गुरूवार, नवम्बर 27, 2025
  • Advertise with us
  • Contact Us
  • Donate
  • Ourteam
  • About Us
  • E-Paper
  • Video
liveskgnews
Advertisement
  • होम
  • उत्तराखण्ड
  • उत्तरप्रदेश
  • राष्ट्रीय
  • धर्म
  • रोजगार न्यूज़
  • रोचक
  • विशेष
  • साक्षात्कार
  • सम्पादकीय
  • चुनाव
  • मनोरंजन
  • ऑटो-गैजेट्स
No Result
View All Result
  • होम
  • उत्तराखण्ड
  • उत्तरप्रदेश
  • राष्ट्रीय
  • धर्म
  • रोजगार न्यूज़
  • रोचक
  • विशेष
  • साक्षात्कार
  • सम्पादकीय
  • चुनाव
  • मनोरंजन
  • ऑटो-गैजेट्स
No Result
View All Result
liveskgnews
27th नवम्बर 2025
  • होम
  • उत्तराखण्ड
  • उत्तरप्रदेश
  • राष्ट्रीय
  • धर्म
  • रोजगार न्यूज़
  • रोचक
  • विशेष
  • साक्षात्कार
  • सम्पादकीय
  • चुनाव
  • मनोरंजन
  • ऑटो-गैजेट्स

पुराणों से जुड़ी कथा और लोक परंपरा का महापर्व हैं देवलांग

शेयर करें !
posted on : नवम्बर 25, 2024 4:18 अपराह्न

देवलांग! स्थानीय भाषा में देवलांग के रूप में जिस देवदार के पेड़ को जलाया जाता है। वह ज्योतिर्लिंग का प्रतिरूप माना जाता है। यह बातें पुराणों में वर्णित हैं। देवलांग कब से मनाई जाती है, यह कोई नहीं जानता। लेकिन, यह पर्व पिछले कई पीढ़ियां मनाते हुए आ रही हैं। वर्तमान पीढ़ी के सबसे अधिक बजुर्ग लोग भी यही कहत हैं कि उनके दादा-परदादा भी यही कहा करते थे कि देवलांग के शुरू होने की कथाएं वह भी अपने बुजुर्गों से सुना करते थे। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि देवलांग महापर्व कितना पुराना है।

देवलांग

अब पुराणों की बात करते हैं। लिंग पुराण और शिव पुराणों के अनुसार ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु के बीच विवाद हो गया था। माया के मोह में आकर ब्रह्मा जी भगवान विष्णु से से झगड़ने लगे थे। इस पर दोनों के बीव विवाद बढ़ता चला गया। इसका अंत ना होता देख वहां एक ज्योतिर्लिंग प्रकट हुए, जिसका ना ता आदि था, ना मध्य और ना अंत। ज्योर्तिलिंग से आवाज आई कि जो इस ज्योति के आदि या अन्त का पता लगाएगा वही बड़ा होगा।

तब दोनों ही देवता ज्योर्तिलिंग के आदि और अंत का पता लगाने कि लिए निकल पड़े। ब्रह्मा जी ने हंस का रूप धारण किया और आकाश की ओर चल पड़े और विष्णु जी वराह का रूप धारण कर पाताल की ओर। लेकिन, लंबा समय बीतने के बाद और हर तरह से प्रयास करने के बाद भी दोनों ही देव ज्योति के आदि और अन्त का पता नहीं लगा पाए। पुराणों के अनुसार अंत में भगवान ब्रह्मा व विष्णु ने भगवान शिव की स्तुति की और इस तरह से विवाद का अंत हो गया। इसी ज्योर्तिलिंग का प्रतीक इस देवलांग को माना जाता है।

देवलांग महापर्व के संपन्न होने की प्रक्रिया के तहत एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया बहेत अहम है। देवलांग का आयोजन गैर होता है। लेकिन, इसका समापन अन्तिम आहूति के साथ देवदार के घने जंगल के बीच स्थित देवाधिदेव महादेव श्री मडकेश्वर महादेव के मन्दिर में होता है। मड़केश्वर महादेव में गौड ब्रह्माण ग्राम गौल के निवासियों की गाय के दूध और घी से हवन-पूजन करते हैं। यह भी कहा जाता है कि पहले देवलांग को प्रज्जवलित करने के लिए यहीं से ओल्ला (मशाल) लाया जाता था।

ऐसा माना जाता है कि मड़केश्वर महादेव में साक्षात भगवान शंकर विराजते हैं। जहां अखंड ज्योति जलती रहती है, जिसके दुर्लभता से ही किसर भाग्यवान को हो पाते हैं। मंदिर से जुड़ी कई अन्य परंपराएं और मान्यताएं भी हैं। यह भी कहा जाता है कि इस मंदिर के बारे में बहुत कम ही चर्चा की जानी चाहिए। यह हम पीढ़ी-दर-पीढ़ी बुजुर्गों से सुनते आ रहे हैं।

