चमोली । राज्य में शीतकाल में हुई बर्फवारी के चलते बुरांश के फूल आपेक्षकृत कम मात्रा में खिले वहीं लॉकडाउन के चलते इनका दोहन न होने से बुरांश के जूस का उत्पादन भी प्रभावित हो गया है। जिससे इस वर्ष लोगों को हार्ट के मरीजों के लिए बेहतरीन मानी जाने वाले बुरांश का जुस से महरुम रहना पड़ सकता है।
बसंत ऋतु में 15 सौ मीटर से अधिक हिमालयी क्षेत्र में उत्तराखंड का राजकीय पुष्प बुरांश की सुंदरता जहां सभी को अपनी ओर आकृषित करती हैं। वहीं बुरांश का फूल अपने आप में कई औषधीय गुणों से भरपूर होता है। जिसके चलते आयुर्वेद में बुरांश को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। रोडोडेंड्रोन प्रजाति का लाल बुरांश का फूल अमूमन फरवरी माह से खिलना शुरु हो जाता है। लेकिन इस वर्ष अधिक बर्फवारी के चलते यह अप्रैल मध्य के बाद कुछ स्थानों पर खिला, लेकिन लॉकडाउन के चलते वर्तमान तक इसका दोहन नहीं हो सका है। ऐसे में इस वर्ष बुरांश के जूस के शौकीनों के मायूस रहना होगा।
हृदय, किडनी, लीवर की बीमारियों के लिये संजीवनी है बुरांश का जूस
बुरांश का जूस हृदय रोग, किडनी, लिवर के अलावा रक्त कोशिकाओं को बढ़ाने और हड्डियों को सामान्य दर्द के लिए बहुत लाभदायी बताया गया है। राज्य वृक्ष और इतने सारे औषधिय गुण होने के चलते इसके जूस की बाजार में भारी मांग रहती है।
ये फायदे हैं बुरांश के जूस के
ह्दय रोग से बचाव, उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) में फायदेमंद, लीवर संबंधी रोग के लिए दवा, हिमोग्लोबीन की कमी पूरी करता है, लौह तत्वों का संपूर्ण पोषक, शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि, शरीर में एंटी ऑक्सिडेंट की पूर्ति। पहाड़ में इसकी पंद्रह प्रजातियां मिलती है। पहाड़ों मे बुरांश की उत्तराखंड राज्य में दस से पंद्रह प्रजातियां जंगलों में मिलती है लेकिन इसमें से सर्वाधिक लाल बुरांश का प्रयोग किया जाता है। साथ जंगलों में पाया जाने वाला सफेद बुरांश जहरीला होता है जिसके चलते यह आम लोगों के लिए बेहद खतरनाक साबित होता है।
बुरांश का जूस स्थानीय लोगों की आर्थिकी को भी देता है सहारा
बुरांश के जूस के औषधीय गुणों के चलते जहां इसकी राज्य और बाहरी क्षेत्रों में बड़ी मांग है। ऐसे में यहां इसके दोहन से लेकर विपणन तक की प्रक्रिया में यह बड़ी आबादी की आर्थिकी को सहारा देने का कार्य करता है। साथ ही बुरांश की पत्तियां जैविक खाद बनाने में और इस की लकड़ी फर्नीचर व कृषि उपकरण बनाने में प्रयोग की जाती है।
दुनियां में 1024 प्रजातियों के मिलते हैं बुरांश
पूरी दुनिया में बुरांश की कुल 1024 प्रजातियां पाई जाती हैं। विभिन्न प्रकार के रंगीन लाल ,गुलाबी ,सफेद तथा नीले फूलों वाला बुरांश बसंत ऋतु के आरंभ से लेकर ग्रीष्म ऋतु शुरू होने के मध्य में खिलता है। मध्य हिमालयी क्षेत्रों में इसकी 87 प्रजातियां पाई जाती हैं। जिनमें से अकेले अरुणाचल प्रदेश में 75 प्रजातियां पाई जाती हैं। उत्तराखंड में बुरांश की छह प्रजातियां तथा एक उपप्रजाति पाई जाती है। लाल बुरांश करीब 18 सौ से 26 सौ मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाया जाता है। हिमांचल में बुरांश की 15 प्रजातियां पाई जाती हैं। यहां लाल, सफेद तथा नीले रंग के फूल पाये जाते है।
क्या कहते है इसके जानकार
बुरांश के जूस में पोली फैटी एसिड अधिक मात्रा में पाया जाता है जिसके चलते यह शरीर में कॉलेस्ट्रॉल नहीं बनने देता है। इससे ह्दय संबंधी बीमारियां का खतरा कम हो जाता है। बुरांश के जूस की मांग काफी ज्यादा है, इसके सापेक्ष फूलों की आपूर्ति काफी कम है। उनका कहना है कि ग्रामीण फूलों का व्यवस्थित तरीके से दोहन करें तो हर रोज सात से आठ सौ लीटर बुरांश का जूस उपलब्ध हो सकता है।
डीआर उनियाल, खाद्य प्रसंस्करण यूनिट संचालक।
क्या कहते है वनस्पति विज्ञानी
बुरांश (रोडोडेंड्रोन आरबेरियम) की फ्लावरिंग इस वर्ष अत्याधिक ठंड के चलते नहीं हो पाई है। बुरांश के फूल को फ्लावरिंग के लिये 20 से 25 डिग्री तक तापमान की जरुरत होती है। ऐसे में राज्य के ईस्टन स्लोप वाले वनों में कुछ स्थानों पर बुरांश खिला है। लेकिन कम तापमान वाले क्षेत्रों में बुरांश नहीं खिल पाया है। जिससे इस वर्ष फूलों की उपज बीते वर्षों की अपेक्षा बहुत कम मात्रा में रहने के आसार हैं।
डा. विनय नौटियाल, विभागाध्यक्ष, वनस्पति विज्ञान, श्रीदेव सुमन विवि परिषर गोपेश्वर-चमोली।
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