एडिक्शन और बचाव के साथ जागरूकता
देहरादून : एडिक्शन से बचने के लिए अन्दर बदलाव का भावना होनी चाहिए। एडिक्शन से बचने के लिए जागरूगता बहुत जरूरी है। एक स्टेज पर आने के पहले हमें पता ही नहीं चलता है कि यह कोई समस्या है। जब हमें समस्या पता ही नहीं चलेगी तब बदलाव कैसे करेंगे। इसलिए सबसे पहली स्टेज पर समस्या को पहचान लें फिर इसको दूर करने के लिए प्रयास करें।
एडिक्शन, नशा हमारे लिए दूसरों पर निर्भरता व्यक्त करती है। हम इतनी बार नशा कर चुके होते हैं कि हमारा शरीर और मन उस नशे के ऊपर निर्भर हो जाता है और वह नशा हमारी कमजोरी बन जाता है। जब हम नशा नहीं करते हैं तब चिड़चिड़ापन, गुस्सा और एंजायटी का सामना करते हैं।
दृढ़ संकल्प नशे से बचाव में सबसे ज्यादा मदद करती है। यदि अल्पकाल के रूप में देखें तब नशे को लेकर भले हमें कुछ फायदा दिखता हो लेकिन दीर्घकाल में इसके व्यापक नुकशान मिलते हैं। जब हम नशा करते हैं तब केवल अल्पकाल के फायदे को देखते हैं लेकिन अल्पकाल का थोड़ा मजा आने वाले समय के लिए बहुत बड़ी सजा बन जाती है।
हम गलत कर्म करके अपने शरीर और मन को डेमेज करते हैं। डेमेंज करने के बाद इसके रिटर्न में हम प्रकृति को कुछ भी नहीं दे पाते हैं। इसलिए हमें अपने कर्म के चुनाव करने के बाद इसके परिणाम पर ध्यान देना होगा। नशे से बचाव के लिए मेडिटेशन हमारी पावर बढ़ाती है। मेडिटेशन से इच्छा शक्ति बढ़ती है अर्थात अभी तक जो शक्ति हम नशे से ले रहे हैं वह योग मेडिटेशन से मिलने लगते हैं।
हम आनन्द को प्राप्त करने लिए नशा करते हैं लेकिन आत्मा का स्वभाविक गुण आनन्द है। जो चीज हमारे पास मौजूद है उसे बाहर से लेने की जरूरत नहीं है। हमारे ब्रेन में ही आनन्द रिसेप्टर मौजूद हैं। मेडिटेशन की मदद से आनन्द का कैमिकल श्राव होने लगता है।
यदि हम नशा नहीं छोड़ सकते हैं तब एक हेल्थी हैबिट डेवल्प कर लें। सुबह उठना योग प्रणायाम, एक्सरसाईज करना, अच्छी किताबें पढ़ना, अच्छे महौल में रहना इत्यादि करने से हम नशे से बच जाते हैं। जब हमें नशे की फीलिंग हो तब हम उस समय अपने को किसी चीज में, कार्य में अथवा साहित्य में बिजी कर लें।
यह मान लें कि तलब का यह फेज छोटा है जो थोड़े समय में खत्म हो जायेगा। यह बात वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित है उस समय यदि हम अपने को कहीं और स्थान पर लगा लें अथवा बिजी कर लें तब धीरे-धीरे यह जीवन शैली हमारे सिस्टम का भाग बन जायेगा। अर्थात अब हमें नशे बचाव करने के लिए विशेष प्रयास की जरूरत नहीं होगी। हवा चलते समय कैंडिल बुझ जाती है लेकिन जब आग अधिक हो तब वही हवा आग को जलने में मदद करती है अर्थात समाधान हमारे आस-पास ही मौजूद है लेकिन हम इसको बाहर खोजते रहते हैं।
समाधान न मिलने पर परेशान होकर एडिक्शन के शिकार बन जाते हैं। इसलिए हमें एडिक्शन को नहीं जागृत करना है बल्कि अपनी इच्छा शक्ति को जागृत कर अपने अन्दर आन्तरिक परिवर्तन करना है। हमें पहचान करनी होगी कि हम किस-किस परिस्थिति में नशा करते हैं अथवा झुकते हैं।
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, सहायक निदेशक सूचना एवं लोकसम्पर्क विभाग उत्तराखंड, प्रभारी मीडिया सेंटर विधानसभा देहरादून
Discussion about this post