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कोरोना से भी बड़ी महामारी : कभी ना रुकने वाली सड़क दुर्घटनायें

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posted on : जून 8, 2020 6:09 अपराह्न

● भारत में सड़क हादसों से हर वर्ष सैंकड़ों लोग मारे जाते हैं।

● वाहनों की तेज़ गति भारत में होने वाली सड़क दुर्घटनाओं का मुख्य कारण है।

● सार्वजनिक वाहनों का सफर ज्यादा सुरक्षित है।

● चालकों में वाहन चालन सम्बन्धी नियमों की जानकारी का अभाव है।

● सड़क सुरक्षा उपायों का पालन कर इन दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है।

नैनीताल (हिमांशु जोशी): कोरोना काल में देश के हर हिस्से में त्राहि त्राहि मची हुई है पर वर्षों से इससे भी बड़ी एक महामारी देश में फैली हुई है। जिसकी गम्भीरता से देश का हर नागरिक परिचित तो है पर कोरोना में मास्क लगाए घूमने वाली जनता ने कभी इस महामारी का इलाज नही ढूंढा है।

सड़क हादसों से पूरे भारत में एक दिन औसतन 450 मौतें होती हैं। भारतीय सड़क परिवहन मंत्रालय के वर्ष 2018 के सड़क हादसों के आंकड़े से इनकी भयावहता का अनुमान लगाया जा सकता है। जिसके अनुसार वर्ष 2018 में लगभग डेढ़ लाख लोगों ने सड़क हादसों में अपनी जान गंवायी थी। सड़क पर वाहन चलाने की बात हो तो सीधी सड़क को सबसे सुरक्षित माना जाता है पर आंकड़ों के अनुसार उन डेढ़ लाख लोगों में से 97 हज़ार चालकों ने सीधी सड़क पर ही अपनी जान गंवाई थी। मोड़ों पर अपनी जान गंवाने वाले 20 हज़ार चालक थे। वर्ष 2018 के आंकड़ों के अनुसार तमिलनाडु, कर्नाटक और हरियाणा में सबसे ज्यादा सड़क हादसे हुए थे। राष्ट्रीय राजमार्गों और राज्य मार्गों से अधिक सड़क हादसों का दर अन्य मार्गों में घटित सड़क हादसों का है।

हिमांशु जोशी

 

पुरुषों को वाहन चलाने में अधिक निपुण समझा जाता है और वाहन चालन में महिलाओं से अधिक संख्या पुरुषों की ही है। सड़क हादसों में मरने वाले 85 फीसदी पुरुष थे। सड़क पर चलते हुए हम किसी उम्रदराज चालक की धीमी गति का उपहास उड़ाते हैं पर आंकड़ो के अनुसार तेज़ गति के कारण ही सबसे अधिक सड़क हादसे होते हैं। इन आंकड़ों के अनुसार डेढ़ लाख में से 98 हज़ार लोगों ने तेज़ गति के कारण ही अपनी जान गंवायी थी और उसमें 25-45 आयु वर्ग के युवा सबसे अधिक थे। वाहनों की गति सीमा को 70 किमी प्रति घण्टे पर बांधकर इन सड़क दुघर्टनाओं को काफी हद तक कम किया जा सकता है। बढ़ते औद्योगीकरण व सुधरते जीवन स्तर ने निजी वाहनों की संख्या में पिछले कुछ वर्षों में तेज़ी से इज़ाफ़ा किया है और उपलब्ध होते हुए भी सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग कम किया जाता है। वर्ष 2018 के आंकड़ों से पता चलता है कि सार्वजनिक वाहनों में दोपहिया और हल्के वाहनों से दुघर्टना का खतरा कम होता है।

ड्राईविंग लाइसेंस मिलने की आसान प्रकिया के कारण अप्रशिक्षित वाहन चालक सड़क पर उतर कर अन्य वाहनों के लिये खतरा बन जाते हैं। हाईवे पर हल्के और धीरे चलने वाले वाहनों को अपनी बायीं ओर चलना चाहिए पर ऐसे चालक अपनी लेन के मध्य और दायीं ओर तेज़ गति में चलते हैं। सड़क कानून पालन का सख्ती से पालन ना करवाए जाने के कारण बहुत से नाबालिग सड़क पर खतरनाक तरीके से वाहन चलाते दिख जाते हैं। युवाओं को महंगी और शक्तिशाली इंजन की बाइकों को चलाने का शौक़ होता है। बाइकों में पीछे से आते वाहनों को देखने के लिए प्रयोग में आने वाले शीशों को निकालकर और सिर की सुरक्षा के लिये प्रयोग में आने वाले हेलमेट का प्रयोग ना कर बहुत से बाइक चालक अपनी जान से हाथ धौ बैठते हैं।

