरण पर बातचीत करने के लिए विशेषज्ञों और प्रमुख हितधारकों को एक आम मंच पर लाने के साथ शहरी-ग्रामीण सातत्य पर कोविड (COVID)-19 महामारी से प्रेरित रिवर्स माइग्रेशन के प्रभाव और कैसे रिवर्स माइग्रेशन द्वारा शहरी-ग्रामीण द्वंद्व को एक अवसर के रूप में बदला जा सकता है? इस पर चर्चा हुई।
इस उद्देश्य पर प्रकाश डालने के लिए कार्यशाला में प्रतिष्ठित विद्वानों और पुरस्कार विजेताओं जैसे प्रोफेसर सुबीर सेन, मानविकी और सामाजिक विज्ञान विभाग, आईआईटी रुड़की; प्रोफेसर अनिंद्य जयंत मिश्रा, मानविकी और सामाजिक विज्ञान विभाग प्रमुख, आईआईटी रुड़की; डॉ. बिजोन के.आर. मित्रा, आईजीईएस जापान; प्रोफेसर अजीत कुमार चतुर्वेदी, निदेशक, आईआईटी रुड़की; डॉ. अनामित्रा अनुराग डंडा, निदेशक, सुंदरवन कार्यक्रम, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया; प्रोफेसर. दिनेश के. नौरियाल, मानविकी और सामाजिक विज्ञान, आईआईटी रुड़की; डॉ. राजर्षि दासगुप्ता, आईजीईएस जापान; ऋचा, पीएचडी स्कॉलर, मानविकी और सामाजिक विज्ञान विभाग, आईआईटी रुड़की; एमडी रियाज, पीएचडी स्कॉलर, मानविकी और सामाजिक विज्ञान विभाग, आईआईटी रुड़की; शुभम शर्मा, पीएचडी स्कॉलर, मानविकी और सामाजिक विज्ञान विभाग, आईआईटी रुड़की; प्रोफेसर समीर देशकर वास्तुकला और योजना विभाग, विश्वेश्वरैया राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (वीएनआईटी), नागपुर; प्रोफेसर राजीव शॉ, कीयो विश्वविद्यालय, जापान; प्रोफेसर. उत्तम कुमार रॉय, एसोसिएट प्रोफेसर एंड हेड सेंटर फॉर ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम (CTRANS) (आंतरिक विशेषज्ञ), आईआईटी रुड़की; प्रोफेसर डी. भरत/भारत, सहायक प्रोफेसर, मानविकी और सामाजिक विज्ञान विभाग (आंतरिक विशेषज्ञ), आईआईटी रुड़की ने शिरकत की।
परियोजना का अवलोकन प्रस्तुत करते हुए डॉ. बिजोन के.आर. मित्रा, आईजीईएस जापान, ने बताया, “शहरी और ग्रामीण क्षेत्र दृढ़ता से परस्पर जुड़े हुए हैं और मजबूत संबंधों को समझने की ये विफलता ग्रामीण खाद्य-ऊर्जा-जल की कड़ी की स्थिरता को प्रभावित कर सकती है। प्रस्तावित शोध भारत और जापान में अपनाई गई नीतियों पर जोर देगा, जो प्रमुख आर्थिक क्षेत्रों का समर्थन करते हैं तथा उन्हें आपदाओं के प्रति लचीला बनाते हैं”।
अपेक्षाओं और चुनौतियों के बारे में बात करते हुए, कीओ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर राजीव शॉ ने कहा, “प्रस्तावित अनुसंधान प्रकृति में बहु-विषयक है और एक पहलू प्राकृतिक संसाधनों की मांग को पूरा करने के लिए तथा एक पारिस्थितिकी तंत्र की पारिस्थितिक क्षमता का आंकलन करने के लिए एक नया सामान्य (न्यू नॉर्मल) पद्धति विकसित करना है। हालाँकि, प्रमुख चुनौती उन सफल पहलुओं की पहचान करना है जो अर्थव्यवस्थाओं को पुराने से सामान्य की ओर ‘बाउंस बैक’ के बजाय ‘ बाउंसिंग फॉरवर्ड’में मदद करती हैं।”
सामाजिक प्रभाव पर बात करते हुए, आईआईटी (IIT) रुड़की के निदेशक, प्रोफेसर अजीत के चतुर्वेदी ने कहा, “यह परियोजना COVID-19 युग के बाद विकेंद्रीकृत विकास की ओर अपनी अर्थव्यवस्था के विविधीकरण के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों के इको-सिस्टम केंद्रित पुनरोद्धार के मार्ग को प्रदर्शित करेगी। जटिल समस्याओं के समाधान खोजने के लिए फिर से पहिये के आविष्कार करने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन सतत विकास रणनीतियों की पहचान करने के लिए सीखने के क्रॉस-डिसिप्लिन और क्रॉस-कंट्री का उपयोग करना आवश्यक है।”
रिवर्स माइग्रेशन और COVID-19 के बारे में बात करते हुए, डॉ. अनामित्रा अनुराग डंडा, निदेशक, सुंदरवन प्रोग्राम, WWF-इंडिया, ने कहा, “कोविड-19 के बाद लॉकडाउन ने राज्य में कमाई को प्रभावित किया है क्योंकि उद्योग और पर्यटन दोनों ठप हो गए हैं। यह समझते हुए कि शहरी-ग्रामीण सातत्य पर COVID 19 महामारी प्रेरित रिवर्स माइग्रेशन का आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभाव, COVID-19 आर्थिक सुधार के लिए स्थानिक राजधानियों के एकीकरण का मार्गदर्शन करेगा। ”
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