देहरादून : किसी से सहयोग प्राप्त करने के लिए उसका सहयोगी बनना होता है। सहयोगी बनना अर्थात सहज योगी बनना होता है। योग्य ही सहयोगी बन सकता है, सहयोगी बनना योग युक्त अवस्था है। जो निरन्तर सहयोग के योग में होगा, वह निरन्तर योगी होगा और उसके हर संकल्प, वाणी और कर्म सहयोग की भावना प्रत्यक्ष दिखेगी।
यदि बुद्धि द्वारा सहयोग करने में मुश्किल लगता है, तब वचन द्वारा सहयोग करें, यदि वचन द्वारा सहयोग करने में मुश्किल लगता है तब कर्म द्वारा सहयोग करें। निरन्तर सहयोग करना, निरन्तर योगी बनना कोई कठिन कार्य नहीं है, यदि मन से नहीं तो तन से, तन से नहीं तो धन से, धन से नहीं तो वाणी से सहयोग देना है।
हिम्मत रखने के लिए भी सहयोगी बनना होगा। लोग कहते हैं कि तन में भी हिम्मत नहीं है, मन में भी हिम्मत नहीं है, धन में भी हिम्मत नहीं है तब हम क्या करें। लेकिन बहुत से लोग होते हैं, जिनमें हिम्मत तो नहीं होती है परन्तु उमंग उत्साह से दूसरों को हौंसला जरूर होती है। हौंसला देकर दूसरों को हिम्मतवान बनाना है। अर्थात हमारे पास तन, मन, धन और वाणी में से जो कुछ भी है उसी का सहयोग देने से लोग हिम्मतवान बन जायेंगे और सहयोगी।
सहयोग देकर, सहयोग इस प्रकार बनना है कि यह हमारा नेचर बनकर, हमारे लिए नेचुरल बन जाये। जब किसी बात को नेचर में लाकर नेचुरल बन जाते हैं, तब परफेक्ट बन जाते हैं। परफेक्ट होना अर्थात इफेक्ट और डिफेक्ट से परे होना। परफेक्ट होने का अर्थ जहां कोई इफेक्ट और डिफेक्ट नहीं होता है। परफेक्ट होने का हमारा हर संकल्प, बोल और कर्म व्यर्थ नहीं जाता है और हम समर्थ बन जाते हैं। परफेक्ट होने वाला कम्पलीट बन जाता है, कम्पलीट, कम्पलेंन नहीं करता है।
परमात्मा सर्वोच्च शक्ति से, हम जितना चाहें उतना शक्तियों का वरदान ले सकते हैं। लेकिन हमें सब कुछ मिलने के बावजूद लेने को तैयार नहीं है, जबकि परमात्मा देने को तैयार है। परमात्मा से लेने के लिए हमें सामर्थवान बनना होगा, उससे विशेष स्नेह रखते हुए सहयोग करना होगा। निरन्तर योगी अर्थात परमात्मा और हमारे बीच किसी तीसरे का अस्तित्व न होना है। सदैव सोचें कि परमात्मा हमारा सहयोगी है और हम परमात्मा के सहयोगी हैं। इनके बीच वियोग जैसी चीज का हमें पता ही नहीं चलता है।
अव्यक्त महावाक्य बाप दादा मुरली 01 नवम्बर, 1971
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, सहायक निदेशक सूचना एवं लोकसम्पर्क विभाग देहरादून
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