ओला बनाने की एक परंपरा रही, जो समय के साथ विलुप्त हो गई। बताया जाता है कि देवलांग के दिन कोटी और बखरेटी गांव में अनुसूचित जाति के लोग ओला बनाकर भेंट किया जाता था। उसी को लेकर लोग देवलांग में पहुंचते थे और अंत में देवलांग खड़ी होने के बाद प्रज्ज्वलित किया जाता था।

 

ओल्ला बनाने में एक खास बात का ध्यान रखा जाता है। घर में जितने पुरुष सदस्य होते थे। उनके नाम से एक-एक ओल्ला बनाया जाता था। यह आराध्य देव महासू के नाम से बनाया जाता था। देवलांग के लिए गांव-गांव से प्रस्थान करने से पूर्व ओल्ला की पूजा-अर्चना की जाती थी।

देवलांग महापर्व में करीब 65-70 गांवों के लोग शामिल होते हैं। इसके अलावा देशभर से भी लोग इस आयोजन को देखने के लिए पहुंचते हैं। देवलांग महापर्व की प्रक्रिया पूरी रात चलती है, लेकिन जैसे-जैसे साठी और पानशाही थोकों के ओलेर पहुंचते जाते हैं, देवलांग का अल्लास जोर पकड़ने लगता है। धड़कने तेज होने लगती हैं। दर्जनाओं ढोल-दमाऊ और रणसिंघों की गूंज से मन प्रफल्लित होने लगता है। पांव अपने आप थिरकने लगते हैं।

जब दोनों थाकों के लोग राजा रघुनाथ मंदिर परिसर में पहुंच जाते हैं, उसके बाद देवलांग का असली चरम शुरू होता हैं। लारंपरिक गीतों और लोकनृत्य के साथ दोनों थोकों के देवलंगेर मंदिर की परिक्रमा करते हैं। इस दौरान लोगों को जोश चरम पर रहता है। करीब पांच बजे देवलांग को उठाने की प्रक्रिया शुरू होती है।

यही देवलांग का असली रोमांच होता है, जिसे देखने हजारों की संख्या में लोग पहुंचते हैं। देवलांग करीब छह बजे तक खड़ी हो जाती है। आग लगने के साथ ही सूर्योंदय होता है और लोग श्री राजा रघुनाथ जी को प्रणाम कर अपने जीवन में उजाले की कामना के साथ अपने घरों को लौट जाते हैं।

https://liveskgnews.com/wp-content/uploads/2025/11/Video-60-sec-UKRajat-jayanti.mp4
https://liveskgnews.com/wp-content/uploads/2025/09/WhatsApp-Video-2025-09-15-at-11.50.09-PM.mp4

हाल के पोस्ट

  • स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय ने विश्व समयपूर्व जन्मदिवस 2025 को नुक्कड़ नाटक और प्रश्नोत्तरी के माध्यम से मनाया
  • लोक सेवा आयोग से चयनित 178 अभ्यर्थियों को मुख्यमंत्री ने प्रदान किये नियुक्ति पत्र
  • सीएम धामी ने नैनीताल प्रशासनिक अकादमी में सुनी जनसमस्याएँ
  • लोक सेवा आयोग से चयनित 178 अभ्यर्थियों को मुख्यमंत्री ने प्रदान किये नियुक्ति पत्र
  • राज्यपाल ने किया सीएम धामी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर आधारित पुस्तकों का विमोचन
  • लोकगायक दर्शन के गीतों पर थिरके दर्शक
  • प्रियांशु के गोल्ड लाने पर क्षेत्र में खुशी
  • अभाविप राष्ट्रीय अधिवेशन प्रांगण में लगी भव्य ‘रानी अब्बक्का प्रदर्शनी’ का किया गया उद्घाटन
  • सैन्य विभाग के लंबित प्रकरणों पर हो त्वरित कार्रवाई – डीएम गौरव कुमार
  • श्री बदरीनाथ धाम यात्रा का समापन : आदि गुरु शंकराचार्य जी की गद्दी एवं श्री गरूड़ जी पहुंचे ज्योतिर्मठ
liveskgnews

सेमन्या कण्वघाटी हिन्दी पाक्षिक समाचार पत्र – www.liveskgnews.com

Follow Us

  • Advertise with us
  • Contact Us
  • Donate
  • Ourteam
  • About Us
  • E-Paper
  • Video

© 2017 Maintained By liveskgnews.

No Result
View All Result
  • होम
  • उत्तराखण्ड
  • उत्तरप्रदेश
  • राष्ट्रीय
  • धर्म
  • रोजगार न्यूज़
  • रोचक
  • विशेष
  • साक्षात्कार
  • सम्पादकीय
  • चुनाव
  • मनोरंजन
  • ऑटो-गैजेट्स

© 2017 Maintained By liveskgnews.