देहरादून : हमारे शब्द ऐसे हों की जो अनाथ को भी सनाथ बना दे। हमारे शब्द में इतनी शक्ति भरे हों कि हमारे स्टेज पर पहुचने का लोग इंतजार करें और हमारे शब्द सुनकर शक्तिशाली होने का अनुभव करें। अपनी स्मृति ज्ञान से अपनी स्थिति को इतना पावरफुल बनायें कि लोग जो भी सुनना और देखना चाहते हैं उसका साक्षात्कार हो जाये।
हमें केवल भाषण देने की तैयारी नहीं करनी है बल्कि अपनी भाषा की ऐसी तैयारी रखनी है कि सुनने वाला भाषा के परे स्थिति में आने का अनुभव कर सके। भाषण की तैयारी तो सभी करते हैं परन्तु इसे अनुभव में लाने की तैयारी बहुत कम लोग करते हैं।
स्पीकर्स का ग्रुप एक माॅडल ग्रुप होता है। इस माॅडल ग्रुप में आने के लिए अपने स्पीच के स्पीड को चेक करना होता है। यदि हमारी स्पीड अच्छी होगी तभी स्पीकर्स के ग्रुप में आ सकेंगे। यदि बिना स्पीड के स्पीच देंगे तब न अपना भला करेंगे और न दूसरों का भला कर सकेंगे। अर्थात हमारी स्पीच भी पावरफुल होनी चाहिए और स्पीड भी पावरफुल होनी चाहिए।
डिटैच भाव की स्थिति की स्टेज पर ठहर कर स्पीच देनी है। हम बाहर की स्टेज पर ठहर कर स्पीच देते हैं, परन्तु इसके पूर्व अन्दर की स्टेज पर ठहरने का अभ्यास करना होगा। जैसे हम अपने भाषण के पूर्व अपने स्टेज को तैयार करते हैं। वैसे भाषण के पूर्व अपने अन्दर के स्टेज की भी तैयारी कर लें। यदि हम स्टेज पर ठहर कर स्पीच देंगे तभी अच्छी स्पीकर कहलायेंगे।
हमें हमेशा एवरेडी की स्टेज पर रहना है। ऐसा नहीं है अचानक स्पीच करने को कहा जाय और हम स्टेज को तैयार करने में लग जाय। जब हम प्रभावशाली स्पीकर होंगे तभी दूसरे स्पीकर्स को सर्टिफिकेट दे सकेंगे, अर्थात दूसरों को सर्टिफाइट कर सकेंगे।
टीचर्स को भी पेपर देना होता है। इसलिए हम अपना हर कदम इस प्रकार उठायें कि जैसे पेपर हाल में बैठे हों, अर्थात स्पीकर्स की स्टेज पर बैठे हों। सामने स्टेज पर जो बैठा होता है उस पर सभी की नजर होती है। यदि हमारा एक कदम ढीला अथवा ऊपर नीचे होगा तब हमें रोल माॅडल मानकर लोग उसी को फालो करेंगे।
जैसे साइंस की शक्ति ने हर क्षेत्र के स्पीड को बढ़ाने के लिए योगदान दे रहा है उसी प्रकार साइलेंस की शक्ति द्वारा हम अपने स्पीड को बढ़ाने का कार्य करें। जितनी अधिक हमारी स्पीड होगी उतने ही कम समय में हमें सफलता भी प्राप्त होगी। जितना हम अपने स्पीड को बढ़ायेंगे उतना ही जल्दी फाइनल स्टेज तक पहुच जायेंगे।
हम अपने स्टेज से अपनी स्पीड को चेक कर सकते हैं। जितना अधिक हम अपने को चेक करेंगे उतना ही लाईट हाउस और माईट हाउस बनकर अच्छा स्पीकर बनेंगे। अच्छा स्पीकर बनने पर सुनने वालों को गाईड करेंगे।
हमें बड़ी जिम्मेदारी मिली है लेकिन हमें अपनी जिम्मेदारी को निमित मात्र समझकर करना है। हम केवल अपने कर्तव्य के प्रति जिम्मेदार हैं। अपने रिजल्ट के प्रति किसी भी रूप में जिम्मेदार नहीं हैं। ऐसा कर्म करें और जो भी कदम उठायें वह विश्व के लिए एग्जाम्पल बन जाए।
अपनी अच्छी स्टेज बनाने के लिए, सिद्ध स्वरूप बनने के लिए सहज विधि है आदि, मध्य और अन्त को देखकर कार्य किया जाए। हमारे संकल्प श्रेष्ठ हों तब संकल्प की सिद्धि होगी और यही हमारे कर्तव्य की विधि है। हमारे संकल्पों के सिद्ध न होने के कारण इसमें व्यर्थ का मिक्स हो जाना है। व्यर्थ मिक्स हो जाने से हम समर्थ नहीं बन पाते हैं। इसलिए जो संकल्प रचते हैं वह सिद्ध नहीं होता है। इसलिए व्यर्थ की जगह समर्थ की रचना करनी है। संकल्पों की संख्या जितनी कम होगी उतनी ही रचना पावरफुल होगी।
अव्यक्त महावाक्य बाप दादा
11 फरवरी, 1971
लेखक : मनोज कुमार श्रीवास्तव, प्रभारी मीडिया सेन्टर विधानसभा देहरादून
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