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अटल निश्चय बुद्धि बनना अर्थात कभी भी अपने में भी संशय ना होना

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posted on : अगस्त 17, 2021 7:42 पूर्वाह्न
देहरादून : अटल निश्चय बुद्धि बनना अर्थात कभी भी अपने में भी संशय ना हो। सफल होंगे या नही इसमें संशय ना हो बल्कि निश्चय बुद्धि हो। स्वयं में अगर कमजोरी का संकल्प उत्पन्न होता है तो कमजोरी के संस्कार बन जायेंगे। जैसे एक बार भी शरीर कमजोर हो जाता है तो कमजोरी के जर्म्स पक्के हो जाते है। ऐसे व्यर्थ रूपी कमजोरी के जर्म्स अपने भीतर प्रवेश ना होने दें। अन्यथा इसे खत्म करना मुश्किल हो जायेगा। जैसे ड्रामा का सीन देखते है, चाहे वहॉ हलचल की सीन हो या अचल की सीन हो दोनो में निश्चय बने रहते है। इसी प्रकार हलचल के सीन में भी कल्याण का अनुभव हो, ऐसे निश्चय बुद्धि बनना है। वातावरण हिलाने वाला हो, समस्या विकराल हो लेकिन सदा निश्चय बुद्धि बनने पर विजय कहलायेंगे। निश्चय के आधार से विकराल समस्या भी शीतल हो जायेगी।
यदि प्रकृति द्वारा कोई पेपर आये तो पास होने की शक्ति धारण कर लें। फिर हलचल में नही आयेंगे। जरा भी हलचल में आने का अर्थ है फेल होना। यह क्या, यह क्यो इत्यादि का क्वेश्चन उठने का अर्थ है फेल हो जाना। यदि जरा भी कोई प्रकृति की समस्या वार करने वाली बन गई तो फेल कहलायेंगे। यह क्यो हुआ यह बात संकल्प में भी ना आये। कितना भी विस्तार हो लेकिन स्वंय की स्थिति सार रूप में हो। इन सबका आधार है साईलेन्स की शक्ति। इसलिए साईलेन्स की शक्ति को जमा करें। अर्थात व्यर्थ के संकल्प को समाप्त कर एक समर्थ संकल्प में स्थिति हो जाय। संकल्पों के विस्तार को समेट कर सार रूप में स्थित हो जाय तो साईलेन्स की शक्ति स्वतः बढती जायेगी। व्यर्थ है बार्हिमुखता और समर्थ है अर्न्तमुखता ऐसे ही व्यर्थ को समेट कर अर्थात सार में स्थित होने से साईलेन्स की शक्ति जमा कर सकेंगे। शाक्तियों का मुख्य गुण है निर्भयता। शुद्ध संकल्प का स्टॉक जमा हो तो व्यर्थ समाप्त हो जायेगा।
अव्यक्त बाप-दादा, महावाक्य मुरली, 03 दिसम्बर 1979
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, उपनिदेशक सूचना एवं लोक सम्पर्क विभाग उत्तराखंड देहरादून

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