देहरादून : इफेक्ट से बचने के लिए परफेक्ट बनना होगा। हमारा लक्ष्य परफेक्ट बनने का है, परफेक्ट अर्थात कोई डिफेक्ट न हो। यदि कोई भी डिफेक्ट हो, चाहे संकल्प का डिफेक्ट हो या सम्बन्ध, सम्पर्क का डिफेक्ट हो, यह उसी प्रकार होता है जैसे शरीर को मौसम का इफेक्ट पड जाता है और बीमारी अर्थात शरीर में डिफेक्ट आ जाता है। अर्थात जब हमारा खानपान डिफेक्ट होता है तब इसका इफेक्ट बीमारी के रूप में आ जाती है।
कोई भी डिफेक्ट न रहे इससे बचने के लिए दुनिया के आकर्षण या माया के इफेक्ट से बचाना होगा। दुनिया के आकर्षण या माया के कारण कोई न कोई इफेक्ट आ जाता है, जिससे हम परफेक्ट नही बन पाते है। हमारा प्रयास होना चाहिए कि हमारे भीतर कोई डिफेक्ट न रहे, तभी हम इफेक्ट प्रूफ बन सकते है।
इफेक्ट प्रूफ बनने के लिए हमारे पास साधन भी है और समय भी है। इसके लिए हमें मनसा के डिफेक्ट से दूर रहना होगा, और साथ में वाचा और कर्मणा के डिफेक्ट से भी दूर रख कर इसके इफेक्ट से बचना होगा। समझदार व्यक्ति पहले से ही उसी प्रकार अटेन्शन रखते है जैसे गर्मी के सीजन आने के पहले ही बचाव के लिए कुलर और एसी तैयार कर लेते है। ऐसे लोग सेन्सीबुल कहलाते है। यदि किसी को इसकी समझ नही है तब वह गर्मी के मौसम के इफेक्ट में आ जाता है। हमें सब कुछ पाता होते हुए भी इफेक्ट प्रूफ साधनों के प्रयोग में चूक जाते है अथवा चाहते हुए भी उस समय अन्जान बन जाते है। यदि कोई इफेक्ट होता है तब हमारी बुद्वि में डिफेक्ट आ जाता है। इस डिफेक्ट से बुद्वि अपना कार्य करना बन्द कर देती है। इसलिए परफेक्ट बनने में डिफेक्ट रह जाता है।
जिस प्रकार शरीर को डिफेक्ट से बचाना होता है उसी प्रकार आत्मा को भी डिफेक्ट से बचाना होगा। आत्मा की देखभाल करके ही सभी इफेक्ट से दूर रह कर परफेक्ट बन जाते है। लेकिन सब कुछ जानते हुए भी संग दोष के कारण गलती कर देते है। सब कुछ समझते हुए भी उस समय के वातावरण के प्रभाव से या संस्कारों के प्रभाव से पुनः उसी इफेक्ट में आ जाते है। सदैव चेक करना है कि हम मुख्य किस बात के इफेक्ट के लिए निमित बने है। इफेक्ट का मुख्य करण जानते हुए भी हमे माया या परिस्थिति की समस्या थोड़ा बहुत इफेक्ट में ला देती है। यदि सभी इफेक्ट से बचना है तब संग दोष, अन्न दोष, धन दोष का कारण जानकर इफेक्ट प्रूफ बन सकते है।
दूनिया का आकर्षण या माया हमे सेन्सीबुल से अन्जान बना देती है। यदि हम सदैव ज्ञान या सेन्स में रहते है तब सेन्सीबुल बनने के कारण किसी के इफेक्ट में नही आते है। यदि कोई इफेक्ट से बच जाता है तब उसे सेन्सीबुल कहा जाता है। इसलिए माया पहले सेन्स को कमजोर कर देती है। जिस प्रकार सामना करने के पूर्व दुश्मन हमें कमजोर करने की कोशिश करता है, इसके बाद वार करता है। इसलिए माया पहले हमें कमजोर करने के तरीके खोजती है। अर्थात माया पहले दुश्मन के सेन्स को कमजोर कर लेती है। सेन्स कमजोर होने से हम नही समझ पाते है कि यह राइट है अथवा राॅग। इस नासमझ से हमारे भीतर इफेक्ट आ जाता है और यह इफेक्ट ही डिफेक्ट का रूप ले लेता है और यह डिफेक्ट हमें परफेक्ट नही बनने देता है। जो सेन्सीबुल होगा वह सक्सेसफुल जरूर होगा।
अव्यक्त महावाक्य बाप दादा मुरली, 26 जून 1972
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, सहायक निदेशक सूचना एवं लोकसम्पर्क विभाग उत्तराखंड
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