देहरादून : अंडरग्राउण्ड होकर हम बड़े प्रोजेक्ट पर कार्य कर सकते हैं। बड़े प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए हमें केवल अपने काम का लक्ष्य दिखाई देना चाहिए। इसके लिए हमें बाहरी दुनिया से कटआफ होकर अंडरग्राउण्ड होना पड़ता है। अंडरग्राउण्ड होना अर्थात् अंतरमुखी होना। जितना बड़ा और शक्तिशाली आविष्कार करना होता है उतना ही अंतरमुखी होकर अंडरग्राउण्ड होना पड़ता है।
अंडरग्राउण्ड होकर हम नए-नए आविष्कार कर सकते हैं। अंडरग्राउण्ड रहने से बाहरी निगेटिव वातावरण से बचाव होता है, एकांत प्राप्त होने से विषय के गहराई में जाकर चिंतन मंथन करने का समय मिलता है। यह हमारे मार्ग में आने वाले विघ्न से निपटने के लिए सेफ्टी का साधन बन जाता है अर्थात् विघ्नों से बचाव होता है, समय की बचत होती है और निगेटिव संकल्पों से बचाव होती है।
इसलिए हमें अंडरग्राउण्ड होकर अंतरमुखता की प्रैक्टिस करनी होती है। इससे प्राप्त अनुभवों को स्थूल कारोबार में उपयोग करते हैं। जिस प्रकार बुद्धि के द्वारा प्रोग्राम के विषय में हमें क्या-क्या करना है इसका एक चार्ट बनाना होता है, उसी प्रकार स्थूल कारोबार में जो व्यक्ति प्रोग्राम बनाने के अभ्यासी होते है उनका हर कार्य समय पर सफल होता है।
जब प्रोग्राम सेट करेंगे तब समय की बचत होगी और सफलता अधिक प्राप्त होगी। सुबह-सुबह अमृतबेला में सबसे पहले बुद्धि में अपना प्रोग्राम सेट कर लेना चाहिए। इसके बाद इस प्रोग्राम को समय-समय पर चेक लिस्ट से चेक करते रहना चाहिए। यह कार्य किया गया अथवा कहां तक किया गया और अभी कहां तक करना है। जिस प्रकार कोई वी.आई.पी बिना किसी प्रोग्राम के कहीं जाता नहीं, उसी प्रकार अपने दिनभर के प्रोग्राम का एक-एक सेकेण्ड बुक रखो।
जिनको अपना प्रोग्राम सेट करना आता है उनको अपने स्थिति को सेट करना आता है। बिना प्रोग्राम के जैसे रिजल्ट ऊपर-नीचे होता है, उसी प्रकार हमारी मन की स्थिति भी ऊपर-नीचे होती रहती है। हमारे मन की स्थिति सेट के स्थान पर अपसेट हो जाती है। इसलिए प्रोग्राम बनाकर चलना है, ऐसा नहीं है कि जैसा आया वैसा कर लें।
अंडरग्राउण्ड होकर अंतरमुर्खता में जाकर संकल्पों की चैकिंग करके शुद्व संकल्प पर स्थित होना है। शुद्व संकल्प का अर्थ है जहां केवल विषय-वस्तु दिखें, विषय-वस्तु के अतिरिक्त कुछ भी न दिखे। शुद्व संकल्प बहुत शक्तिशाली होता है। इस स्थिति को धारण करके अपने कर्मभूमि पर आना है। यह कर्मयोगी की स्टेज है। शुद्व संकल्प हमारे मन की ऊंची अवस्था है और सर्वकल्याण भाव से युक्त है। इसमें अपने साथ ही दूसरो का भी कल्याण छिपा रखा है। कर्मयोगी के समान कर्म करते हुए अपने मूल निजी स्थिति को नहीं भूलना चाहिए। यह स्मृति ही समर्थी दिलाती है स्मृति कम तब समर्थी कम।
बहुत अधिक सोचने से हमारा रिजल्ट भी बदल जाता है। जैसे पेपर के समय पेपर करने के बजाय यदि क्वेश्चन के सोच में चले जाते है, तो पेपर छूट जाता है। जैसे स्वयं में निश्चय का अर्थ है अपने पढ़ाई में निश्चय होना वैसे ही अपने हर कर्म और हर संकल्प में निश्चय रखकर प्रैक्टिल पेपर पास करना होता है। सफलता के लिए दृढ़ निश्चय अनिवार्य है। यदि दृढ़निश्चय में कमी है तब इस कमी को कब तक भरेंगे। दो वर्ष अथवा तीन वर्ष सपने में भी नहीं सोचना है, इसको अभी करना है।
जो पुरूषार्थी होते है उनके मुख से कभी शब्द नहीं निकलता हैं, वह अभी शब्द का प्रयोग ही नहीं करते हैं बल्कि उस कार्य को अभी करके दिखाते है। तीव्र पुरूषार्थी अपने कमी कमजोरी को जानकर, उस कमी-कमजोरी को अभी खत्म कर देता है। बुद्धि में लगन कम होने के कारण, अनेक प्रकार के संग के आकर्षण अपने तरफ खींच लेता है। इसलिए अनेक संग तोड़ एकसंग जोड़ना है।
अव्यक्त महावाक्य बाप-दादा
24 जून 1971
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, प्रभारी मीडिया सेन्टर विधानसभा देहरादून
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