- मनोज श्रीवास्तव
देहरादून : दूसरों से अलग रहने के लिए अपनी वैल्यू को बढाना होगा और वैल्यूएबल बनना होगा। वैल्यूएबल चीज रत्न के समान होती है जिसे शोकेस में रखा जाता है। यह सारी दुनिया के बीच में चमकता हुआ सितारा होता है। ऐसा ही अपने श्रेष्ठ भाग्य को याद करके खुशी में रहना है। हमारी ऐसी खुशी रहे जिसे दूसरे देखते हुए देखने वालो के गम के बादल और दुख की घटाएं समाप्त हो जाएं। वे अपने दुख को भुलकर सुख के झुले में झूलने लगे।
संगत का असर होता है, पारस के संग लोहा भी पारस बन जाता है। आयरन एजड वाले गोल्डन एजड में चले जाते है। जो व्यक्ति बिखारी बनकर आए वह मालामाल हो जाता है। ऐसे तकदीर वाले की तस्वीर रोज अपने दर्पण में देखना है। आज कल का फैशन है कि लोग रोज अपना चेहरा देखते है। वे अपना फीचर्स देखते है लेकिन, हमें अपना फयूचर देखना है। हमें अपने फीचर पर अटेंशन देते हुए भी अधिक अटेंशन अपने फयूचर पर देना है। अपनी तकदीर की तस्वीर देखते हुए अपनी आत्मिकता को चेक करना है। दूसरे लोग अपने शक्ल में लालिमा को देखते है। हम अपनी तस्वीर में पर्सनैलिटी की लालिमा को देखें।
हमें अपनी विशेषता देखते हुए अपनी श्रेष्ठता का वर्णन करना है। ऐसा करके हम सर्वश्रेष्ठ बन जाते है। विदेशियों को रोल माॅडल माना जाता है। क्योंकि उनकी क्वालिटी ही पतंगे के समान होती है। जो अपने लक्ष्य पर पूर्ण समर्पण हो जाते है। भारतवाशी पहले क्वेश्चन करेंगे फिर सोचेंगे फिर समर्पण होंगे। लेकिन, विदेशी पतंगे के समान यज्ञ में स्वाह होने की विशेषता रखते है। जैसे कोई दूर बैठे तर्पण में हो और उस तडपते हुए व्यक्ति को कोई ठिकाना मिल जाए ऐसे तडपते हुए व्यक्ति विदेश में मैजाॅरिटी में रहते है। उन्हें पतंगा होने की याद रहने के कारण उनमें आॅटोमैटिकली पुरूषार्थ होता रहता है। इसलिए वह अधिक फास्ट होते है।
हम लोग कब, क्यों और क्या के क्योश्चन में फंसे रहते है। माया के वार से हार खाने वाला नहीं बनना है, बल्कि माया को हार खिलाने वाला बनना है। अपने विशेष लिफट के गिफट से अपनी स्पीड को फास्ट रखना है। क्यों और क्या क्योश्चन की बजाये हर परिस्थिति में निश्चय बुद्धि रहना है।
तत्योगी सदा यही लक्ष्य रखते है कि तत्व में समा जाए और लीन हो जाए, इस प्रकार का अनुभव बनाकर रखना है। इसे लवलीन हो जाना कहते है, अपने आपको भूल जाना, इसी को एक हो जाना कहते हैै। तथा इसी को समा जाना कहते है। जैसे कोई सागर में समा जाए तो उस समय हमें कुछ अनुभव नजर नहीं आता। उसी प्रकार अपने लक्ष्य के सागर में समा जाएं।
अपने प्रोग्राम की डेट जब तक फिक्स नहीं करेंगे तब तक पावरफुल प्लान भी नहीं बना सकते। विदेशियों द्वारा भारत के कुम्भकरण जागेंगे। यहां की आवाज विदेश से होकर आने वाली आवाज से यहां के कुम्भकरण जागेंगे। हम लोग सोचेंगे कि कर लेंगे तो वह कहेंगे कि हां जाग जाएंगे। इसलिए जगाने वाले फुलफोर्स से अपना पावरफुल प्लान बनाना होगा। इस वर्ष यह यह कार्य करना है तब भी सोचेंगे कि इस वर्ष के अंदर ही जगाना है। अभी जगाने वालो का समय निश्चित नहीं है। इसलिए जागने वालो का समय भी निश्चित नहीं है। जैसे जागने वाले सोचते है कि करना तो है, वैसे वह सोचते है जागना है तो अंत में जाग जाएंगे, अभी जागकर क्या करेंगे। हमें साधारण कुम्भकरण को नामी-ग्रामी कुम्भकरणों को जगाना है। जिस एक के जागने से अनेक जग जाए उसे नामी-ग्रामी कुम्भकरण कहते है। इस प्रकार का हीरो पार्ट अपनाकर अपनाने से जो कुम्भकरण जागेंगे यह हिअर-हिअर, वन्स-वन्स मॉर का नारा लगाएंगे।
अव्यक्त बाप-दादा, महावाक्य मुरली, 06 दिसंबर 1975
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, सहायक निदेशक सूचना एवं लोकसम्पर्क विभाग उत्तराखंड