नैनीताल (हिमांशु जोशी): अमिताभ बच्चन के कोरोना संक्रमित होते ही पूरे देश के लिए यह एक बड़ी ख़बर बन गई। इस चर्चा पर इसलिए भी अधिक ध्यान जाता है क्योंकि सदी के महानायक उम्र के 77 वें पढ़ाव पर हैं | बुज़ुर्गों में कोरोना का सबसे ज्यादा खतरा है क्योंकि उनमें ह्रदय रोग, मधुमेह जैसी बीमारियां अधिक होती हैं जो उनके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को कम कर देती है। इस समय देश के महानायक के साथ पूरे देश के बुज़ुर्ग कोरोना महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।
दिल्ली से 342 किलोमीटर दूर उत्तराखंड में हिमालय की तलहटी में बसे टनकपुर कस्बे में रहने वाले एक दम्पति रामी राम और गंगा राम की उम्र क्रमशः 60 और 58 वर्ष है। रामी राम से मिलते ही उनकी मोतियाबिंद से सफेद हो चुकी आंखे कोरोना काल में बुज़ुर्गों की बुरी दशा को खुद ही बयाँ कर देती हैं। उनकी पत्नी गंगा राम कहती हैं कि उनके दो बच्चों में से एक की 15-16 साल पहले मौत हो गई थी और दूसरा लड़का उनसे अलग रहता है। रामी राम कहते हैं कि लॉकडाउन के समय में सरकारी योजनाओं की वजह से खाने में कोई मुसीबत नही आयी पर आज तो खाना खा लिया है कल क्या खाएंगे इसका पता नही। न आंखों की रोशनी जा रही है जिसकी वजह से वह कोई भी काम नही कर पाते हैं, उनकी पत्नी ही लोगों के खेतों में काम कर कुछ कमा रही है। पत्नी की कमाई से ही शराब भी पीते हैं जिससे दोनों पति-पत्नी में अनबन भी होती है पर लड़ाई से भी क्या करें दोनों ही अब एकदूसरे का एकमात्र सहारा हैं।
रामी राम कहते हैं कि कोरोना काल की वजह से अब इन दोनों को अकेलापन भी सताता है डर की वजह से कुछ दूर रह रही अपनी बहन से भी मिलने नही जा पा रहे हैं। गंगा राम कहती हैं कि मुम्बई के उल्लासनगर में 20-25 साल रहने के बाद 3-4 साल पहले ही उत्तराखंड लौटे हैं और उन्होंने यह कभी नही सोचा था कि ऐसा समय भी आएगा। भविष्य में क्या होगा उन्हें नही पता। कोरोना से जैसे सब मरेंगे वैसे ही हम भी मर जायेंगे।
टाटा इंस्टिट्यूट्स ऑफ सोशल साइंस मुम्बई द्वारा मार्च 2020 में मुम्बई के बुज़ुर्गों की स्थिति पर एक शोध किया गया था।
डाइबिटीज उनमें एक मुख्य बीमारी थी। 46.4% बुज़ुर्गों ने कहा था कि सरकार को बुज़ुर्गों की मदद करनी चाहिए। ज्यादातर बुज़ुर्गों ने बिना रिटायरमेंट लाभ और पेंशन के काम किया।
वर्ल्ड बैंक के अनुसार वर्ष 2050 तक हर पांचवें भारतीय की उम्र 60 वर्ष से ऊपर होगी। वर्तमान में सिर्फ 12% भारतीय फॉर्मल पेंशन स्कीम प्राप्त करते हैं। जिसकी वजह से पचास लाख भारतीय जो 60 वर्ष से ऊपर होते हैं या बुज़ुर्ग की श्रेणी में आते हैं गरीबी का सामना करते हैं।
सांख्यकी और कार्यक्रम कार्यान्वन मंत्रालय भारत सरकार द्वारा बुज़ुर्गों पर वर्ष 2011 में किए गए स्थिति विश्लेषण के अनुसार भारत की आबादी में बुज़ुर्गों का प्रतिशत वर्ष 1961 में 5.6% था जो वर्ष 2026 तक 12.4% होने का अनुमान है।
• 65% बुज़ुर्ग अपनी देखभाल के लिए दूसरों पर निर्भर हैं।
• ह्रदय रोगों का खतरा शहरी इलाकों में रहने वाले बुज़ुर्गों को ग्रामीण इलाकों में रहने वाले बुज़ुर्गों से अधिक है।
“हेल्पेज़ इंडिया” चार दशकों से अधिक समय से वंचित बुज़ुर्गों के साथ काम करने वाला एक दान मंच है। उन्होंने भारत में कोरोना के दौरान बुज़ुर्गों की स्थिति की जमीनी हकीकत जानने के लिए एक सर्वे किया। जिसकी जून 2020 की रिपोर्ट के अनुसार 91% बुज़ुर्ग कोरोना के लक्षणों के बारे में जानते हैं। 60-69 वर्ष के 63% बुज़ुर्गों में यह जागरूकता सबसे अधिक थी, 70-79 वर्ष के बुज़ुर्गों में यह जागरूकता 31% थी और 80 वर्ष से ऊपर के बुज़ुर्ग जिन्हें कोरोना से सबसे अधिक जागरूक होने की आवश्यकता है उनमें यह जागरूकता सिर्फ 6% थी।
