चमोली । चमोली जिले में ऐसे ही दशोली ब्लॉक में चमोली और रुद्रप्रयाग की सीमा क्षेत्र में पर्यटक स्थल चोपता के समीप स्थित वासुकी नाग मंदिर प्रशासन, पर्यटन विभाग और वन विभाग की अनदेखी झेल रहा है। यहां का विकास और प्रचार-प्रसार न होने के चलते यह पौराणिक मंदिर आज भी तीर्थयात्रियों और पर्यटकों की पहुंच से दूर है।
वासुकीनाग मंदिर जिले के दशोली ब्लॉक की मंडल घाटी में केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग के संरक्षित क्षेत्र में स्थित है। पौराणिक नाग देवता का मंदिर क्षेत्र के मंडल, खल्ला, कोटसीर, दोगड़ी, कांडई कुनकुली, देवलधार, अनसूया सहित कई गांवों की आस्था का केंद्र है। मध्य हिमालयी क्षेत्र में होने के चलते यह स्थान जड़ी-बूटियों, पक्षियों और वन्य जीवों की शरण स्थली भी है। ऐसे में यहां स्थानीय श्रद्धालुओं के साथ ही सीमित संख्या में वनस्पति विज्ञान, पक्षी और वन्य जीव प्रेम पहुंचते हैं। लेकिन प्रचार-प्रसार की कमी के चलते यह क्षेत्र पर्यटक और तीर्थयात्रियों की पहुंच से दूर है। मंदिर के संरक्षित वन क्षेत्र में होने से यहां यात्री सुविधाओं के विकास का जिम्मा केदरानाथ वन्य जीव प्रभाग का है। लेकिन वन विभाग की ओर से यहां यात्री सुविधाओं के विकास के लिये कोई खास योजना तैयार नहीं की गई है। स्थानीय निवासी महानंद बिष्ट, संदीप तिवारी और भगत बिष्ट का कहना है कि वासुकीनाग मंदिर सिद्धपीठ है। जहां नाग देवता की पूजा अर्चना की जाती है। मंदिर के सरंक्षण और प्रचार-प्रसार व यात्रा मार्ग पर यात्री सुविधाओं के विकास की मांग की गई। लेकिन जहां पर्यटन विभाग क्षेत्र के वन विभाग में होने को लेकर किनारा कर रहा है।
वासुकी नाग मंदिर के समीप तालाब का सुधारीकरण किया गया है, वहीं यहां तक के पहुंच मार्ग पर खतरनाक बने स्पॉटों का भी सुधारीकरण किया गया है। यदि अन्य स्थानों पर पैदल मार्ग सुधारीकरण की आवश्यकता होगी तो इसे दिखवाया जाएगा।
अमिति कंवर, प्रभागीय वनाधिकारी, केदारनाथ वन प्रभाग, चमोली।