रूडकी / हरिद्वार : कोरोना काल में एक वन विभाग के अधिकारी रूडकी के वन क्षेत्राधिकारी मयंक गर्ग की लोग जमकर तारीफ कर रहे है. आखिर तारीफ करें भी क्यों न मयंक गर्ग ने काम ही तारीफ लायक किया है. क्षेत्र से विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुके औषधीय पेड़ सौंजणा (सहजन) की पौध को तैयार कराकर इस पौधे का रोपण किया जा रहा है. आपको बताते चले कि मयंक गर्ग के द्वारा अभी तक लक्सर क्षेत्र में लगभग 400 पौधे तो रूडकी क्षेत्र में लगभग 100 सौंजणा (सहजन) के पौधे रोपित किये जा चुके है. यह मयंक गर्ग का ही जज्बा है कि उन्होंने फिर से इस पौधे को क्षेत्र में रोपित कराकर क्षेत्र के लोगो के लिए बड़ा कार्य किया है.
मयंक गर्ग बताते है कि सौंजणा (सहजन) के पौधे की छाल, फूल, फली सभी औषधीय गुणों से भरपूर है इसके साथ ही सौंजणा की पत्तियां पशुओ के लिए चारे का उत्तम साधन है. सौंजणा की पत्तियों का चारा खाने वाले दुधारू पशुओ के दूध में भी पौष्टिकता अधिक पायी जाती है. कई जगहों पर पशुओ के चारे के लिए इसकी खेती की जाती है. सहजन औषधीय गुणों से भरपूर है . इसकी फली के अचार और चटनी कई बीमारियों से मुक्ति दिलाने में सहायक हैं. यह जिस जमीन पर यह लगाया जाता है, उसके लिए भी लाभप्रद है. दक्षिण भारत में साल भर फली देने वाले पेड़ होते है. इसे सांबर में डाला जाता है.
मयंक गर्ग बताते है कि उत्तर भारत में यह साल में एक बार ही फली देता है. सर्दियां जाने के बाद फूलों की सब्जी बना कर खाई जाती है फिर फलियों की सब्जी बनाई जाती है. इसके बाद इसके पेड़ों की छटाई कर दी जाती है. सहजन वृक्ष किसी भी भूमि पर पनप सकता है और कम देख-रेख की मांग करता है. इसके फूल, फली और टहनियों को अनेक उपयोग में लिया जा सकता है. भोजन के रूप में अत्यंत पौष्टिक है और इसमें औषधीय गुण हैं. इसमें पानी को शुद्ध करने के गुण भी मौजूद हैं. सहजन के बीज से तेल निकाला जाता है और छाल पत्ती, गोंद, जड़ आदि से दवाएं तैयार की जाती हैं. सहजन में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, पोटेशियम, आयरन, मैग्नीशियम, विटामिन ए, सी और बी कॉम्पलैक्स प्रचुर मात्रा में है. सहजन में दूध की तुलना में 04 गुना कैल्शियम और दुगना प्रोटीन पाया जाता है.
वन क्षेत्राधिकारी रूडकी मयंक गर्ग ने बताया कि जब वह छोटे तो उनके पडोस में एक सौंजणा (सहजन) का पेड़ था जिसकी फली को तोड़कर हम सब्जी बनाते थे और साथ ही इसका आचार बनाते थे और सौंजणा (सहजन) की फली को रिश्तेदारों के यहाँ भी भेजते थे.
जाने सौंजणा (सहजन) के बारे में
चारे के रूप में इसकी पत्तियों के प्रयोग से पशुओं के दूध में डेढ़ गुना और वजन में एक तिहाई से अधिक की वृद्धि की रिपोर्ट है. कुपोषण, एनीमिया (खून की कमी) में सहजन फायेदमंद होता है. करीब पांच हजार साल पहले आयुर्वेद ने सहजन की जिन खूबियों को पहचाना था, आधुनिक विज्ञान में वे साबित हो चुकी हैं. देश के अपेक्षाकृत प्रगतिशील दक्षिणी भारत के राज्यों आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और कर्नाटक में इसकी खेती होती है.
सहजन को अंग्रेजी में ड्रमस्टिक कहा जाता है. इसका वनस्पति नाम मोरिंगा ओलिफेरा है. फिलीपीन्स, मैक्सिको, श्रीलंका, मलेशिया आदि देशों में भी सहजन का उपयोग बहुत अधिक किया जाता है. दक्षिण भारत में व्यंजनों में इसका उपयोग खूब किया जाता है. सेंजन, मुनगा या सहजन आदि नामों से जाना जाने वाला सहजन औषधीय गुणों से भरपूर है. इसके अलग-अलग हिस्सों में 300 से अधिक रोगों के रोकथाम के गुण हैं. इसमें 92 तरह के मल्टीविटामिन्स, 46 तरह के एंटी आक्सीडेंट गुण, 36 तरह के दर्द निवारक और 18 तरह के एमिनो एसिड मिलते हैं.
