देहरादून : निरन्तर योगी रहने का अर्थ है एक सेकेण्ड स्वीच ऑन ऑफ कर लेना। अभी-अभी शरीर मे रहने की अवस्था है और अभी-अभी अशरीरी अवस्था है, इसे कर्मातीत अवस्था कहते हैं। जिस प्रकार से किसी वस्त्र का धारण करना है अथवा नहीं करना है, यह हमारे हाथ में होता है, उसी प्रकार से हम किसी वस्तु से डिटैच होने की प्रैक्टिस कर सकते हैं। हंगाम जब होगा तब साकार शरीर भी कुछ नहीं कर सकता है। हंगाम हो और हम हलचल में न आ पायें यह तभी सम्भव है जब हमारे स्वयं के सम्पूर्ण स्वरूप का साक्षात्कार हो जाये। यह प्रैक्टिस होने पर हमें आनन्द की फीलिंग होगी।
सम्पूर्ण स्वरूप की स्थिति बनने के तीन स्टेज हैं- वर्णन करना, मनन करना और मगन रहना। सिर्फ वर्णन करने से बहिर्मुखता की शक्ति प्राप्त करते हैं लेकिन मनन करने के लिए अन्तर्मुखी बनना पड़ता है। अन्तर्मुखी बनकर मनन ज्ञान का प्वाइंट निकालने के लिए मनन करना होता है, मनन करने से मक्खन निकलता है और मक्खन खाने से शक्ति मिलती है।
अपने प्लानिंग के साथ सर्वशक्तियों की सजावट भी करनी पड़ती है। जिस प्रकार कोई भी चीज कितनी भी अमूल्यवान हो, यदि उसे सजा कर रखा जाय तब वह मूल्यवान हो जाती है। इसी प्रकार प्राप्त ज्ञान का मनन करके मक्खन निकालने से हम शक्तिशाली बन जाते हैं।
जब हमारे भीतर शक्ति भर जाती है तब मेहनत कम किन्तु रिजल्ट अधिक मिलता है। मन में प्लानिंग, उमंग, उत्साह तो बहुत रहता है लेकिन प्रैक्टिकल में यह रिजल्ट नहीं दिखाई पड़ता है। एक रस की जो फोर्स होने चाहिए वह स्टेज नहीं बन पाती है। एक-एक ज्ञान के प्वाइंट का चिंतन करके आत्मा में शक्ति भरनी चाहिए।
अतीन्द्रीय सुख और सर्व प्राप्तियों का सुख का अनुभव नहीं होने पर विनाशी भौतिक वस्तुओं की तरफ आकर्षिक जरूर होंगे। सर्व प्राप्तियों के प्राप्ति में मगन रहने पर, विघ्न टल जाता है। विघ्नों की लहर तभी आती है जब रूहानियत का फोर्स जमा हो जाता है।
सदा स्वमान में रहने पर देह अभिमान से छूट जाते हैं। बुद्धि के अन्दर वर्तमान व भविष्य के स्वमान की स्मृति से देह अभिमान नहीं होता है। जब हम स्वमान में नहीं होते हैं, तब हमारे स्वभाव का टक्कर होता है। स्वमान की लिस्ट लम्बी करने पर माया की छोटी-छोटी बातें हमें कमजोर नहीं करेंगी। स्वमान की स्मृति का अर्थ है, मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ। लेकिन यह स्टेज तभी बनेगी जब हम इसका अनुभव करेंगे। अनुभव नहीं होने पर थकावट और मुश्किल का अनुभव नहीं होगा।
अव्यक्त महावाक्य बाप दादा मुरली 21 नवम्बर, 1972
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, सहायक निदेशक सूचना एवं लोकसम्पर्क विभाग देहरादून
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