● 62% बुज़ुर्ग किसी न किसी पुरानी बीमारी से जूझ रहे हैं। 42% बुज़ुर्गों ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान उनके स्वास्थ्य की स्थिति और ज्यादा बिगड़ गयी है।
● 78% बुज़ुर्गों ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान उन्हें आवश्यक सामान प्राप्त करने में परेशानी हुई है। ऐसा कहने वालों में ग्रामीण क्षेत्र के 56% और शहरी क्षेत्र के 44% बुज़ुर्ग थे।
● लॉकडाउन में 61% बुज़ुर्गों ने कहा कि कोरोना काल में वह खुद को सीमित और सामाजिक रूप से पृथक महसूस कर रहे हैं।
● 60% ने बुज़ुर्गों ने कहा कि सामाजिक पेंशन उनकी मुख्य जरुरत है।
वृद्धों के लिए योजनाएं
• राष्ट्रीय वयोश्री योजना – इस योजना के तहत गरीबी रेखा के नीचे आने वाले उन वृद्धों को जो शारीरिक रूप से अक्षम हैं, उन्हें सरकार की तरफ से व्हीलचेयर तथा अन्य सहायक उपकरण दिए जाते है।
• इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना – भारत में ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा शुरू की गई एक गैर अंशदायी योजना है जो 60 वर्ष से अधिक आयु के गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे लोगों को जीवन यापन करने के लिए पेंशन प्रदान करती है।
• वरिष्ठ नागरिक बचत योजना – यह सरकार समर्थित बचत योजना है जो 60 वर्ष से अधिक आयु के भारतीय निवासियों के लिए बनाई गई है।
बुज़ुर्गों की समस्या का समाधान है टाइम बैंक
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के एक समूह ने वर्ष 2019 में अपने न्यूयॉर्क के दौरे के बाद की रिपोर्ट में भारत सरकार से बुज़ुर्गों की देखभाल के लिए स्विट्जरलैंड में शुरू हुई टाइम बैंक योजना को अपनाने की सिफारिश की है। मध्य प्रदेश के आध्यात्म विभाग ने टाइम बैंक खोलने का फ़ैसला भी लिया है।
टाइम बैंकिंग एक समय आधारित मुद्रा है। इसमें पैसे के बजाए श्रम आधारित क्रेडिट के लिए सेवाओं का आदान-प्रदान किया जाता है। इसमें एक घण्टा=एक क्रेडिट होता है।
टाइम बैंक की संयुक्त राज्य अमेरिका की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार अमेरिका में टाइम बैंकिंग का प्रयोग करने वालों की वर्तमान संख्या तीस से चालीस हज़ार लोगों की है।
शब्द टाइम बैंक को 1980 के दशक में एडवर्ड कान्ह नामक अमेरिकी कानून प्रोफेसर द्वारा गढ़ा और ट्रेडमार्क किया गया था।
यदि कोई व्यक्ति ड्राइविंग जानता है तो वह बिजली का काम जानने वाले व्यक्ति की कहीं बाहर जाने के लिए ड्राइविंग कर मदद कर सकता है यह समय उसके क्रेडिट में जुड़ जाएगा। बिजली का काम जानने वाला किसी भी अन्य व्यक्ति का कार्य कर उसकी मदद कर सकता है।
इस प्रकार हर कोई किसी अन्य की सेवा कर अपने बुढ़ापे में सेवा प्राप्त करने के लिए टाइम बैंक में अपने क्रेडिट जोड़ सकता है। टाइम बैंक की वजह से बुढ़ापे में किसी अन्य के उपकार की आवश्यकता नही पड़ेगी। टाइम बैंक में यदि खेतों में किए गए कार्य के बदले अन्न मिलेगा तो लोकतंत्र की विफलता के सबसे बड़े उदाहरण भिक्षावृत्ति की समस्या समाप्त हो सकती है। कोरोना काल में टाइम बैंक समाज से अलग-थलग पड़ चुके बुज़ुर्गों की बहुत सहायता कर सकता था।
यूनिसेफ ने कोरोना काल में बुज़ुर्गों की देखभाल के लिए छह सुझाव सुझाए हैं
• उन्हें सामाजिक समर्थन दें और उनसे फ़ोन कॉल या मैसेज के जरिए सम्पर्क में रहें।
• उनके रोज़ के आवश्यक काम करें जैसे उनके दवा, दूध का ध्यान रखना।
• उन्हें समाजिक अलगाव महसूस न होने दें।
• उन्हें सिखाएं की वीडियो चैट कर कैसे सबसे जुड़े रह सकते हैं।
• अनावश्यक चिकित्सा यात्राओं को स्थगित करें।
• उनके मोबाइल सम्पर्कों में आपातकालीन नम्बर जोड़ें।
लेखक : हिमांशु जोशी, पत्रकारिता शोध छात्र।
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