देहरादून : जिसको अपने कार्य में बिजी रहना नहीं आता है वह बिजनेसमैन बनने लायक भी नहीं है। बिजनेसमैन बनने के लिए अपने कार्य में बिजी रहना होगा। बिजनेसमैन होने का अर्थ है कि हमारा एक भी संकल्प और एक भी कर्म व्यर्थ न जाये। नम्बर वन बिजनेसमैन बनने के लिए सबसे सहज तरीका है अपने को बिजी रखना। हमें हर संकल्प कर्म में इस प्रकार बिजी रखना है कि लगातार कमाई होती रहे। यदि हमारी बुद्धि पुरानी बातों, पुराने हिसाब-किताब में जायेगी तब स्वतः व्यर्थ और निगेटिव संकल्पों की ओर आकर्षित भी होगी।
तपस्यापूर्वक अपने कर्तव्य की सेवा करना है। अपने कर्तव्य की भिन्न-भिन्न प्रकार से सेवा करने पर तपस्या का बल स्वतः ही प्राप्त हो जाता है। ऐसा नहीं है कि सेवा में आ गये और तपस्या करना भूल गये। एक खिलाड़ी को खेल में अच्छा प्रदर्शन करना होता है और अच्छा प्रदर्शन करने के लिए तपस्यापूर्वक निरन्तर नेट प्रैक्टिस भी करनी होती है।
हमें बीच-बीच में अपने प्रोग्रेस रिपोर्ट की चेकिंग करनी होती है। जब तक हम चेकर्स नहीं होंगे तब तक मेकर्स भी न हीं बन सकते हैं। अच्छी प्रोगे्रस प्राप्त करने के लिए अपने ऊपर बहुत चेकिंग करनी पड़ती है। दूसरे चाहे जितना हमें चेक करलें लेकिन जितना हम स्वयं अपनी चेकिंग कर उन्नत्ति कर सकते हैं, उतना दूसरे पर निर्भर होकर नहीं कर सकते हैं। एक अभ्यास के बाद यह हमारे आदत में आकर आटोमेटिक रूप में चला जाता है। सब ठीक चलते हुए भी चेकिंग करनी चाहिए।
हमें अपने साथ ही दूसरों की कल्याण के सम्बन्ध में भी प्लानिंग बनाना होगा। नये-नये प्लान निकालने से हमारी उमंग उत्साह हमारी अवस्था को जम्प दे देती है। अभी चल तो रहे हैं और आगे भी चलते रहेंगे लेकिन बीच-बीच में एक्स्ट्राफोर्स से प्लानिंग और सहयोग में मदद मिल जाती है। प्लानिंग एवं सहयोग से हमारे जीवन में उसी प्रकार जम्प आ जाता है। जैसे राकेट को अग्नि का फोर्स दे देने पर, आसमान में उड़ जाता है। उसी प्रकार हमारी प्लानिंग से हमारे कार्य को लाईट और माईट मिल जाता है अर्थात प्रकाश और शक्ति मिल जाती है।
एक्स्ट्राफोर्स के सहयोग से हमें शक्ति प्राप्ति का अनुभव होता है। कार्य में गति देने के लिए विभिन्न पहलुओं पर चिन्तन-मनन की आवश्यकता होती है। लेकिन अधिकांश लोग शिकायत करते हैं कि उनके मन व्यर्थ, निगेटिव संकल्प बहुत चलता है, इसको कैसे कंट्रोल कैसे किया जाय। मुख्य कमजोरी का चेकअप करके समाप्त करें। इसके लिए जब प्लान बनाया जाता है तब कमजोरी का भी पता चल जाता है। मन को समझाने पर कमजोरी अन्दर से दब जाती है। लेकिन अभी भी कमजोरी का संस्कार हमारे भीतर समाप्त नहीं होता है।
कार्य में बाधायें भी बहुत आती हैं, ऐसी बाधायें मन में भी बहुत आती हैं। हमने ज्ञान और जानकारी तो बहुत ले रखी है, लेकिन इसको जीवन में धारण कैसे करें, इस इच्छा शक्ति का अभाव होने का कारण, ज्ञान के होते हुए भी इसका लाभ नहीं ले पाते हैं। केवल विषय के बारे में जानकारी ही नहीं लेना है, बल्कि इसे धारण करके जानकारी को ज्ञान स्वरूप बना लेना है। इसके लिए इच्छा शक्ति की आवश्यकता होगी।
किसी भी कार्य करने के लिए इच्छा शक्ति होना उसी प्रकार आवश्यक है जिस प्रकार माचिस को और आग निकालने का तरीका पता न हो तब ऐसा साधन रखना व्यर्थ है। हम ज्ञान तो ले लेते हैं और इसका वर्णन भी बहुत करते हैं परन्तु जीवन में धारण नहीं कर पाते हैं। ज्ञान को जीवन में धारण करने के लिए मननशक्ति और सहनशक्ति की आवश्यकता होती है। अपने बिजनेस को मन्सा, वाचा, कर्मणा से ईमानदारी पूर्वक बिजी रहकर करना चाहिए। मन्सा के लिए मननशक्ति महत्वपूर्ण है और वाचा व कर्मणा के लिए सहनशक्ति महत्वपूर्ण है। मननशक्ति और सहनशक्ति की कमी के कारण कार्य में सफलता नहीं मिलती है।
सहनशक्ति वाले व्यक्ति स्व स्थिति में रहकर परिस्थिति पर विजय प्राप्त करते हैं। सहनशक्ति हमें शुद्ध संकल्पों के साथ स्व स्थिति में रखने के लिए मदद करती हैं। मन के शुद्ध संकल्पों को चलाने के लिए सहनशक्ति सहायक है, इसे कंट्रोलिंग पावर कहते हैं। सहनशक्ति की मदद से व्यर्थ व निगेटिव संकल्प को कन्ट्रोल कर सकते हैं। इसलिए मननशक्ति और सहनशक्ति पर अटेंशन देने की जरूरत है।
अव्यक्त महावाक्य बाप दादा 25 जून, 1971
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, प्रभारी मीडिया सेन्टर, विधानसभा, देहरादून।
Discussion about this post