- शुभ चिन्तन वाले, सदैव प्रसन्नता की पर्सनालिटी में रहते है
देहरादून : शुभचिन्तन स्व और दूसरों के चिन्ता मुक्ति का आधार है। आत्मिक शाक्ति जितना ही कम होगी उतना ही खुशी को बाहर खोजेंगे, उतना ही आत्मिक शक्ति कम भी होगी। व्यक्त के स्वार्थ अर्थात स्व के अर्थ कार्य करना अल्प काल के खुशी का आधार है। स्वार्थ पर अधारित कर्म अल्प काल की खुशी के बाद चिन्ता की चिता में बदल जाता है। लेकिन शुभचिन्तन के थोडे समय का सम्पर्क अनेको के चिन्ताओं को मिटाने का आधार बन जाता है। शुभ चिन्तक बनना अर्थात शुभ चिन्तन करना। व्यर्थ चिन्तन और पर चिन्तन स्व के प्रति शुभ चिन्तक नही बनने देते है। शुभ चिन्तक, स्व और दूसरों के प्रति व्यर्थ चिन्ता और पर चिन्तन को समाप्त कर देता है। अन्तरिक भरपूरता के कारण स्व और दूसरों के प्रति शुभ चिन्तक बन जाते है। मर्यादा आत्मा को भरपूर करती है। मर्यादा का उल्लधन आत्म शक्ति को कम करता है। शुभ चिन्तक अपने सम्पन्नता के नशे में रहता है, जिसके आधार पर वह सदैव दूसरों को देता जाता है और स्वयं में भरता भी जाता है।
शुभ चिन्तन होने पर चिन्ता स्वतः समाप्त हो जाती है। चिन्ता की चिता पर होने के कारण हिम्मत और उल्लास के पर कमजोर हो जाते है। लेकिन शुभ भावना व शुभ चिन्तन उनके हिम्मत और उल्लास के पंख लगा देती है जिसका आधार लेकर वह उडने लगते है। शुभ चिन्तन की स्थिति दिल शिकस्त को दिल खुश बना देता है और जलती हुई आत्माओं को शीतल जल की अनुभूति कराती है। सर्व के प्रति शिव चिन्तक बनने पर सर्व के सम्पत्ति, समय, और सहयोग स्वतः प्राप्त होता है। शुभ चिन्तक भावना दूसरों के प्रति मन के सहयोग की भावना स्वतः पैदा करता है अर्थात जहाॅ निस्वार्थ स्नेह है वहाॅ लोगों के समय, सम्पत्ति और सहयोग देने के लिए वह स्वत तैयार हो जाते है।
शुभ चिन्तक व्यक्ति सर्व की संतुष्टता का सहज ही सर्टिफिकेट प्राप्त कर लेते है और सदैव प्रसन्नता की पर्सनालिटी में रहते है। आज कल की पर्सनालिटी वाले केवल नामी ग्रामी दिखावे के लिए होते है लेकिन अन्दर से खाली होते है। शुभ चिन्तन और स्व चिन्तक बनने के लिए जिस प्रकार से बाहरी प्रोग्राम बनाते है उसी तरह स्व के प्रति प्रोग्राम बनाये। स्व के प्रति प्रोग्राम बनना अर्थात सदैव हर व्यक्ति के प्रति अनेक प्रकार की भावना को समाप्त करके केवल एक शुभ चिन्तन की भावना रखना है। सर्व को स्व से आगे रखने का सहयोग देना और सर्व के प्रति श्रेष्ठ कामना द्वारा सुन्दर विश्व के निर्माण में सहयोगी बनना है। इसलिए सदा व्यर्थ चिन्तन, पर चिन्तन को समाप्त करना अर्थात बीती बातों को बिन्दी लगना है। स्व का प्रोग्राम सभी प्रकार के प्रोग्राम के सफलता का आधार है। इस फाउण्डेशन को मजबूत रखने पर प्रत्यक्षता का आवाज स्वत ही बुलन्द होगा।
अव्यक्त बाप दादा महावाक्य मुरली 10 नवम्बर 1987
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, सहायक निदेशक सूचना एवं लोकसम्पर्क विभाग देहरादून