नैनीताल (हिमांशु जोशी): उत्तराखंड के अल्मोड़ा में एक साइबर कैफे में अपना पीपीएफ निकालने खड़े कुछ प्रवासी युवाओं को देख कर एक बार तो मेरा उनसे बात करने का हुआ पर मैं कुछ सोच कर झिझक गया। कोरोना काल में लगभग डेढ़ लाख से ज्यादा प्रवासी अपनी जन्मभूमि में वापस लौट चुके हैं ।
वापस लौटे प्रवासियों का दर्द
उत्तराखंड में डीडीहाट के रैतड़ी गांव के एक प्रवासी पुष्कर राम से बात करने का मौका मिला। इनसे आप प्रवासियों की पीड़ा को आसानी से समझ सकते हैं। वह गुड़गांव के एक रेस्टोरेंट में काम करते थे और कोरोना कि वजह से रेस्टोरेंट बन्द होने पर इन्हें वापस अपने गांव लौटना पड़ा। लॉक्डाउन में वापस आना इतना आसान नही था। पुष्कर ने उत्तराखंड के रूद्रपुर तक आने के लिए टैम्पो और बसों का सहारा लिया, रुद्रपुर आने पर उन्हें एक रात के लिए वहीं रोक लिया गया और अगले दिन उन्हें पिथौरागढ़ भेजा गया।
डीडीहाट में 14 दिन संगरोध में बिताने के बाद वो घर वापस आ सके। हालात ठीक होने पर पुष्कर गुड़गांव वापस जा कर रेस्टोरेंट में अपने बचे हुए 70 हज़ार रुपए वापस ले अपने गांव में ही कोई काम शुरू करना चाहते हैं। हालात ठीक होने तक क्या करोगे पूछने पर पुष्कर का जवाब मनरेगा की मदद से मज़दूरी प्राप्त कर अपना पेट पालने का था। मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के बारे में प्रश्न करने पर पुष्कर राम को इसकी कोई जानकारी नही थी।
कोरोना से प्रदेश के व्यापारियों पर पड़ी मार
कोरोना काल में अब लॉक्डाउन को धीरे-धीरे खोला जा रहा है पर इससे पूरे भारत के व्यापारियों पर गहरा असर पड़ा है। इसमें कपड़े और होटल व्यवसायियों पर सबसे अधिक असर पड़ा है। उत्तराखंड के नैनीताल में बड़ा बाज़ार स्थित ‘वर्मा ड्रेप्स एंड गारमेंट्स’ के मालिक दिनेश वर्मा जी बताते हैं कि कोरोना काल में काम पूरी तरह से ठप हो चुका है और दुकान में काम करने वाले कर्मचारियों को अपनी पुरानी बचत से ही तनख्वाह देनी पड़ रही है। भविष्य में किसी अन्य व्यवसाय शुरू किए जाने के प्रश्न पर वर्मा जी स्थिति सही होने के इंतज़ार की बात कहते हैं।
नैनीताल में एक छोटे ढाबे के व्यवसायी नाम ना छापने की शर्त पर कहते हैं कि “बाहर से आने वाले पर्यटकों को ढाबे के अंदर बुलाने पर भी डर लग रहा है और उन्हें बाहर से ही समान ना होने की बात कह कर वापस लौटा रहे है।”
नैनीताल बड़ा बाज़ार स्थित वर्ष 1850 से चली आ रही मशहूर लोटे से बनने वाली जलेबी के होटल मालिक रक्षित शाह जी कहते हैं कि ” कोरोना काल में अपनी जमापूंजी बैंक से निकाल-निकाल कर घर चला रहे हैं। लॉक्डाउन में छूट के बाद भी अभी व्यापार की स्थिति में कोई खास सुधार नही आया है। “
नाम ना छापने की शर्त पर नैनीताल में बोट व्यवसाय से जुड़े एक व्यक्ति कहते हैं कि अब भी काम पूरी तरह से बंद है और बोट व्यवसाय से जुड़े बाहर के सारे लोग वापस जा चुके हैं जो आस-पास के हैं वो कहीं ओर मज़दूरी करने में लिए काम ढूंढ़ रहे हैं।
कोरोना काल में केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के अंतर्गत प्राथमिक परिवार एवं अंत्योदय अन्य योजना और राज्य खाद्य योजना के लाभार्थियों के लिए यह योजनाएं संजीवनी साबित हुई हैं।
