नैनीताल (हिमांशु जोशी): सुशांत की आत्महत्या के बारे में जितनी चर्चा इस देश में हो रही है वो लाज़मी भी है क्योंकि इस देश में नेता, अभिनेता और क्रिकेटरों को ही अधिकतर चर्चाओं में जगह मिलती है और कोई बड़ी घटना हो तो उसे चाय की दुकानों, ऑफिसों और कॉलेजों की चर्चाओं में इतनी तवज्जो नही मिलती।
इस बात पर मैं इसलिए बात कर रहा हूं क्योंकि अभिनेता की आत्महत्या के दो-तीन दिन बाद ही मैंने उतराखण्ड और उत्तर प्रदेश में दो बच्चों की आत्महत्या की खबर सुनी और दोनों ने अपनी जान देने से पहले सुशांत की मौत के बारे में अपने परिवार से चर्चा की थी। अवसाद किसी को भी अपनी चपेट में ले सकता है फिर कोई अपनी किशोरावस्था में हो, कोई युवावस्था में हो या कोई प्रौढ़ावस्था में। मुझे लोगों के द्वारा इनकी आत्महत्या को लेकर आपस में किए जा रहे सवालों से शायद ही कोई फर्क पड़ा हो क्योंकि मैं खुद इस दौर से गुज़र चुका हूँ।
बात उन दिनों की है जब मैंने पत्रकारिता की पढ़ाई शुरू ही की थी। मैं युवावस्था में था और मुझे अपनी एक सहपाठी से प्रेम हो गया। मैंने नए सपने देखने शुरू कर दिए थे और मैं खुश था। हमारे बीच एक अच्छी समझ थी और यह सब दो साल तक चला। इस बीच लड़की की माँ ने उसका रिश्ता कहीं और तय कर लिया और शायद उसे भी एक अंधकार भरे भविष्य को निहार रहे पत्रकारिता के छात्र से ज्यादा व्यापार में अपने पैर जमा चुके जीवनसाथी का चुनाव करने में कोई दिक्कत नही हुई।
मैं तब दिल्ली में ही रह कर पत्रकारिता के क्षेत्र में खुद को स्थापित करने की कोशिश कर रहा था। अपनी ओर से मैंने उसे मनाने के सारे प्रयास किए और यह सब मैं उसे दुख दिए बिना करना चाहता था। मुझे रात भर नींद नही आती थी बस उसका चेहरा ही मस्तिष्क में घूमते रहता था। मैं खुद को भूल गया था। दिन भर उसे मैसेज करना, उसके फोन का इंतज़ार करना बस मेरा यही काम था। मैं चार- पांच महीने तक उसके सामने गिड़गिड़ाता रहा। एक दिन जब मैंने पहली बार उसे उसके होने पति के साथ देखा तो आईटीओ मेट्रो के बाहर सड़क पर डीटीसी के आगे आने के विचार से बैठ गया। बहुत बार मेट्रो के आगे कूदने के विचार आए। अपने कमरे में आधी रात में रोते हुए मैंने चादर से फंदा तक बनाया। इन सब के बीच मुझे हिम्मत मिलती थी तो अपने माता-पिता के बारे में सोचकर। यह सोचकर मैं आत्महत्या का विचार छोड़ देता था कि मेरा शव देखने के बाद मुझे लेकर हज़ारों सपने संजोए मेरे माता पिता का क्या होगा। मुझे अपने वो सम्बन्धी और मित्र याद आते थे जो मुझे निश्चल भाव से प्रेम करते हैं। यह जीवन एक बार मिलता है और इंसान अब तक यह नही जान पाया है कि मृत्यु के बाद की वास्तविकता क्या है। जीवन अनमोल है यहाँ जन्म लेने वाला हर मनुष्य अपने भविष्य के सपने सँजोता है।
मुझे कुछ साल पहले की बरेली में सर्दियों की एक सुबह याद आती है जब मैंने सड़क किनारे एक शव लटका देखा था। मुझे अब भी याद है कि उसने स्वेटर पहनी हुई थी शायद उसे अंतिम समय तक अपने शरीर, अपने स्वास्थ्य की चिंता थी। शायद उसका पहले से आत्महत्या करने का कोई इरादा ना रहा हो और अवसाद में आ उसने यह निर्णय जल्दबाजी में लिया हो। आज मैं जीवित हूँ, मेरे लेख विभिन्न समाचार पॉर्टलों पर आते हैं। क्षेत्रीय अखबारों के संपादकीय में मेरे आलेख छपते हैं। मेरे जो स्वप्न थे मैं उन्हें पूरे कर रहा हूँ। मैं गांधीजी के विचारों को पढ़ता हूँ मैं यह पढ़ता हूँ कि कैसे कलम की वजह से इस देश में सामाजिक और आर्थिक क्रान्ति आयी। मेरे हितैषी मेरे हर आलेख को पढ़ मुझे उस पर प्रतिक्रिया देते हैं। मेरे पत्रकारिता के गुरु मुझ पर गर्व करते हैं। मुझे विज्ञान की कम जानकारी है मुझे तो यह भी नही पता कि मैं अवसाद से घिर चुका था पर आज मैं खुश हूँ। अपने जीवन के हर पल का आनंद ले रहा हूँ। मैं पूरे विश्व में घूमना चाहता हूँ और इस धरती की खूबसूरती का आनन्द लेना चाहता हूँ। शायद यह मेरी मानसिक मजबूती ही थी कि मैं अवसाद से बाहर आया। मैंने अपनी स्थिति के बारे में कभी किसी से बात नही की थी पर मुझे अपने दोस्तों और परिवार से बात करके अच्छा लगता था।
आज भी बहुत से लोग इस कोरोना काल में बेरोजगार हो गए हैं। काम धंधा चौपट होने की वजह से बहुत से लोग अवसाद से घिर गए हैं। घर में बंद हो बच्चे भी तनाव से गुज़र रहे हैं। युवाओं को अपने भविष्य की चिंता है। पर हर समस्या का समाधान होता है, कल भी सुबह होगी और कल भी चिड़ियाएँ चहचहाएंगी। विराट के हर शॉट में हर भारतीय जश्न मनाएगा और अमिताभ जी के कौन बनेगा करोड़पति को हम अपने परिवार के साथ बैठकर देखेंगे।
लेखक हिमांशु जोशी, टनकपुर, शोध विद्यार्थी।
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