देहरादून : एवरेडी बन कर हर परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहना है, जिसके लिए अपने कमजोरी को समाप्त करना होगा। जो एवरेडी होगा उनका प्रैक्टिकल स्वरूप एवरहैप्पी होगा। कोई परिस्थिति रूपी पेपर, हलचल, प्रकृतिक आपदा अथवा शारीरिक कर्मभोग रूपी पेपर आने पर फुल मार्क्स लेने के लिए तैयार रहना होगा।
हमे समय का इन्तजार नही करना है बल्कि अपना इन्तजाम इस प्रकार रखना है किसी भी घडी कोई भी पेपर देना पडे, हम तैयार रहे। समय की रफ्तार तेज है, जैसे समय किसी के द्वारा रूकावट डालने पर भी नही रूकता है और चलता रहता है वैसे चेक करे कि कही हम माया के रूकावट से रूक तो नही जाते है।
अपनी श्रेष्ठ शान में रहने पर माया के सूक्ष्म, स्थूल, विघ्न आने पर माया के वार से बच जाते है। श्रेष्ठ शान में रहने पर परेशान नही होगें। लेकिन श्रेष्ठ शान में न रहने पर माया के वार से परेशान हो जाते है। परेशानियों को मिटाने वाले यदि स्वयं परेशान हो जायेगे तब क्या होगा।
अपनी कमजोरियों को मिटाने के लिए परिवर्तन समारोह मानना होगा। इसके लिए अभी से कोई डेट फिक्स कर लेनी है। जैसे सेमिनार की डेट फिक्स कर लेते है वैसे ही अपनी कमियों को मिटाने की डेट फिक्स कर ले। यदि पुरानी रीति से चलते रहेगे तब डेट फिक्स नही हो सकेगी।
यज्ञ करते समय आहुति डालते है वैसे ही अपना यज्ञ रच कर बीच-बीच में कमजोरियों की आहुति डालते रहें और एक फिक्स डेट पर सम्पूर्ण आहुति डालनी है। इस प्रकार अपने सर्व कमजोरियों को स्वाहा कर देना है। जब तक सभी लोग मिलकर सम्पूर्ण आहूति नही डालेगें, तब तक विश्व परिवर्तन नही होगा।
हमारी जिम्मेदारी अधिक है क्योकि हमने स्व परिवर्तन के माध्यम से विश्व परिवर्तन नव निर्माण का संकल्प लिया है। अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्य पूर्ण करने के लिए सबसे पहले हमें सम्पूर्ण आहुति डालना है।
प्रैक्टिकल श्रेष्ठ कर के श्रेष्ठ स्थिति में जो संकल्प करते है और वचन बोलते है उसे चेक करके कर्म करेगे। जैसे कोई चीज भूमि में गाड़ दी जाती है वैसे ही हमें अपनी फाउन्डेशन जमीन में गाड़ देना है। ऐसे कर्म सदा के लिए यादगार बन जाते है।
किसी के सामने समान्य साधारण चीज नही रखी जाती है बल्कि विशेषता रखी जाती है। उसी प्रकार सदैव हमे अपनी विशेषता को सामने रखना है। अपने उपर यह अटेन्शन रख कर अपने कर्म और बोल कर यादगार बना लेना है। इस यादगार को सामने रख कर बार-बार रिपीट करना है। लेकिन सावधान रहना है कि माया इस स्मृति में ताला न लगाने पाये।
जैसे देवी-देवता के शक्ति रूपी चित्र सामने रखते है। इसी प्रकार अपने संकल्पों में युक्तियुक्त चित्र रख ले। जितना उस चित्र की वैल्यू होगी उतना ही हमारे चरित्र की वैल्यू होगी।
अव्यक्त महावाक्य बाप दादा मुरली, 18 जुलाई 1972
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, सहायक निदेशक सूचना एवं लोकसम्पर्क विभाग उत्तराखंड, देहरादून
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