देहरादून : महान व्यक्ति होता है इसलिए चेक करें कि दिन भर में कोई हिंसा तो नहीं की है। हमें डबल अहिंसक बनना है। हमारे मनसा में संकल्पों के बीच एक युद्ध चलता रहता है। युद्ध के दौरान अपने कमियों और कमजोरियों को मारना भी अहिंसा कहलाता है। क्योंकि इस युद्ध का परिणाम सुख, शान्ति और कल्याणकारी होता है, इसलिए अपने कमियां और कमजोरियों को मारना हिंसा नहीं कहलाता है।
यदि हम अपने शब्दों से किसी की स्थिति को डगमग कर देते हैं तब यह भी हिंसा कहलाती है। अर्थात हमारा कोई शब्द हमारी आंतरिक्त स्थिति को डगमग कर दे या घायल दे तब यह हिंसा कहलाती है। अर्थात यदि हम अपनी ओरिजिनल सतोगुणी स्वरूप को दबा देते हैं और तमोगुणी संस्कार को प्रैक्टिकल में तब यह किसी का गला दबाना जैसी हिंसा हो जाती है। अन्य शब्दों में अपने ओरिजिनल सतोगुणी प्रधान स्थिति के संस्कार को दबाना हिंसा है।
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, प्रभारी मीडिया सेन्टर विधानसभा देहरादून
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