देवाल / चमोली । चमोली जिले के देवाल विकास खंड का अंतिम गांव वाण में स्थित मां नंदा देवी के धर्म भाई और सिद्धपीठ लाटू देवता मंदिर के कपाट गुरूवार को बैशाख पूर्णिमा के अवसर पर आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिये गये हैं। दोपहर दो बजकर 55 मिनट पर कपाट विधि विधान से खोले गये। अब श्रद्धालुओं आगामी छह महीने तक यहां पूजा अर्चना कर सकतें हैं। लाॅकडाउन की वजह से धार्मिक आयोजन पर पूर्ण प्रतिबंध होने से इस बार कपाट खुलने के अवसर पर बेहद सीमित संख्या में ही ग्रामीण मौजूद रहे। मन्दिर के पुजारी खेम सिंह नेगी और प्रताप सिंह नें कपाट खोलने की प्रक्रिया पूर्ण की।
इस अवसर पर लाटू मन्दिर समिति के अध्यक्ष कृष्णा सिंह, ग्राम प्रधान पुष्पा देवी, जिला पंचायत सदस्य कृष्णा सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता हीरा गढवाली ने कहा की इस बार कोरोना वाइरस के वैश्विक संकट की इस घड़ी की वजह से बेहद सादगी में लाटू देवता के कपाट आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिये गये। इस दौरान सोशियल डिस्टेंस का पूर्ण रूप से पालन किया गया। हर साल लाटू देवता के कपाट बैशाख पूर्णिमा पर खुलते हैं और मंगशीर्ष पूर्णिमा पर बंद होते हैं।
गौरतलब है कि लाटू देवता के प्रति अटूट आस्था की बानगी है कि दूर दूर से श्रद्धालुओं का हर साल इस मंदिर में तांता लगा रहता है। हिमालयी महाकुंभ नंदा देवी राजजात यात्रा का ये आखिरी पड़ाव है जहां आबादी है इसके बाद निर्जन पडाव शुरू हो जाते हैं। रूपकुंड, बेदनी बुग्याल और आली बुग्याल का बेस कैंप है वाण गांव।
ये है मान्यता!
लाटू देवता के मंदिर के अंदर क्या है, किसी को नहीं मालूम। बारह बरस बाद जब नंदा मायके (कांसुवा) से ससुराल (कैलाश) जाते हुए वाण पहुंचती है, तब इस दौरान नंदा का लाटू से भावपूर्ण मिलन होता है। इस दृश्य को देख यात्रियों की आंखें छलछला जाती हैं। यहां से लाटू की अगुआई में चैसिंग्या खाडू के साथ राजजात होमकुंड के लिए आगे बढ़ती है। लेकिन, वाद्य यंत्र राजजात के साथ नहीं जाते। वहीं मान्यता है कि वाण में ही लाटू सात बहिनों (देवियों) को एक साथ मिलाते हैं। यहीं पर दशौली (दशमद्वार की नंदा), बंड भूमियाल की छंतोली, लाता पैनखंडा की नंदा, बद्रीश रिंगाल छंतोली और बधाण क्षेत्र की तमाम भोजपत्र छंतोलियों का मिलन होता है। अल्मोड़ा की नंदा डोली व कोट (बागेश्वर) की श्री नंदा देवी असुर संहारक कटार (खड्ग) वाण में राजजात से मिलन के पश्चात वापस लौटती है।
लाटू देवता पूरे पिंडर/दशोली(आंशिक) क्षेत्र के ईष्टदेव हैं। माना जाता हैं कि लाटू कन्नौज के गर्ग गोत्र के कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। जब शिव के साथ नंदा का विवाह हुआ तो बहिन को विदा करने सभी भाई कैलाश की ओर चल पड़े। इनमें लाटू भी शामिल थे। मार्ग में लाटू को इतनी तीस (प्यास) लगी कि वह पानी के लिए इधर-उधर भटकने लगे। इस बीच उन्हें एक घर दिखा और वो पानी की तलाश में इस घर के अंदर पहुंच गए। घर का मालिक बुजुर्ग था, सो उसने लाटू से कहा कि कोने में रखे मटके से खुद पानी पी लो। संयोग से वहां दो मटके रखे थे, लाटू ने उनमें से एक को उठाया और पूरा पानी गटक गए। प्यास के कारण वह समझ नहीं पाए कि जिसे वह पानी समझकर पी गए, असल में वह मदिरा थी। कुछ देर में मदिरा ने असर दिखाना शुरू कर दिया और वह उत्पात मचाने लगे। इसे देख नंदा क्रोधित हो गई और लाटू को कैद में डाल दिया। साथ ही आदेश दिया कि इन्हें हमेशा कैद में रखा जाए। यहां लाटू युगों से कैदखाने में हैं और यह कैदखाना ही उनका मंदिर भी है। दूर-दूर से लोग अपनी मनोकामना लेकर लाटू के मंदिर में आते हैं। कहते हैं यहां से मांगी मनोकामना जरुर पूरी होती है।
Discussion about this post