देहरादून : टीचर का फीचर्स प्रभावशाली होना चाहिए। टीचर द्वारा यह शब्द नहीं निकलना चाहिए कि यह मेरा नेचर हैं। ऐसा कहना अपनी कमजोरियों का बखान करना है। यह शक्तिहीनता की निशानी है।
आज सभी टीचर प्रश्न कर रहे हैं कि स्टूडेंट उनकी क्यों नहीं सुनते है। ऐसा इसलिए है कि टीचर ने परखने की शक्ति का अभाव है। टीचर अपने कर्तव्य और विषय को लेकर अस्पष्ट रहता है। इस कारण टीचर के मन में सदैव क्या, क्यों, कैसे क्वेश्चन मार्क लगा रहता हैं। मन में चलने वाले डाउट पर फुल स्टाॅप लगाना नहीं आता है।
सभी टीचर को अपने मर्यादा और कर्तव्य का ज्ञान है परन्तु इसपर चलना उनको मुश्किल लगता है। किसी वृक्ष से मीठा फल तभी निकलेगा जब उसका सही तरीके से देखभाल करके खाद्य पानी दिया जाए। श्रेष्ठ फल तैयार करने के लिए अच्छे संस्कार का बीज डालना होगा। हर टीचर को अपने स्टूडेंट के ऊपर इतनी मेहनत करनी होगी। परन्तु जितना स्वयं के गुणों से भरपूर होंगे उतना ही हम दूसरो में गुण भर सकेंगे।
जैसे दर्पण में अपनी सूरत सहज और स्पष्ट दिखती है ऐसे ही हमारी टीचिंग की सर्विस दर्पण बनकर स्टूडेंट को स्पष्ट साक्षात्कार कराता है। वह सूरत का आईना है और यह सीरत का आईना है। जब अपनी कमजोरी को मालूम करेंगे तभी अपने में शक्ति भर सकेंगे।
अध्यनन और अध्यापन के लिए एकाग्रता बहुत जरूरी है। इन्द्रियों का आकर्षण अतीन्द्रीय सुख में बाधक है। इस ठिकाने पर टीक जाने से एक रस अवस्था बन जाती है। अपने मन और बुद्वि को हिलने न दें। हिलना अर्थात् हलचल में आ जाना। युद्व के हलचल में आकर हम अपना समय और एनर्जी गंवाते है। बुद्वि को जितना इंगेज करंेगे ,समस्या के वार से बच जायेंगें। बुद्वि को इंगेज कर लें तब कोई डिस्टर्ब नहीं कर सकेगा। इसके लिए एक रस अवस्था, एक का ध्यान और एक के सर्विस की प्रतिज्ञा करके वरदान लेना है।
जिस प्रकार नशे में रहने वालो को कुछ नहीं सुझता है उसी प्रकार टीचर और स्टूडेंट को अपने कोर्स के अलावा किसी अन्य बात में नहीं उलझना चाहिए। इसके लिए अपनी चाल और चलन को चेंज करना होगा। दुनिया अपना कार्य करें लेकिन हमें अपना कार्य करना होगा। उनको देखकर घबराना नहीं है। जितना वह अपना कार्य फोर्स से करेंगे उससे अधिक फोर्स से हम अपना कार्य करेंगे।
धीरे-धीरे हमारी आदत स्वधर्म बन जाएगा। यह हमें सहज बना देगा जिससे दूसरे भी सहज महसूस करेंगे। हमें देखकर वह कहेंगे कि यह तो अपने ही है। ऐसा अनुभव करके दूसरे भी अपनी आदत को छोड़कर अच्छी आदत पकड़ लेंगे। नकली चीज को छोड़ना आसान होता है।
हम जो भी कार्य अथवा शब्द उत्पन्न करते है वह प्रतिध्वनि के रूप में हमारे पास वापस आती है। हमारी रचना ही हमें पुनः मिल जाती है। इसलिए अपने संकल्प पर अटेंशन रखना है। संकल्प पर अटेंशन रखने से हमारी वाणी और कर्म शक्तिशाली हो जाएंगे।
ऐसा करने पर टीचर की यह शिकायत दूर हो जाएगी कि स्टूडेंट हमारी नहीं सुनता है। मेहनत करते है लेकिन आगे नहीं बढ़ते है। यह स्थिति हमारा स्वयं का दर्पण है और अपनी स्थिति का रिटर्न है। स्टूडेंट भी अपने टीचर की कमी को परखकर उसका एडवान्टेज उठाते है।
अव्यक्त महावाक्य बाप-दादा
21 जनवरी, 1971
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, प्रभारी मीडिया सेंटर, विधानसभा देहरादून
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