मंगलवार, अक्टूबर 21, 2025
  • Advertise with us
  • Contact Us
  • Donate
  • Ourteam
  • About Us
  • E-Paper
  • Video
liveskgnews
  • होम
  • उत्तराखण्ड
  • उत्तरप्रदेश
  • राष्ट्रीय
  • धर्म
  • रोजगार न्यूज़
  • रोचक
  • विशेष
  • साक्षात्कार
  • सम्पादकीय
  • चुनाव
  • मनोरंजन
  • ऑटो-गैजेट्स
No Result
View All Result
  • होम
  • उत्तराखण्ड
  • उत्तरप्रदेश
  • राष्ट्रीय
  • धर्म
  • रोजगार न्यूज़
  • रोचक
  • विशेष
  • साक्षात्कार
  • सम्पादकीय
  • चुनाव
  • मनोरंजन
  • ऑटो-गैजेट्स
No Result
View All Result
liveskgnews
21st अक्टूबर 2025
  • होम
  • उत्तराखण्ड
  • उत्तरप्रदेश
  • राष्ट्रीय
  • धर्म
  • रोजगार न्यूज़
  • रोचक
  • विशेष
  • साक्षात्कार
  • सम्पादकीय
  • चुनाव
  • मनोरंजन
  • ऑटो-गैजेट्स

स्वयं के नैसर्गिक स्वरूप की खोज : भेदभाव और आडंबर से परे जीवन

शेयर करें !
posted on : फ़रवरी 15, 2025 2:03 अपराह्न
  • क्या कभी हम सोचते हैं कि अगर थोड़े समय के लिए भी हम अपने जीवन के सारे अंधविश्वास, रूढ़िवादिता, पूर्वाग्रह से बाहर आ जाएं, तो हम कैसे होंगे?
हरिद्वार : आज थोड़ा आँख बंद करके चिंतन मनन करते हैं। क्या एक अबोध बच्चे को पता होता है कि वो स्त्री/पुरुष है। उसकी ये जाति है, वो धर्म है, वो आडंबर है। कैसा होता है एक शिशु। बिल्कुल शुद्ध, पवित्र, निर्मल हृदय का। सब विकारों से, दिखावे से मुक्त। कितना मासूम, उसे पता नहीं होता कि उसने क्या पहना है, क्या खाया है, क्या देखा है, क्या सुना है, क्या स्पर्श किया है। फिर क्यों वो ही शिशु जैसे जैसे बढ़ता जाता है उसके अंदर चीजें भरनी शुरू हो जाती है। कौन भरता है ये सब। परिवार और समाज। जिससे उसका अपना असली चरित्र धीरे धीरे ख़त्म होने लगता है। हम कहते हैं ना कि चरित्र का निर्माण होता है। कौनसे चरित्र का निर्माण होता है। निर्माण होता है तो सिर्फ भेदभाव का, पूर्वाग्रह का, दिखावे की जिंदगी का, अंधविश्वास और रूढ़िवादिता का। इससे हटकर क्या निर्माण होता है।
वहीं पुरानी सोच को आगे बढ़ाने का। लोग दहेज को, दिखावे को रीति रिवाज़ का नाम दे देते हैं। क्या एक बच्ची जो माता पिता का मान होती है उससे बड़ा कोई दहेज हो सकता है। अपने हृदय के टुकड़े को काटकर एक बच्ची को विदा किया जाता है। उसके साथ माता पिता लाखों रुपए देते है। हम स्वयं अपनी बच्ची का अपमान करते हैं उसे दहेज देकर। पैसा देकर उसके आत्मसम्मान को नीचे गिराते है। ना जाने ऐसी कितनी कुप्रथाएं हैं जिनमें हम जाने अनजाने भागीदार बनते हैं। क्या देखते हैं हम विवाह के लिए। सुंदरता, पैसा, पद, समाज में प्रतिष्ठा। क्या वाकई ये मापदंड होना चाहिए एक विवाह में स्त्री/पुरुष का। इसका नतीजा अलगाव में ख़त्म होता है। क्या हम अपने बच्चों के लिए ऐसा वर या वधु देखते हैं जो उसे असीम प्रेम दे, अपने परिवार में सम्मान दे, समानता और निजता का अधिकार दे। जो आपके सुख दुःख का समान भागीदार हो। जिसके आपके जीवन में आने से हम पूर्णता को प्राप्त हो जाएं। भीतर से स्थिर को जाएं, शांत हो जाएं, सुकून के पलों से भर जाएं। हमारी सोच सत्य और पारदर्शिता से परिष्कृत होती जाए। जो हमें भौतिक जगत के सारे आडंबरों से खींचकर अपने नैसर्गिक स्वरूप में स्थित कर दे, फिर से एक शिशु बना दे। क्या पति पत्नी कर पाते हैं एक दूसरे के लिए ये सब। सिर्फ निस्वार्थ भाव और प्रेम ही एक दूसरे को शिशु रूप में स्थापित कर सकता है। अन्यथा जैसी नींव, वैसा ही निर्माण। हर सही गलत को हम ये कहकर स्वीकार कर लेते हैं कि ये तो ऐसा ही है। क्यों ऐसा है।
एक उदाहरण पुरुष होकर रोता है। क्यों नहीं रो सकता, उसके अंदर संवेदनाएं नहीं हैं, उसके भीतर गुबार नहीं हो सकता, वो नहीं अपने विकारों को, अपने दुःख को आसुओं में बहा सकता। क्यों हर बात हम मान लेते हैं कि रोने वाला कमजोर इंसान होता है। मेरी नजरों में इस संसार में जिसके आंसू नहीं बहते ना, वो कमजोर इंसान है। ताकत अपने को पत्थर दिखाने से नहीं आती, ताकत आती है सत्यता और पारदर्शिता का सामना करने से। जो चीज़ जैसी है उसे वैसा ही स्वीकार करने से। प्रकृति सभी के लिए समान है, वो पुरुष या स्त्री नहीं देखती। समानता का व्यवहार करती है। जो कष्ट स्त्री को होते हैं वहीं कष्ट पुरुष को भी होते हैं। लेकिन पुरुष को दबाने के लिए मजबूर कर दिया जाता है। इसलिए ही हृदय से संबंधित रोग भी पुरुषों को ही ज्यादा होते हैं क्योंकि उनकी भावनाओं और संवेदनाओं को  कमजोरी का नाम देकर व्यक्त नहीं करने दिया जाता। ये भेद हमने ही किया है नहीं तो जैसे एक स्त्री को अपनी निजता और चरित्र की फिक्र होती है। एक पुरुष को भी अपनी निजता और चरित्र की फिक्र होती है। कुछ भी दोनों में भिन्न नहीं है। 
ये सिर्फ हमारी दृष्टि की भिन्नता है। जो जैसा दिखता है या हमें दिखाया जाता है। सत्यता में वो वैसा नहीं होता। हमें उसे अस्वीकार करके स्वयं सत्य तक पहुंचने का प्रयास करना चाहिए। आज थोड़ा सा आँखें बंद करके अपने असली स्वरूप में स्थापित होने का प्रयत्न करते हैं। शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध से परे, हर भेदभाव, आडंबर, जाति, धर्म, नाम से परे। देखते हैं इन सबके बिना हम कौन हैं। धन्यवाद। ॐ 
  • लेखक : रुचिता उपाध्याय “अनामिका” 
https://liveskgnews.com/wp-content/uploads/2025/10/yuva_UK.mp4
https://liveskgnews.com/wp-content/uploads/2025/09/WhatsApp-Video-2025-09-15-at-11.50.09-PM.mp4

