देहरादून : जब हम किसी भी लक्ष्य को गहराई से पाने की कोशिश में जुट जाते हैं तो वह भी आकर्षण के सिद्धांत से, हमारी तरफ आकर्षित होने लगता है। और उसके लक्षण हमारे अंदर स्वत ही आने लगते हैं। इसीलिये कहते हैं कि लक्षण जिनके मजबूत रखने पर लक्ष्य मिल ही जाता है। जैसा लक्ष्य रखा जाता है उसी के अनुरूप लक्षण भी धारण करना होता है। यदि लक्ष्य ऊँचा रखेंगे तब लक्षण स्वतः मिलने लगेंगे। अर्थात् लक्ष्य ऊँचा रखेंगे तब सफलता भी ऊँची मिलेगी। एक छोटा व्यक्ति भी अपने प्रैक्टिकल स्थिति में स्थित होकर जब कार्य करता है, उसके कार्य का प्रभाव बड़ों से अधिक होता है।
जो व्यक्ति परिश्रम की इच्छा रखते हैं उन्हें मद्द भी स्वतः मिल जाती है। इच्छा में दृढ़ता होना जरूरी है। दृढ़ संकल्प का अर्थ है कि हमें कोई भी कितना हिलाये, लेकिन लक्ष्य के प्रति हमारा संकल्प कभी न हिलने पाये। यदि संकल्प दृढ़ और पक्का होगा तब हमारा फाउण्डेशन भी पक्का होगा। इसी फाउण्डेशन पर हमारी ईमारत खड़ी होगी।
दृढ़ निश्चय के आगे कोई रुकावट नहीं आ सकती है। हमारा निश्चय बीज की तरह है, जिस पर हमारा वृक्ष खड़ा है और हम इस वृक्ष से अपना फल खाते हैं। इसलिए यह समझना होगा कि हम नींव हैं और हमारा नींव हैं और हमारा नींव हमारे बिल्डिंग का आधार है। अर्थात कोई भी परिस्थिति आ जाय लेकिन हमें अपने को मजबूत रखना है।
केवल ज्ञान बल से ही समस्याओं का हल नहीं किया जा सकता है। ज्ञान बल के साथ योग बल का सहारा लेने पर हम अप्रत्याशित रिजल्ट प्राप्त करते हैं ओर क्वांटन जम्प देकर सभी को चौंका देते हैं। इसलिए चेक करें की सम्पूर्ण दिन में हमारी कितना योग युक्त अवस्था है। योग युक्त अवस्था में कार्य करने पर आने वाले विघ्न भी टल जाते हैं। ऐसा करके हम दूसरों के लिए उदाहरण बन जाते हैं। हमें खुशी का दीपक सदैव जलाकर रखना है। ज्ञान का घृत और योग की बत्ती सदैव रखने से खुशी का दीपक जलता रहेगा। ज्ञान का घृत और योग की बत्ती ठीक रहने पर हमारा खुशी का दीपक कभी बुझेगा नहीं।
लक्ष्य के प्रति निश्चय रखकर ही हम सम्पूर्ण समर्पण कर सकते हैं, निश्चय की निशानी है विजय। जितना निश्चयबुद्धि होगा उतना ही हमें सभी बातों में विजय मिलेगी। हमारे हार का कारण हमारे अन्दर निश्चय मे कमी होना है। हमें अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए केवल कोशिश ही नहीं करनी चाहिए बल्कि लक्ष्य प्राप्ति के लिए अन्दर से कशिश भी रखना चाहिए। कोशिश शब्द में कमजोरी की झलक मिलती है। जबकि कशिश शब्द शक्ति का प्रतीक है। कोशिश करेंगे शब्द हमारे ढीलेपन का प्रतीक है। केवल कोशिश शब्द का प्रयोग करने पर अन्दर से कशिश नहीं आयेगी। निश्चय बुद्धि हमारी कोशिश शब्द को कशिश शब्द में बदल देता है। निश्चय बुद्धि वालों की कभी हार नहीं होती।
निश्चय में विजय होती है, निश्चय हमारे संशय कमजोरी को कम करता है। निश्चय बुद्धि बनेंगे तो हमें सहयोग मिलेगा। जब कोई कार्य करना होता है तब यह सोचना चाहिए कि यह कार्य मेरे बिना नहीं हो सकता है। तभी कार्य में सफलता मिलेगी। इसलिए हर कर्म करने के पूर्व अपनी चेकिंग करें, कर्म करने के बाद अपने चेकिंग करने का कोई मतलब नहीं होता है। इसलिए कर्म के पहले स्वयं को चेक करें फिर कर्म करें।
लक्ष्य के मार्ग में विघ्न तो आयेंगे ही लेकिन उन विघ्नों को विघ्न न समझकर केवल आने वाला पेपर समझना चाहिए। अपनी ऊँची स्थिति की परख लक्ष्य के मार्ग में आने वाला पेपर ही कराता है। इसलिए अन्य बातों पर ध्यान नहीं देना है, बल्कि केवल सामने पेपर को देखना है। पेपर में भिन्न-भिन्न प्रश्न मिलते हैं, जैसे मन की उलझन हलचल, लोक लाज की चिन्ता, की लोग क्या कहेंगे और अपने कत्र्तव्य से डिगने का भय है। परन्तु पेपर देखकर कभी घबराना नहीं चाहिए, बल्कि शान्त चित और तटस्थ भाव से पूर्व स्मृति को याद कर कापी पर लिखना प्रारम्भ कर देना चाहिए। पेपर की गहराई में जाकर उत्तर लिखें अर्थात बातों की गहराई में जाकर प्रश्न को हल करें।
जो भी लक्ष्य रखें उसको पूर्ण करने के लिए उसमें लक्षण भी भरें। लक्षण भरने से लक्ष्य स्वतः मिल जाता है। हमें ऐसा वातावरण बनाकर रखना है कि लोग न चाहते हुए भी खींच कर चले आयें, जैसे रास्ते में फूल की खुशबु की महक राहगीर को खीच लेती है। लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमें सदैव अपने को लक्ष्य में बिजी रखना पड़ेगा। यदि हम अपने को बिजी रखेंगे तब लक्ष्य और हमारे बीच में, कोई तीसरा व्यक्ति डिस्टर्ब नहीं कर सकेगा। बिजी रहने पर माया आकर लौट जायेगा। यदि हम कुर्सी खाली रखेंगे।
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, प्रभारी मीडिया सेन्टर विधानसभा देहरादून
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