1971 की आपदा में दुर्मी ताल के फूटने से मलवे में दब गई थी
गोपेश्वर (चमोली)। 1971 की प्राकृतिक आपदा में दुर्मी ताल में के मलवे में दबी किश्ती को कड़ी मेहनत के बाद निजमूला के दस गांवों के उत्साही लोगों ने ढूंढ निकाला। बुजुर्गों के उम्र के तकाजे और युवाओं के उत्साह से ये कश्ती मवले से ढूंढ निकाली गयी ।
ईराणी के प्रधान मोहन सिंह ने बताया ने बताया कि अंग्रेज शासन काल तक दुर्मी की प्राकृतिक झील (ताल) अपने सौंदर्य के लिये बेमिसाल थी। अंग्रेज पर्यटक इस ताल में नौका विहार करते थे। अंग्रेज शासन के बाद यह सरोवर और यहां का पर्यटन उपेक्षित हो गया। इस बीच 1971 में आयी प्राकृतिक आपदा में यह दुर्मी ताल फूट गया ब्रिटिश काल की एक कश्ती जो उनके राज के खत्म होने पर यहीं रह गयी थी। ऐसी एक कश्ती जो 1971 की आपदा में जाने कहां दब गयी थी। उस कश्ती को इलाके के लोगों ने बुजुर्गाे के अनुभव और दिशा निर्देश में ढूंढ निकाला।
कभी रोजगार से भी जुड़ा था दुर्मी ताल
कभी दुर्मी ताल दस गावों के लोगों का रोजगार इस ताल से जुड़ा हुआ था, पर अब यह क्षेत्र पलायन की मार झेल रहा है। दुर्मी ताल में 1971 में दबी कश्ती को गांवों के युवकों के सहयोग से तीन घंटे की मेहनत से मलवे में दबी किस्ती को निकाला गया। जो कुछ टूटी अवस्था मे मिली है। गांव के 80 वर्ष के बुजुर्ग नारायण सिंह बताते हैं कि दुर्मी ताल लगभग पांच किलोमीटर लंबा तालाब था, जिसमे बहुत सारी नाव चलती थी, जिसमे हजारों पर्यटक तालाब में नोकायन करते थे, साथ उन्होंने बताया कि यहां पर एक किस्ती घर था जिसमे बहुत सारी किश्तियां थी जो 1971 की बाढ़ में दब गई थी, ,
इलाके के युवाओं ने दर्मी ताल के पुनर्निर्माण के लिए शुरू किया जन जागरण
दुर्मी ताल के पुनर्निर्माण के लिए जनजागरण अभियान का शुरु किया। इसमें निमजूला घाटी के सेंजी, गाड़ी, ब्यारा, थोलि, निजमुला, गौना, दुर्मी, पगना, ईरानी, पाणा, झिंझी के जनप्रतिनिधि एवं स्थानीय लोगों ने एक बैठक कर इसके लिए जन जागरण अभियान शुरू किया है। इस अवसर पर ईराणी के प्रधान मोहन सिंह नेगी, पाणा गांव की प्रधान कलावती देवी, दुर्मी की प्रधान कविता देवी, पूर्व प्रधान लक्ष्मण खाती, माहेश्वरी देवी, गौणा के हुकुम बत्र्वाल, ईरानी के मोहन पहाड़ी, प्रेम सिंह, धीरज सिंह, उमेश चंद्र थपलियाल, गोपाल गुंसाईं आदि मौजूद थे।



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