देहरादून : विशेषता देखने की खूबी के कारण हम किसी कमजोर व्यक्ति को भी विशेषता युक्त बना देते है। विशेषता देखने के गुण के कारण हम किसी व्यक्ति में कमजोरी नही देखते है बल्कि विशेषता ही देखते है। कमजोरी को इशारे से कहने के उद्देश्य से, उस व्यक्ति के विशेषता का वर्णन करते हुये बहुत अच्छा ,बहुत अच्छा कहते रहते है। ऐसा करते-करते वह व्यक्ति धीरे -धीरे बुरा से अच्छा व्यक्ति बन जाता है।
यदि कोई व्यक्ति कमजोर हो और उसे बार-बार यह कहे कि तुम कमजोर हो ,तुम कमजोर हो तब वह और भी कमजोर हो जाएगा। अर्थात एक तो वह पहले से ही कमजोर है और फिर यदि कोई उन्हें फिर से कमजोर हो कह दे तब यह सुनकर मूर्छित हो जाता है। विशेषता को देखने का दर्पण , किसी व्यक्ति लिये संजीविनी बूटी का कार्य करता है। विशेषता की संजीवनी बूटी से उनकी मूर्छा दुर् हो जाती है। हमारे पास विशेषता होते हुए भी हम उस समय अपनी विशेषता को भूल जाते है। केवल विशेषता याद दिलाने से हम पुनः विशेष बन जाते है।
यदि हम किसी व्यक्ति के विशेषता का वर्णन करते है तब उन्हें स्वयं ही अपनी कमजोरी का और अधिक स्पष्ट अनुभव होने लगता है । अब हमें उन्हें उनकी कमजोरी को बताने की जरूरत ही नही पड़ेती है। यदि हम पहले ही उनकी कमजोरी उन्हें बताने लगेंगे ,तब वे अपनी कमजोरी को छिपाएंगे ,टाल देंगे और कह देंगे कि मैं ऐसा नही हूँ। इसलिये पहले कमजोरी के स्थान पर विशेषता का वर्णन करे। ऐसा करने पर वे अपनी कमजोरी को स्वयं महसूस करेंगे, क्योंकि जब तक कमजोरी को महसूस नही करेंगे तब चेंज भी नही लाएंगे।
अव्यक्त महावाक्य बाप दादा
20 फरवरी 1986
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, सहायक निदेशक सूचना एवं लोकसम्पर्क विभाग उत्तराखंड, प्रभारी मीडिया सेंटर विधानसभा देहरादून
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