नैनीताल के तिब्बती मार्केट के अंत में कपड़ों की फड़ लगाने वाले अंगत लाल मौर्य की पत्नी कहती हैं कि जब कुछ नही था तब सरकार की इन योजनाओं से बहुत मदद मिली। उनके साथ ही कपड़े का ही फड़ लगाने वाले रोहित जाटव भी कहते हैं कि यह योजनाएं हम गरीबों के लिए वरदान है।
कोरोना से जंग के लिए सरकारी योजनाएं
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के अंर्तगत गरीबों को लाभ दिया जाता है। उत्तराखंड सरकार ने भी इस योजना के अंतर्गत कोरोना काल में श्रमिको की मदद का एलान किया था। नैनीताल नगर निगम के ठेकेदार सुमित शर्मा के अनुसार जो श्रमिक वापस नही गये थे उन्हें सरकार की तरफ से मदद मिली और उन्होंने भी स्थानीय लोगों के साथ मिलकर लॉक्डाउन के शुरुआती समय में इन मज़दूरों की राशन देकर और आर्थिक रूप से मदद की थी।
उत्तराखंड सरकार ने दीनदयाल उपाध्याय होम स्टे योजना में अप्रैल से जून तक ऋण ब्याज पर छूट का एलान किया। अल्मोड़ा के कौसानी में एक होम स्टे के मालिक ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि पर्यटक अब भी नही आ रहे हैं और सरकार होम स्टे के ब्याज पर थोड़ी सी और छूट दे तो सही होगा।
उत्तराखंड सरकार ने घर बैठे राशन और जरूरी सामान मंगाने के किए जनता के लिए ‘जन आपूर्ति एप’ शुरू किया है। गूगल फॉर्म में मैंने स्वयं एक सर्वे किया जिसमें मेरा प्रश्न यह था कि कितने लोगों को इस एप के बारे में जानकारी है। 22 लोगों के मुझे उत्तर मिले जिसमें 90.9% लोगों को इस एप के बारे में जानकारी नही थी और सिर्फ 9.1% ही इस एप के बारे में जानते थे। सरकार का दूरस्थ क्षेत्रों के लोगों की मदद के लिए यह प्रयास सराहनीय है पर इस बारे में जनता को और अधिक जागरूक करने के उचित साधन ढूंढने की आवश्यकता है।
उत्तराखंड में शराब के ठेकों की भीड़ चर्चा का विषय रही थी और नैनीताल के ठेके पर भारी बारिश के बीच लगी भीड़ सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हुई थी पर पुस्तकालय इन ठेकों की तरह शायद इक्कीसवीं सदी की जनता के लिए उपयोगी नही रह गए हैं। पिछले दो साल से सहस्त्रधारा रोड, देहरादून में 24 घण्टे खुले रहने वाली सरस्वती मॉडर्न लाइब्रेरी चला रहे आशीष भंडारी जी कहते हैं कि सरकार की ओर से लाइब्रेरी खोलने का कोई आदेश अब तक नही आया है उनका दो साल पहले जनता के बीच ज्ञान बांटने सम्बंधी लिया गया फैसला अब उन्हें भारी पड़ने लगा है। लाइब्रेरी से होने वाली कमाई बन्द है और भवन का किराया भी देना है, उनके लिए यही रोज़गार का एकमात्र साधन है।
मुख्यमंत्री स्वरोज़गार योजना
पर्वतीय ग्रामीण क्षेत्रों से नौकरी की खोज़ में होने वाले पलायन को रोकने के लिए मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना को शुरू किया गया है। प्रवासियों को प्रदेश में ही रोकना इसका उद्देश्य है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री जी ने सोलर प्रोजेक्ट को भी इससे जोड़ने की तैयारी की है जो उनकी दूरगामी सोच को दर्शाता है।
