सोमवार, अगस्त 4, 2025
  • Advertise with us
  • Contact Us
  • Donate
  • Ourteam
  • About Us
  • E-Paper
  • Video
liveskgnews
  • होम
  • उत्तराखण्ड
  • उत्तरप्रदेश
  • राष्ट्रीय
  • धर्म
  • रोजगार न्यूज़
  • रोचक
  • विशेष
  • साक्षात्कार
  • सम्पादकीय
  • चुनाव
  • मनोरंजन
  • ऑटो-गैजेट्स
No Result
View All Result
  • होम
  • उत्तराखण्ड
  • उत्तरप्रदेश
  • राष्ट्रीय
  • धर्म
  • रोजगार न्यूज़
  • रोचक
  • विशेष
  • साक्षात्कार
  • सम्पादकीय
  • चुनाव
  • मनोरंजन
  • ऑटो-गैजेट्स
No Result
View All Result
liveskgnews
4th अगस्त 2025
  • होम
  • उत्तराखण्ड
  • उत्तरप्रदेश
  • राष्ट्रीय
  • धर्म
  • रोजगार न्यूज़
  • रोचक
  • विशेष
  • साक्षात्कार
  • सम्पादकीय
  • चुनाव
  • मनोरंजन
  • ऑटो-गैजेट्स

सांस्कृतिक जगत को अपूरणीयक्षति, राजेन्द्र सिंह राणा का आकस्मिक निधन

शेयर करें !
posted on : अगस्त 4, 2025 2:16 अपराह्न

ऊखीमठ। राजेन्द्र सिंह राणा न केवल एक विद्वान पुरातत्वविद् थे, बल्कि कुरुक्षेत्र की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और धार्मिक विरासत के प्रति समर्पित एक सच्चे साधक थे। उनका सम्पूर्ण जीवन भारतीय संस्कृति, पुरातात्विक शोध और कुरुक्षेत्र के विकास को समर्पित रहा। 28 जुलाई, 2025 को उनके आकस्मिक निधन से समूचे सांस्कृतिक जगत को एक अपूरणीय क्षति हुई है। यह लेख उनके जीवन, कार्य और विरासत को श्रद्धापूर्वक समर्पित है।

प्रारंभिक जीवन : संघर्ष और संकल्प

राजेन्द्र सिंह राणा का जन्म उत्तराखंड के कालीमठ में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा कालीमठ और विद्यापीठ में हुई, किंतु आर्थिक अभावों के बावजूद उन्होंने शिक्षा के प्रति अदम्य लगन दिखाई। जीवनयापन के लिए उन्होंने मजदूरी, केदारनाथ में घोड़े-खच्चर चलाने जैसे कठिन कार्य किए, यहाँ तक कि दिल्ली की सड़कों पर भी श्रम किया। इन विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय से भूगर्भ विज्ञान और पुरातत्व में विशेषज्ञता प्राप्त की, जो उनके भविष्य की नींव बनी।

श्रीकृष्ण संग्रहालय : एक तपस्थली के रूप में

1991 में श्रीकृष्ण संग्रहालय, कुरुक्षेत्र से जुड़कर राजेन्द्र सिंह राणा ने अपनी सेवा-यात्रा आरंभ की। 2020 में संग्रहालयाध्यक्ष के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद भी वे कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड से जुड़े रहे और अपनी सेवाएँ निष्ठापूर्वक देते रहे। उनके लिए संग्रहालय कोई साधारण संस्था नहीं, बल्कि एक तपस्थली थी, जहाँ उन्होंने समय, सुविधा और स्वास्थ्य की परवाह किए बिना निरंतर कार्य किया।
उनकी सृजनशीलता और पुरातात्विक दक्षता के कारण श्रीकृष्ण संग्रहालय एक विचारोत्तेजक सांस्कृतिक केंद्र के रूप में विकसित हुआ। उन्होंने 48 कोस कुरुक्षेत्र का गहन सर्वेक्षण करके इसकी पौराणिक एवं ऐतिहासिक प्रामाणिकता का वैज्ञानिक दस्तावेजीकरण किया। उनके प्रयासों से यह सिद्ध हुआ कि यह भूमि वास्तव में महाभारत कालीन पांडवों और भगवान श्रीकृष्ण की कर्मस्थली है।

पुरातत्व और सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण

राणा ने कुरुक्षेत्र के तीर्थ स्थलों को न केवल नक्शों पर उकेरा, बल्कि भव्य प्रदर्शनियों, शोधपत्रों और शैक्षणिक संवादों के माध्यम से उन्हें जीवंत भी किया। उनके मार्गदर्शन में अनेक ऐतिहासिक स्थलों का उत्खनन और संरक्षण कार्य सम्पन्न हुआ। उनका साहित्यिक योगदान भी अत्यंत महत्वपूर्ण रहा। कॉफी टेबल बुक्स, शोधपरक पुस्तकें, प्रदर्शनी साहित्य, रेडियो नाटक, डॉक्यूमेंट्री स्क्रिप्ट और पत्रिकाओं में प्रकाशित उनके लेखों ने भारतीय संस्कृति की विविधता और कुरुक्षेत्र के वैभव को जन-जन तक पहुँचाया।