सहजन औषधीय गुणों से भरपूर है. इसके अलग-अलग हिस्सों में 300 से अधिक रोगों के रोकथाम के गुण हैं. इसमें 92 तरह के मल्टीविटामिन्स, 46 तरह के एंटी आक्सीडेंट गुण, 36 तरह के दर्द निवारक और 18 तरह के एमिनो एसिड मिलते हैं. चारे के रूप में इसकी पत्तियों के प्रयोग से पशुओं के दूध में डेढ़ गुना और वजन में एक तिहाई से अधिक की वृद्धि की रिपोर्ट है. यही नहीं इसकी पत्तियों के रस को पानी के घोल में मिलाकर फसल पर छिड़कने से उपज में सवाया से अधिक की वृद्धि होती है. इतने गुणों के नाते सहजन चमत्कार से कम नहीं है.
सहजन को अंग्रेजी में ड्रमस्टिक कहा जाता है. इसका वनस्पति नाम मोरिंगा ओलिफेरा है. फिलीपीन्स, मैक्सिको, श्रीलंका, मलेशिया आदि देशों में भी सहजन का उपयोग बहुत अधिक किया जाता है. दक्षिण भारत में व्यंजनों में इसका उपयोग खूब किया जाता है.
गठिया का ईलाज है सौंजणा (सहजन)
रूडकी के प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य वैद्य टेक वल्लभ ने बताया कि सहजन की फली वात व उदरशूल में पत्ती नेत्ररोग, मोच, शियाटिका, गठिया में उपयोगी है. सहजन की जड़ दमा, जलोधर, पथरी,प्लीहा रोग के लिए उपयोगी है. छाल का उपयोग शियाटिका, गठिया, यकृत आदि रोगों के लिए श्रेयष्कर है. सहजन के विभिन्न अंगों के रस को मधुर,वातघ्न,रुचिकारक, वेदनाशक,पाचक आदि गुणों के रूप में जाना जाता है सहजन के छाल में शहद मिलाकर पीने से वातए व कफ रोग शांत हो जाते है,
इसकी पत्ती का काढ़ा बनाकर पीने से गठिया, शियाटिका ,पक्षाघात,वायु विकार में शीघ्र लाभ पहुंचता है, शियाटिका के तीव्र वेग में इसकी जड़ का काढ़ा तीव्र गति से चमत्कारी प्रभाव दिखता है. सहजन की पत्ती की लुगदी बनाकर सरसों तेल डालकर आंच पर पकाएं तथा मोच के स्थान पर लगाने से शीघ्र ही लाभ मिलने लगता है. सहजन को अस्सी प्रकार के दर्द व बहत्तर प्रकार के वायु विकारों का शमन करने वाला बताया गया है. सहजन की सब्जी खाने से पुराने गठिया, जोड़ों के दर्द, वायु संचय , वात रोगों में लाभ होता है. सहजन के ताज़े पत्तों का रस कान में डालने से दर्द ठीक हो जाता है. सहजन की सब्जी खाने से गुर्दे और मूत्राशय की पथरी कटकर निकल जाती है.
पथरी में भी लाभदायक होता है सौंजणा (सहजन)
सहजन की जड़ की छाल का काढा सेंधा नमक और हिंग डालकर पीने से पित्ताशय की पथरी में लाभ होता है. सहजन के पत्तों का रस बच्चों के पेट के कीड़े निकालता है और उलटी दस्त भी रोकता है. सहजन फली का रस सुबह शाम पीने से उच्च रक्तचाप में लाभ होता है. सहजन की पत्तियों के रस के सेवन से मोटापा धीरे धीरे कम होने लगता है. सहजन. की छाल के काढ़े से कुल्ला करने पर दांतों के कीड़ें नष्ट होते है और दर्द में आराम मिलता है. सहजन के कोमल पत्तों का साग खाने से कब्ज दूर होती है.
सहजन की जड़ का काढे को सेंधा नमक और हींग के साथ पीने से मिर्गी के दौरों में लाभ होता है. सहजन की पत्तियों को पीसकर लगाने से घाव और सुजन ठीक होते है. सहजन के पत्तों को पीसकर गर्म कर सिर में लेप लगाए या इसके बीज घीसकर सूंघे तो सर दर्द दूर हो जाता है. सहजन के बीज से पानी को काफी हद तक शुद्ध करके पेयजल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. इसके बीज को चूर्ण के रूप में पीस कर पानी में मिलाया जाता है. पानी में घुल कर यह एक प्रभावी नेचुरल क्लैरीफिकेशन एजेंट बन जाता है. यह न सिर्फ पानी को बैक्टीरिया रहित बनाता है बल्कि यह पानी की सांद्रता को भी बढ़ाता है जिससे जीवविज्ञान के नजरिए से मानवीय उपभोग के लिए अधिक योग्य बन जाता है. सहजन के गोंद को जोड़ों के दर्द और शहद को दमा आदि रोगों में लाभदायक माना जाता है. सहजन में विटामिन सी की मात्रा बहुत होती है. विटामिन सी शरीर के कई रोगों से लड़ता है खासतौर पर सर्दी जुखाम से. अगर सर्दी की वजह से नाक कान बंद हो चुके हैं तो आप सहजन को पानी में उबाल कर उस पानी का भाप लें. इससे जकड़न कम होगी.
