देहरादून : स्व स्थिति , अगंद की स्थिति की सहायता से सच्चा लीडर निगेटिव को पॉजीटिव में बदल देता है। उन्नति की तरफ बढाने कि निशानी है विघ्न विनाशक बनने का अनुभव करना। अर्थात विघ्न देखकर अपनी स्टेज पर अंगद के समान स्थित रहना है। और घबराना नही है। अनेके प्रकार के तूफान हमारी बुद्धि में चलते रहते है। लेकिन जब हम किसी तूफान को तोहफा समझ लेते है तब उससे मिलने वाली हिम्मत और उल्लास की सहायता से हलचल में भी अचल रहते है।
कोई भी परेशानी आये तब हम घबराने की जगह समस्या की गहराई में चले जाये तब हमें समाधान स्वतः मिल जाता है। किसी भी तूफान के के्रन्द बिन्दु पर एकदम शान्ति की स्थिति रहती है। इसी प्रकार यदि हम बाहय परिस्थितियों से हट कर स्व स्थिति में चले जाये तब हमें शान्ति मिल जायेगी। समस्या के गहराई में जाने पर हमें समाधान मिलता है और नये -नये अनुभव भी मिलते है। प्राप्त अनुभव के ज्ञान रत्नों से आने वाली परीक्षा के सागर के गहराई को जान कर परीक्षा को पास कर लेते है।
इसलिए किसी भी समस्या के आने पर बहिर्मुखता से देखने की जगह अन्र्तमुखी दृष्टि और बुद्धि से देखने पर हमें समाधान मिलता है और ज्ञान के अनुभव रूपी अनेक प्वाईंटस मिलते है। इस अनुभव को प्राप्त कर लाने के बाद हमें किसी आश्चर्य का अनुभव नही होगा। क्योेकि हम भविष्य की बाते भी अनुमान के आधार पर देखने लगते है। जीवन में विघ्न आना जरूरी है। जितना विघ्न आयेगा उतना अनुभव भी देकर जायेगा। यह अनुभव हमारे मार्गदर्शन का कार्य करते है।
यदि हमारे बडे लक्ष्य के मार्ग में कोई बाधा आ जाये तब वह बाधा उपर से भले हलचल दिलाने वाली हो लेकिन हम सागर के तल पर जाकर हलचल को समाप्त कर लेते है। अन्त की निशानी अति है। फाईनल पेपर में बहुत आश्चर्य जनक प्रश्न मिलेंगे। लेकिन अचल स्थिति में किसी प्रकार का प्रश्न न उठने के कारण सभी प्रकार के उत्तर भी दे देगें।
समस्या की सीट को सम्भालने में लगाना अर्थात अपनी स्व की सीट पर बैठ कर समस्या का समाधान करना है। इसके लिए निरन्तर योगी बनना है ना कि अन्तर वाले योगी बनना है। हमारी स्टेज ऐसी बन जाय कि दूश्मन हमारे सामने आने ही ना पाये। हमें समस्या का सामना ही न करना पडे। हमें उस स्टेज तक पहुचॅ जाना है जहाॅ समस्या के अंश का वंश भी ना बचे।
समस्या को विदाई देने के लिए हमे घेराव डालना है, लेकिन मजबूत घेराव डालना है। यहा करते समय बीच-बीच में ढीला नही पडना है और ना ही चलते चलते रूक जाना है। ऐसा नही है जब समय धक्का देगा तब चल पडेंगे। ऐसा सोच कर जहाॅ का तहाॅ नही रूके रहना है। किसी के सहारा मिलने की उम्मीद में खडा नही रहना है।
पहाडी रास्ते पर बर्फवारी से रास्ता रूक जाता है। इसी प्रकार यदि हम अपनी मेहनत से जमे हुए बर्फ को हटा देना है। इसमें हमारी योग अग्नि सहायक बनती है। योग अग्नि को तेज करने पर हमारा रास्ता क्लियर मिलता है।
अव्यक्त बाप दादा महावाक्य मुरली 15 अप्रैल 1974
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, सहायक निदेशक सूचना एवं लोक सम्पर्क विभाग उत्तराखंड
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