हाल के पोस्ट

  • राज्यपाल ने बदरीनाथ धाम पहुंचकर की पूजा अर्चना, राज्य और देश की सुख समृद्धि की कामना की
  • जीएसटी दर में कटौती : उत्तराखंड में कृषि, पर्यटन और उद्योग को मिली मजबूती
  • उत्तराखंड : ओल्ड लंदन हाउस में फिर लगी आग, 3 दुकानें जलकर राख
  • दीपावली की रात निरंजनपुर सब्जी मंडी में दुकान में लगी भीषण आग, रॉकेट से भड़की लपटें
  • संकट में संबल बनीं डीएम स्वाति एस. भदौरिया : ग्राउंड जीरो पर दिखी आदर्श प्रशासनिक दक्षता और मानवीय संवेदनशीलता
  • उत्तराखंड : प्रदूषण नियंत्रण के लिए ड्रोन से पानी छिड़काव, तीन शहरों में 17 स्थानों पर अभियान शुरू
  • नौगांव में दर्दनाक हादसा, यमुना नदी में गिरा डंपर, चालक की मौत
  • PM मोदी ने INS विक्रांत पर जवानों संग मनाई दीपावली
  • पीसीएस वैभव गुप्ता की दूरदृष्टि और परिश्रम से नगर निगम कोटद्वार ने रचा इतिहास, स्वच्छता सर्वेक्षण में लहराया परचम, मिला “अटल निर्मल नगर” पुरस्कार
  • सैंट थैरेसा श्रीनगर ने जीती क्रिकेट की ट्राफी
liveskgnews

सेमन्या कण्वघाटी हिन्दी पाक्षिक समाचार पत्र – www.liveskgnews.com

Follow Us

  • Advertise with us
  • Contact Us
  • Donate
  • Ourteam
  • About Us
  • E-Paper
  • Video

© 2017 Maintained By liveskgnews.

No Result
View All Result
  • होम
  • उत्तराखण्ड
  • उत्तरप्रदेश
  • राष्ट्रीय
  • धर्म
  • रोजगार न्यूज़
  • रोचक
  • विशेष
  • साक्षात्कार
  • सम्पादकीय
  • चुनाव
  • मनोरंजन
  • ऑटो-गैजेट्स

© 2017 Maintained By liveskgnews.