पारिवारिक विरासत और पांडवों से संबंध

एक रोचक तथ्य यह है कि राजेन्द्र सिंह राणा का पारिवारिक इतिहास भी पांडवों से जुड़ा है। उनके पिता, स्वर्गीय जयसिंह राणा, जो कालीमठ के पूर्व प्रधान भी थे, अपने गाँव में पांडवों के पूजा अनुष्ठान नृत्य में अर्जुन के पश्वा का किरदार निभाते थे। यह भूमिका आज भी उनके भतीजे द्वारा निभाई जाती है। इस प्रकार, पुरातत्व और संस्कृति के प्रति उनका लगाव एक पारिवारिक विरासत का हिस्सा था।

अंतिम समय तक समर्पण

राणा का कार्य उनकी अंतिम सांस तक जारी रहा। वे केदारनाथ क्षेत्र में पुरातत्व संरक्षण और ऐतिहासिक वस्तुओं के अभिलेखीकरण के लिए भी काम करना चाहते थे, किंतु यह इच्छा पूरी न हो सकी। 28 जुलाई, 2025 को वे अपनी कर्मभूमि कुरुक्षेत्र की माटी में समाहित हो गए, जहाँ उन्हें हर कण में भगवान कृष्ण और पांडवों का संग्रह और कौरवों की कुटिलता और धूर्तता की छवि दिखाई देती थी।
विरासत और प्रभाव

राजेन्द्र सिंह राणा का जीवन

“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” के आदर्श का जीवंत उदाहरण था। उन्होंने निस्वार्थ भाव से कुरुक्षेत्र की सेवा की—न प्रतिष्ठा की चाह, न पुरस्कार की इच्छा। उनके कार्यों ने कुरुक्षेत्र को विश्व पटल पर एक अलग पहचान दिलाई। आज देश-विदेश से आने वाले पर्यटक जिस कुरुक्षेत्र को देखते हैं, उसके विकास में उनका योगदान अमूल्य है। श्रीकृष्ण संग्रहालय और कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड उनके अविस्मरणीय योगदान को सदैव स्मरण करता रहेगा। उनकी स्मृतियाँ, विचार और कर्म सबके हृदयों में सदैव जीवित रहेंगे। उनकी लगन, सकारात्मक दृष्टिकोण और निःस्वार्थ समर्पण भावी पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का अक्षय स्रोत बने रहेंगे।

https://liveskgnews.com/wp-content/uploads/2025/03/VID-20250313-WA0019.mp4

हाल के पोस्ट

  • रुड़की में AHTU का बड़ा एक्शन, होटल श्रीनिवास में चल रहे सेक्स रैकेट का भंडाफोड़, 8 महिलाओं सहित 13 गिरफ्तार
  • कोटद्वार नहीं पहुंच पाई सिद्धबली जनशताब्दी एक्सप्रेस, बारिश के कारण ट्रैक पर भरा पानी, पैसेंजर ट्रेन भी रही रद्द
  • टॉपर्स को सीधे प्रवेश देगी आईआईटी – प्रोफेसर पंत
  • राज्य सरकार उत्तराखंड के सांस्कृतिक मूल्यों और डेमोग्राफी को संरक्षित रखने के प्रति पूर्ण रूप से संकल्पबद्ध – मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी
  • मुख्यमंत्री धामी ने प्रदेश के सभी डीएम को दिए सख्त निर्देश, ग्राउंड ज़ीरो पर रहें अधिकारी, अवैध दस्तावेजों पर हो कड़ी कार्रवाई
  • पिता के जन्मदिन पर बालिकाओं को प्रदान की शैक्षिक सामग्री
  • चलती बस में ड्राइवर को पड़ा मिर्गी का दौरा, कई गाड़ियों को मारी टक्कर; एक की मौत
  • मानसून सत्र 2025 : हंगामे के चलते लोकसभा की कार्यवाही स्थगित, शिबू सोरेन को राज्यसभा में दी गई श्रद्धांजलि
  • उत्तराखंड : घर के आंगन खोदा था गड्ढा, ऊपर से लगा था ढक्कन, अंदर से निकली 37.5 लीटर कच्ची शराब…
  • टैक्सी पर बोल्डर गिरने से 2 की मौत, 6 घायल
liveskgnews

सेमन्या कण्वघाटी हिन्दी पाक्षिक समाचार पत्र – www.liveskgnews.com

Follow Us

  • Advertise with us
  • Contact Us
  • Donate
  • Ourteam
  • About Us
  • E-Paper
  • Video

© 2017 Maintained By liveskgnews.

No Result
View All Result
  • होम
  • उत्तराखण्ड
  • उत्तरप्रदेश
  • राष्ट्रीय
  • धर्म
  • रोजगार न्यूज़
  • रोचक
  • विशेष
  • साक्षात्कार
  • सम्पादकीय
  • चुनाव
  • मनोरंजन
  • ऑटो-गैजेट्स

© 2017 Maintained By liveskgnews.