तेज़ गति में चलते वाहन ट्रैफिक सिग्नलों पर रेड लाइट तोड़कर दुर्घटनाओं में शामिल होते हैं तो बहुत से वाहन सड़क पर लगे बैरियरों से टकरा जाते हैं। गलत दिशा में चलते वाहन भी बहुत सी दुर्घटनाओं के लिये जिम्मेदार होते हैं। चार पहिया वाहन चालक सीट बेल्ट का प्रयोग नही करते हैं जो दुर्घटना होने पर उनके लिये जानलेवा साबित होता है। वाहन चलाते समय मोबाइल का प्रयोग करने की वजह से कई दुर्घटनाएं होती हैं। वाहन के इंडिकेटरों का प्रयोग ना करने के कारण या गलत इंडिकेटर प्रयोग के कारण भी कई वाहन दुर्घटनाग्रस्त होते हैं। शराब पीकर वाहन चलाने पर चालकों की सही समय पर निर्णय लेने की क्षमता समाप्त हो जाती है जिस कारण जरूरत पड़ने पर वाहन चालक सही समय पर ब्रेकों का इस्तेमाल करने में असमर्थ हो जाता है और तेज़ गति में अपनी लेन से हटकर वाहन चलाने पर अन्य लोगों के लिए भी खतरा बन जाता है।

सरकारी तंत्र की असफलता के कारण अपनी समयावधि पार कर चुके कामचलाऊ वाहन भी सडकों पर दौड़ते दिखते हैं। इनमें से बहुत से वाहनों का प्रयोग सवारियों को ढोने के लिए भी किया जाता है। सड़क पर अतिक्रमण तब तक नही हटता जब तक उसकी वजह से बहुत से वाहन दुर्घटनाग्रस्त ना हो जाएं। ख़राब गुड़वत्ता से बनी सड़कों पर समय से पहले ही गहरे गड्ढे बन जाते हैं और उसके आस-पास के लोग भी उनसे होने वाली दुघर्टनाओं पर उन गड्डों को भरने की जगह मूकदर्शक बन सरकार द्वारा उन्हें भरने का इंतज़ार करते हैं।

बहुत से ड्राइवर हाई और लो बीम की सही जानकारी नही रखते हैं और ना ही इनका प्रयोग करते हैं। लम्बी दृश्यता के लिये हाई बीम का प्रयोग किया जाता है। रात्रि में सामने से गाड़ी आने पर लो बीम कर उसको अच्छी दृश्यता दी जाती है क्योंकि हाई बीम की वजह से अंधेरे में सामने से आने वाले वाहन चालक को कुछ देर की लिए कुछ नही दिखता है । शहरों में लो बीम और हाईवे में हाई बीम का प्रयोग किया जाना चाहिए।

सड़क पर चल रहे अधिकतर चालकों को सड़क पर बनी पीली और सफेद लाईनों की सही जानकारी नही होती है। यह लाइनें क्षेत्र की आबादी और सड़क की भौगोलिक स्थिति को ध्यान में रख कर बनाई जाती हैं। सड़क पर टूटी सफेद लाइनों का अर्थ होता है कि यदि सुरक्षित है तो आप उस पर लेन बदल सकते हैं, ओवरटेक कर सकते हैं और यू टर्न ले सकते हैं। लम्बी सफेद लाइन का अर्थ है कि आप उस सड़क पर ओवर टेक नही कर सकते और ना ही आप वहाँ यू टर्न ले सकते हैं। टूटी पीली लाइन का मतलब है कि आप इस लाइन पर सावधानी के साथ ओवरटेक और यू टर्न ले सकते हैं। लम्बी पीली लाइन में आप दूसरी गाड़ियों को ओवरटेक तो कर सकते हैं पर पीली लाइन को पार करना मना होता है। यह नियम अलग-अलग राज्यों के लिये अलग-अलग भी हैं ।

ट्रैफिक पुलिस सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिए सड़क पर चलने के नियमों का पालन करवाती है। कोरोना काल में हम पुलिस कर्मियों को योद्धाओं के रूप में देख ही चुके हैं पर ट्रैफिक पुलिस को बहुत से बाहरी दबाव में भी काम करना पड़ता है और यदि इन अनावश्यक दबावों से पुलिस को मुक्त रखा जायेगा तो सड़क दुर्घटनाओं में आसानी से कमी लायी जा सकती है।

मोटर यान संशोधित बिल 2019 में ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन पर जुर्माने और सजा को और भी कड़ा कर दिया गया है जिससे भविष्य में इन दुघर्टनाओं में कमी की उम्मीद की जा सकती है। सड़क पर चल रहे पैदल राहगीरों के साथ होने वाले हादसों को सड़क के दोनों ओर अधिक से अधिक फुटपाथ बना कर कम किया जा सकता है। सड़क पार करने के लिये जेब्रा क्रॉसिंग का प्रयोग किया जाना चाहिए। ज्यादा भीड़भाड़ वाली जगह पर फुटओवर ब्रिज बनाए जाने चाहिए। साइकिल में चलने वालों के लिए पुरे भारत में चंडीगढ़ की तर्ज़ पर अलग लेन बनायी जा सकती हैं। प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में हो रहे इन हादसों को रोकने के लिए जनता को स्वंय भी जागरूक होना होगा और इसके लिए सरकार को ज्यादा देर ना करते हुए और अधिक ठोस कदम उठाने होंगे।

लेखक हिमांशु जोशी, टनकपुर शोध विद्यार्थी

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