देहरादून : डॉक्टरी करते हुए कुछ डॉक्टर अपना कर्तव्य भूल जाते हैं। डॉक्टर का कर्तव्य मरीज ईमानदारी पूर्वक ईलाज करना, लेकिन मरीज के बहाने अपना आर्थिक ईलाज करने लगते हैं। कुछ डॉक्टर अपने मूल कर्तव्य के स्वरूप को भूल चुके हैं, अर्थात अपने स्वरूप, स्वदेश, स्वधर्म को भूल चुके हैं।
स्व की स्थिति में स्थित रहने से सर्व प्रकार की परिस्थितियों से बाहर निकल सकते हैं। वर्तमान समय हम इसी परिस्थिति से गुजर रहे हैं। इसके लिए हमें स्व शब्द को याद रखना होगा। स्व शब्द को याद रखने से स्वधर्म, स्वदेश, स्वरूप, श्रेष्ठ कर्म, और श्रेष्ठ स्थिति आटोमैटिकली याद रहती है।
जो चीज हमारे पास सदाकाल के लिए रहती है उसे हम नहीं भूल सकते हैं। जिस प्रकार शरीर सदा साथ रहने का सदा याद रखता है, उसी प्रकार आत्मा की स्थिति सदा साथ रहने पर स्व की स्थिति याद रखना चाहिए। आत्मा का स्थान शरीर से ऊंचा है, इसलिए हमें गिराने वाले को नहीं बल्कि उठाने वाले को याद रखना चाहिए।
स्व स्थिति में आत्मिक स्थिति का अनुभव करने पर हम दूसरों को भी आत्मिक स्थिति, शांति की स्थिति का अनुभव करा सकते हैं। हम यह भी कह सकते हैं कि हम दूसरों को जीवन मुक्ति के गेट का पास दे सकते हैं। जब तक हम किसी को जीवन मुक्ति, दुःख की मुक्ति का पास नहीं देंगे तब तक वे पास नहीं कर पायेंगे। बेचारे शांति के तड़पते हुए, शान्ति का भीख मांगने के लिए लाइन में खड़े रहते हैं। इसलिए हमें रूहानी डॉक्टर बनकर अपना कर्तव्य समझकर इन्हें शान्ति के गेट का पास देना है।
दूसरे लोग शान्ति के लिए अनेक साधन अपनाते हुए, साधनों से थक चुके हैं, फिर भी अशांत हैं, इसलिए उन्हें साधन की नहीं बल्कि सिद्धि की जरूरत है। दूसरों को बिना साधन के ही सिद्धि का अनुभव कराना है। छोटी-छोटी बातों में समय और शक्ति नहीं गंवाने से हमारे पास शक्तियाँ जमा होती जायेंगी। बेहद में रहने से, हद की बातें स्वतः ही समाप्त हो जाती हैं। हमें अपडेट वर्जन में रहना है। कोई नयां फैसन निकले और हम पुराने फैसन पर चलें तब इसे आउटडेटेड कहते हैं।
अव्यक्त महावाक्य बाप दादा मुरली 24 अक्टूबर, 1971
लेखक : मनोज श्रीवास्वत, सहायक निदेशक सूचना एवं लोकसम्पर्क विभाग उत्तराखंड, देहरादून
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