देहरादून : पावरफुल स्थिति का अर्थ है हम जो चाहें, जब चाहें और जैसा चाहें उसे कर लें। यदि विधि यर्थात है तब सिद्धि अवश्य है अर्थात यर्थात विधि सफलता और श्रेष्ठता का अनुभव कराती है। यर्थात विधि अपनाने के परिणास्वरूप हम अपनी सही स्थिति को परख सकते हैं और किसी गलतफहमी से दूर रह सकते हैं।
मुख्य रूप से सात कमजोरियाँ हमारी पावरफुल स्थिति को बनाने में बाधक हैं। इसके लिए हर कमजोरी को दूर करने के लिए प्रतिदिन प्रैक्टिस करनी होगी और प्राप्त शक्ति को प्रैक्टिकल में लाना होगा। इसे सात दिन के राजयोग कोर्स के रूप में कह सकते हैं। पहली मुख्य कमजोरी है, हम वास्तविकता के विपरीत अपनी कमजोर मानसिक स्थिति को स्वीकार कर लेते हैं, परिणामस्वरूप हमारा मनोबल कमजोर रहता है और कमजोर मनोबल के परिणाम स्वरूप हम अपनी मूल आत्मिक शक्ति को भूल जाते हैं।
दूसरी कमजोरी यह है, कि कमजोर मनोबल होने के कारण हमारे पास विलपावर नहीं रहती है। विलपावर न होने के कारण हमारी बुद्धि चंचल रहती है और हम एकाग्रता से दूर रहते हैं। तीसरी कमजोरी के अन्तर्गत हम किसी एक बिन्दु पर अपने को फोकस करने में असफल रहते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि हम बार-बार अपनी प्लानिंग को बदलते रहते हैं ओर अपनी कही बात से पलटते रहते हैं।
चैथी कमजोरी के अन्तर्गत हम किसी विषय बस्तु पर अटेंशन नहीं रखते हैं क्योंकि हमारे भीतर ईगो भरा रहता है। ईगो हमें अपने लक्ष्य से दूर कर देता है। ईगो के कारण हम अपने विषय बस्तु को भूलकर कम्फर्ट जोन में रहना पसन्द करते हैं। अपनी गलत बात को सिद्ध करते हैं और सबको मनवाने के लिए जिद्द करते हैं।
पांचवें कमजोरी के अन्तर्गत कमजोर मनोबल के कारण हम परिस्थिति से, वातावरण से और दूसरों से प्रभावित होते रहते हैं। हमारा प्रभाव शून्य रहता है। छठी कमजोरी के अन्तर्गत कमजोर आत्मबल और ईगो के कारण हम स्वमान की स्थिति में नहीं रहते हैं और अपमान की फीलिंग करते हैं। हर बात में फील करने के कारण फेल हो जाते हैं।
अंतिम कमजोरी के अन्तर्गत हम हर बात में असंतुष्ट रहते हैं। यहां तक की हमें जो चीज प्राप्त हो गयी है उसमें भी असंतुष्ट रहते हैं। जिस बात में खुस होना चाहिए उसमें भी दुःखी रहते हैं। इन सभी कारणों को जानकर उसका निवारण करना है। कारण का निवारण करने का सर्वोत्तम समय प्रातः काल अमृत बेला है। प्रातः काल अमृत बेला में मनन चिंतन करना चाहिए और समस्या का निवारण करना चाहिए। बातों का सार निकाल कर कारण जानना चाहिए और इसे दूर करने के लिए प्रैक्टिस करनी चाहिए।
प्रैक्टिस को प्रैक्टिकल में लाना जरूरी है। प्रैक्टिस और प्रैक्टिकल साथ-साथ चलने पर सफलता सहज और स्पष्ट दिखने लगती है। प्रैक्टिस के अन्तर्गत याद रखना है कि संकल्प, कर्म और वाणी के बीच अन्तर न्यूनतम हो। जो सोचें, वहीं बोलें और वहीं करें। इसके लिए हमें तीन बातों में पास करना होगा, पहला आने वाले बाधाओं के रास्ते को पास करना होगा, विधि के ज्ञान को जानकर पढ़ाई पास करना होगा और अपने लक्ष्य के समीप अर्थात पास रहना होगा।
हमारा लक्ष्य ऊंचे से ऊंचा होना चाहिए। हमारा लक्ष्य फाइनल स्टेज को पास करना ही नहीं है बल्कि फाइनल स्टेज को फाइन करना है, फाइन को रिफाइन करना है और रिफाइन को डबल रिफाइन करना है।
अव्यक्त महावाक्य बाप दादा मुरली 11 सितम्बर, 1971
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, सहायक निदेशक सूचना एवं लोकसम्पर्क विभाग उत्तराखंड देहरादून
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