इसके तहत कुशल व अकुशल दस्तकारों, हस्तशिल्पियों और बेरोजगार युवाओं को अपना व्यवसाय शुरू करने के लिए प्रोत्साहित किया जायेगा। योजना के तहत राष्ट्रीयकृत बैंकों, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों, राज्य सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के माध्यम से ऋण सुविधा भी उपलब्ध करायी जाएगी। स्वरोज़गार के ज़रिए उत्तराखंड में पहले ही कुछ लोग अच्छी कमाई कर रहे हैं और दूसरों को भी प्रोत्साहित कर रहे हैं।
चम्पावत जिले के किस्कोट गांव के जोशी बन्धुओं ने सरकार की ग्राम उद्योग योजना से दस लाख रुपए उधार लेकर चप्पल बनाने का काम शुरू किया और उसमें अपने साथ गांव के अन्य लोगों को भी रोज़गार दिया। इसके लिए उन्होंने चप्पल बनाने के अपने आगरा के पुराने अनुभव का सहारा लिया। रानीखेत में दिल्ली से पढ़े बढ़े गोपाल दत्त उप्रेती ने जैविक तरीके से धनिया का 7.1 फुट का पौधा उगाया जिसे गिनीज़ वर्ल्ड रिकार्ड्स में दर्ज किया गया है। जिसकी प्रदेश के मुख्यमंत्री जी ने भी तारीफ़ की थी।
मोथरोवाला , देहरादून की रहने वाली ‘मशरुम गर्ल’ नाम से मशहूर दिव्या रावत काफी समय पहले ही स्वरोज़गार के महत्व को समझ गयी थी। वापस आए प्रवासियों को उनसे सीख लेनी होगी। दिव्या रावत के अनुसार आप मशरूम की खेती की तकनीकी ट्रेनिंग अपने जिले के कृषि कार्यालयों से ले सकते हैं। अगर हम तकनीकी ज्ञान को प्रदेश में रोकने में सफल हुए तो उत्तराखंड एक विकसित राज्य बन सकता है।
उत्तराखंड के बहुत से युवा ऐसे हैं जो बचपन में सड़क मार्ग ना होने की वजह से कई किलोमीटर पैदल चल कर विद्यालय जाते हैं और बड़े होने पर अच्छे जीवनस्तर के लिए दिल्ली, मुम्बई जैसे बड़े शहरों का रुख करते हैं। अल्मोड़ा के ग्राम भटोली के रहने वाले युवा वीरेंद्र सिंह सजवान ने शहर का रुख करने की जगह रोज़गार के लिए अपने गांव को ही चुना, गांव में ही रह कर वह खेती-बाड़ी करते हैं। कोरोना के बाद वापस आए प्रवासियों के साथ मिलकर वह भटोली से घुरकोट को जोड़ने के लिए तीन किलोमीटर मोटर मार्ग का निर्माण कर रहे हैं। इसमें उनके साथ 34 लोग शामिल हैं जिसमें महिलाएं भी शामिल हैं। वीरेंद्र सिंह सजवान कहते है कि सड़क मार्ग बना ग्रामवासियों के लिए मुख्यमंत्री स्वरोज़गार योजना का लाभ लेना आसान होगा और उनके लिए मत्स्यपालन, मुर्गीपालन, मशरूम की खेती जैसे स्वरोज़गार के रास्ते खुलेंगे। मोटर मार्ग बनने से वह गांव की सब्जी और फल आसानी से बाज़ार तक पहुंचा सकेंगे।
प्रवासियों का वापस आना एक अवसर
आज सभी सरकारी योजनाओं की सूचना सोशल मीडिया व अन्य माध्यमों से जनता तक पहुँचती हैं पर एक वर्ग ऐसा भी है जो इन सब योजनाओं से अंजान है और इन योजनाओं की सबसे ज्यादा आवश्यकता भी उसी वर्ग के लोगों को है। उत्तराखंड प्राकृतिक संसाधनों से धनी प्रदेश है अगर यहाँ की जनता ने उपलब्ध संसाधनों का सही प्रयोग करना सीख लिया तो यह देश का सबसे विकसित राज्य बन सकता है। कोरोना ने हमें प्रवासियों को वापस लौटाकर एक मौका दिया है और अगर नीचले स्तर से ही प्रदेश की जनता को हर सरकारी योजनाओं के बारे में समझाया जाए और उनसे जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाए तो हम उन सभी महापुरुषों को सच्ची श्रंद्धाजलि दे सकते हैं जिन्होंने एक विकसित और सम्पन्न प्रदेश का सपना देखा था ।
लेखक हिमांशु जोशी, पत्रकारिता शोध छात्र, टनकपुर
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