देहरादून । किसी भी डिस्कस में माइंड को डिस्टर्ब नही करना है और चेहरे, मन की स्थिति में अंतर नही लाना है। जब कोई बात पड़ जाए आत्मिक स्थिति की नेत्र संकल्पो को सिद्ध करना है। यदि अपनी विशेषता को याद में रखकर उमंग उत्साह के साथ आत्मिक स्थिति में रहेंगे,लोग हमें लाख हराने की कोशिश करेंगे लेकिन हमारे पॉवरफुल स्थिति के दो शब्दों से अपने को कागज का शेर समझेंगे। हमारे आत्मिक स्थिति के सामने वे अपने को बेसमझ समझ लेंगे।
एक मत होना, अर्थात एक के मति पर सहमति। एक के याद में बुद्धि को अर्पण करने से चैतन्य दर्पण बन जाते है। बुद्धि को जितना स्वच्छ रखकर ,एक के याद में अर्पण करेंगे,उतना ही स्वयं दर्पण बन जाएंगे। हमे आत्मिक स्थिति की नेत्र से संकल्पो को सिद्ध कर देना है,वह है रिद्धि सिद्धि लेकिन यह है विधि से सिद्धि। बुद्धि को जितना स्वच्छ रखकर ,एक के याद में अर्पण करेंगे,उतना ही स्वयं दर्पण बन जाएंगे।एक के याद में बुद्धि को अर्पण करने से चैतन्य दर्पण बन जाते है।
अव्यक्त महावाक्य बाप दादा 10 जून 1971
लेखक : मनोज श्रीवास्तव , सहायक निदेशक, प्रभारी मीडिया सेंटर विधानसभा देहरादून
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