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भू- वैज्ञानिकों ने किया आपदाग्रस्त धराली का निरीक्षण

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posted on : अगस्त 15, 2025 11:54 अपराह्न

उत्तरकाशी : औद्योगिक विकास विभाग की ओर से गठित भूवैज्ञानिकों के दल ने आपदा प्रभावित क्षेत्र धराली-हर्षिल में क्षेत्रीय भ्रमण किया। दल की ओर से द्वारा धराली आपदाग्रस्त क्षेत्र का भूगर्भीय निरीक्षण कर सम्भावित खतरे एवं बचाव हेतु उपाय का अध्ययन किया जा रहा है।

हर्षिल में विशेष रूप से नगर के सामने ऊपरी हिस्से में और सेना शिविर के पास एक स्थानीय धारा (गदेरा) तेलगाड़ तीव्र वर्षा के कारण सक्रिय हो गई। इस गदेरे में बड़ी मात्रा में मलबा और पानी आकर भागीरथी नदी के संगम पर जमा हो गया और एक बड़ा जलोढ़ पंख बना दिया। इस पंख ने भागीरथी नदी के मूल चैनल को बाधित कर दिया और नदी के दाहिने किनारे पर एक अस्थायी झील का निर्माण किया।

इस नई बनी झील की लंबाई लगभग 1,500 मीटर थी और इसकी अनुमानित गहराई 12 से 15 फीट थी। जलभराव ने न केवल राष्ट्रीय राजमार्ग के एक हिस्से और एक हेलीपैड को डुबो दिया, बल्कि हर्षिल नगर में भी गंभीर खतरा पैदा कर दिया, जिससे नगर की जमीन के तल का क्षरण हो रहा था। इस घटना ने भागीरथी नदी के स्थलाकृति को काफी बदल दिया।

पहले दाहिने किनारे पर स्थित रेत का टीला कट किया गया, जबकि कटे हुए रेत के टीले के विपरीत बाईं ओर ताजा अवसाद जमा हो गया, जिससे हर्षिल नगर का उत्तरी भाग उजागर हो गया। इस क्षेत्र में निरंतर तल का संरक्षण पहले से ही आंशिक संरचनात्मक क्षति का कारण बन चुका था, जिसमें जीएमवीएन गेस्ट हाउस के एक हिस्से की हानि शामिल थी।

भूवैज्ञानिक टीम द्वारा दिनांक 12 अगस्त 2025 को किये गये निरीक्षण से पता चला कि भागीरथी नदी का बायां किनारा संतृप्त जलोढ़ पंख द्वारा अवरुद्ध था। इसकी उच्च आर्द्रता सामग्री के कारण, पंख कमजोर था, जिससे भारी मशीनरी जैसे जेसीबी व पोकलैंड को तैनात नहीं किया जा सकता था – जो स्थानीय रूप से उपलब्ध एकमात्र उपकरण था। मैनुअल श्रम संसाधन भी सीमित थे।

क्षेत्र के आंकड़ों और उपलब्ध संसाधनों के आधार पर, भूवैज्ञानिकों ने आंशिक प्रवाह को बहाल करने के लिए एक आपातकालीन वैज्ञानिक मलबा निकासी और चैनेलाइजेशन योजना तैयार की। योजना में धीरे-धीरे रुके हुए पानी को छोड़ने के लिए लगभग 9-12 इंच गहराई के छोटे विचलन चैनल बनाने शामिल थे।

जिला मजिस्ट्रेट, उत्तरकाशी और अरुण मोहन जोशी, आईजी पुलिस (बचाव और प्रतिक्रिया अभियान के प्रभारी) के साथ चर्चा के दौरान, यह जोर दिया गया कि झील के बहिर्वाह चैनलों को तीन या चार चरणों में खोला जाना चाहिए ताकि अचानक नीचे की ओर बाढ़ न आए। राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (एसडीआरएफ) एंव सिंचाई विभाग उत्तरकाशी द्वारा तत्काल कार्य शुरू किया गया।

प्रथम दिन तीन लक्षित चैनल समरेखणो का चयन उचित ढाल मापने के बाद चैनल निर्माण का कार्य शुरू किया गया। मैनुवल कार्य करते हुए, उसी दिन शाम तक पानी का स्तर सभी तीन चैनलों को सक्रिय करने के लिए पर्याप्त बढ़ गया और नदी के बाईं ओर जमा अवसाद निर्धारित लक्ष्य के अनुरूप प्रवाहित हो गया।

अगले दिन पुनः प्रक्रिया अपनाते हुए कार्य किया गया है। जिलाधिकारी उत्तरकाशी के साथ भूवैज्ञानिक दल द्वारा हर्सिल झील क्षेत्र का मुआयना किया गया तथा कार्य योजना के परिणामो को सार्थक पाया गया। जिससे झील का जलस्तर नियंत्रित व निचले भागों में जमा मलवा स्वतः नदी के कटाव से निस्तारित होना पाया गया। नतीजतन इससे झील के मुहाने का विस्तार हुआ।

उक्त कार्य योजना में भूतत्व एंव खनिकर्म निदेशालय, उत्तराखण्ड के भूवैज्ञानिक दल में जी.डी प्रसाद, संयुक्त निदेशक रवि नेगी, सहायक भूवैज्ञानिक प्रदीप कुमार, सहायक भूवैज्ञानिक स्वप्निल मुयाल, पुलिस क्षेत्राधिकारी व उनके एस.डी.आर.एफ दल तथा सिंचाई विभाग उत्तरकाशी के अधिकारी/कर्मचारी द्वारा उक्त कार्ययोजना को धरातल पर संपादित किया गया।

 

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