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विश्व पर्यावरण दिवस में गोरैयों के संरक्षण से करें परिस्थितिकी तंत्र बहाली

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posted on : जून 5, 2021 4:22 अपराह्न

हिमांशु जोशी

हरिद्वार : संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 5 जून 1974 को अमरीका की मेज़बानी में पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया था, तब से हर साल के 5 जून को यह दिवस मनाया जाता है जिसकी मेज़बानी हर बार एक नए राष्ट्र को दी जाती है और इसका विषय भी नया रहता है। इस साल पर्यावरण दिवस की मेजबानी पाकिस्तान द्वारा की जा रही है जिसका विषय ‘पारिस्थितिकी तंत्र बहाली’ है। पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र को बिगाड़ने में मानव द्वारा विकास के लिए अंधी दौड़ जिम्मेदार है, वह इसके लिए लगातार पर्यावरण को नुक़सान पहुंचा रहा है। कोरोना जैसी महामारी भी प्रकृति के साथ कि गई इसी छेड़छाड़ का नतीज़ा है।

गौरैयों का पारिस्थितकी तंत्र में योगदान

गौरया पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र में महत्वपूर्ण योगदान देती है। वह बाजरा, जामुन व अन्य प्रकार के कई फल खाती है और इस प्रक्रिया में वह इनके बीज़ों को मूल पौधों से दूर ले जाती है। बीज अंकुरण के लिए यह महत्वपूर्ण है, यदि बीज मूल पौधों के करीब रहेंगे तो वह परिपक्व पौधों की वजह से अपना पोषण नही कर पाएंगे और बीज के अंकुरित होने पर मूल पौधे की वृद्धि भी कम हो जाएगी। बीज़ों को फ़ैलाकर गौरैया कई ऐसे पौधों को जीवित रखती है जो पारिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण है।

गौरैयों का संरक्षण करते निर्मल कुमार शर्मा और मोबाइल टॉवर से गौरैयों को हो रहा नुक़सान

गाज़ियाबाद के प्रताप विहार में रहने वाले निर्मल कुमार शर्मा पिछले बीस वर्षों से गौरैयों के संरक्षण का कार्य कर रहे हैं। उन्होंने अपने घर में गौरैयों को ठहराने के लिए कुत्रिम घोंसले और पेड़ बनाए हैं और वह उनके लिए दाने-पानी की व्यवस्था भी करते हैं। निर्मल कुमार शर्मा का घर जो अब गोरैयों का घर बन चुका है वर्ष 2019 के पर्यावरण दिवस पर लोकसभा टीवी में दिखाया जा चुका है। 26 मई 2021 को अपने घर के पास लगे मोबाइल टॉवर के शुरू होने के बाद से गौरैयों के बच्चों की हो रही मौत और उनके विकास में हो रही बाधा से निर्मल चिंतित हैं। मोबाइल टॉवर, गौरेया के मरे बच्चों और अर्धविकसित गौरैया के बच्चों की तस्वीर भेजते निर्मल बताते हैं कि अब तक 12 गौरेया के बच्चों की मौत हो चुकी है। उनकी शिकायत पर गाज़ियाबाद डेवलेपमेंट ऑथोरिटी ने उचित कार्रवाई शुरू कर दी है।

डॉ. सीवी रमन विश्वविद्यालय के राजेन्द्र कुमार सिंह का रिसर्चगेट पर उपलब्ध शोधपत्र ‘छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में मोबाइल टॉवर के विकिरण का पक्षियों पर प्रभाव’ हमें यह बताता है कि इन मोबाइल टॉवरों का गौरेया सहित अन्य पक्षियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। शोधपत्र के अनुसार वर्ष 2006 में मोबाइल टॉवर लगने से पहले एक निर्धारित स्थान और समय पर पक्षियों की कुल संख्या 475 थी जो वर्ष 2017 में मोबाइल टॉवरों के लगने के बाद मात्र 245 रह गई। शोधपत्र में मोबाइल फोन उद्योग की तुलना धूम्रपान उद्योग से की गई है। गौरेया के कम होने के अन्य कारण भी हैं जैसे अब बन रही इमारतों में घोसलों को बनाने की जगह नही है, पैकेजिंग राशन आने के बाद से अब राशन खुला या बोरियों में नही आता जिससे उनसे गिरा दाना अब गौरैयों को नही मिल पाता। बिल्लियों और गिलहरियों के शिकार बनने की वज़ह से भी गौरैयों की संख्या में कमी देखी गई है।

बढ़ते मोबाइल टॉवरों के बीच भी गौरैयों की बढ़ती संख्या

गौरैयों पर यूके के अग्रणी समाचार पत्र ‘द गार्डियन’ की वर्ष 2020 में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार यूके में गौरैयों की संख्या में लगभग तीन दशक की गिरावट के बाद पिछले दस वर्षों में वृद्धि देखी गई है। भारत में भी गौरैयों को लेकर कुछ सकारात्मक ख़बर आने लगी है हिंदुस्तान टाइम्स की मार्च 2021 में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में भी गौरैयों की संख्या फिर से बढ़ने लगी है।

गौरैयों का संरक्षण और शोध ही पर्यावरण के लिए फायदेमंद

मोबाइल टॉवरों की संख्या में इज़ाफ़ा होने के बाद भी गौरैयों की संख्या का पिछले कुछ समय से बढ़ना इन पर और अधिक शोध करने की आवश्यकता दिखाता है। अगर हमें गौरैयों के कम होने की वज़ह से पारिस्थतिकी तंत्र पर पड़ रहे प्रभाव को ख़त्म करना है तो गौरैयों की संख्या बढ़ाने और उनका संरक्षण करने के लिए शीघ्र ही यह कदम उठाने होंगे। तब तक निर्मल कुमार शर्मा की तरह ही गौरैयों के लिए कुत्रिम घोंसले बनाने के साथ उनके दाने-पानी की व्यवस्था करने की शुरुआत तो करी ही जा सकती है।

लेखक : हिमांशु जोशी, उत्तराखंड।

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