रक्त साफ करने के साथ हड्डियों को भी मजबूत करता है सौंजणा (सहजन)
सहजन में कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है जिससे हड्डियां मजबूत बनती है. इसके अलावा इसमें आयरन , मैग्नीशियम और सीलियम होता है.सहजन का जूस गर्भवती को देने की सलाह दी जाती है. इससे डिलवरी में होने वाली समस्या से राहत मिलती है और डिलवरी के बाद भी मां को तकलीफ कम होती है. सहजन में विटामिन ए होता है जो कि पुराने समय से ही सौंदर्य के लिये प्रयोग किया आता जा रहा है. इस हरी सब्जी को अक्सर खाने से बुढापा दूर रहता है. इससे आंखों की रौशनी भी अच्छी होती है. सहजन का सूप पीने से शरीर का रक्त साफ होता है. पिंपल जैसी समस्याएं तभी सही होंगी जब खून अंदर से साफ होगा.सहजन की पत्ती को सुखाकर उसकी चटनी बनाने से उसमें आयरन, फास्फोरस, कैल्शियम प्रचूर मात्रा में पाया जाता है. गर्भवती महिलाएँ और बुजुर्ग भी इस चटनी, अचार का प्रयोग कर सकते हैं और कई बीमारियों जैसे रक्त अल्पता तथा आँख की बीमारियों से मुक्ति पा सकते हैं. सहजन या सुरजने का समूचा पेड़ ही चिकित्सा के काम आता है. इसे जादू का पेड़ भी कहा जाता है.
त्वचा रोग के इलाज में सौंजणा (सहजन) का विशेष स्थान
एसकेजी न्यूज़ ने जब वैद्य टेक वल्लभ से सौंजणा (सहजन) के बारे में बताया कि इस औषधीय पौधे को क्षेत्र में रेंजर मयंक गर्ग के द्वारा लगवाया जा रहा है तो वैद्य टेक वल्लभ ने रेंजर मयंक गर्ग के इस सराहनीय कदम की तारीफ करते हुए कहा कि सौंजणा (सहजन) का त्वचा रोग के इलाज में विशेष स्थान है. सहजन के बीज धूप से होने वाले दुष्प्रभावों से रक्षा करते हैं. अक्सर इन्हें पीसकर डे केअर क्रीम में इस्तेमाल किया जाता है. बीजों का दरदरा पेस्ट चेहरे की मृत त्वचा को हटाने के लिए स्क्रब के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है. फेस मास्क बनाने के लिए सहजन के बीजों के अलावा कुछ और मसाले भी मिलाना पड़ते हैं. सहजन के बीजों का तेल सूखी त्वचा के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है. यह एक ताकतवर मॉश्चराइजर है. इसके पेस्ट से खुरदुरी और एलर्जिक त्वचा का बेहतर इलाज किया जा सकता है. सहजन के पेड़ की छाल गोखरू, कील और बिवाइयों के इलाज की अक्सीर दवा मानी जाती है. सहजन के बीजों का तेल शिशुओं की मालिश के लिए प्रयोग किया जाता है. त्वचा साफ करने के लिए सहजन के बीजों का सत्व कॉस्मेटिक उद्योगों में बेहद लोकप्रिय है. सत्व के जरिए त्वचा की गहराई में छिपे विषैले तत्व बाहर निकाले जा सकते हैं. सहजन के बीजों का पेस्ट त्वचा के रंग और टोन को साफ रखने में मदद करता है.मृत त्वचा के पुनर्जीवन के लिए इससे बेहतर कोई रसायन नहीं है. धूम्रपान के धुएँ और भारी धातुओं के विषैले प्रभावों को दूर करने में सहजन के बीजों के सत्व का प्रयोग सफल साबित हुआ है.
सहजन के पौष्टिक गुणों की तुलना
- विटामिन सी – संतरे से 07 गुना
- विटामिन ए – गाजर से 04 गुना
- कैलशियम – दूध से 04 गुना
- पोटेशियम – केले से 03 गुना
- प्रोटीन – दही की तुलना में 03 गुना
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